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थोड़ा सा रूक जाओ ना माँ, मेरा बचपन लौटकर आएगा नहीं अतीत से

क्या होगा ऑल-राउंडर बनकर? कुछ मेडल्स और सर्टिफ़िकेट में इज़ाफ़ा और माँ-बाप की नाक थोड़ी सी ऊंची हो जाएगी? बस इतना ही!

क्या होगा ऑल-राउंडर बनकर? कुछ मेडल्स और सर्टिफ़िकेट में इज़ाफ़ा और माँ-बाप की नाक थोड़ी सी ऊंची हो जाएगी? बस इतना ही!

एक अद्भूत पोस्ट पढ़ी। वैसे अद्भूत कहना सही नहीं होगा क्योंकि आजकल अधिकतर माएँ ऐसी ही ‘रैट रेस’ में भाग ले रही हैं। पोस्ट थी एक एल.केजी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे की माँ की। जिन्हें बच्चे का कोर्स रिवाइज़ करने के लिए अध्यापिका चाहिए थी। अध्यापिका को तीन-चार साल तक इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ाने का अनुभव होना चाहिए, धाराप्रवाह अंग्रेजी जानती हो तथा घर में आकर पढ़ा सके। पोस्ट पढ़कर लगा क्या चाहते हैं हम?

मेरी एक सहेली ने अपने बेटी को तब टेनिस खेलने भेज दिया था जब वो ख़ुद टेनिस रैकेट से छोटी थी और साथ ही साथ वो बच्ची कराटे, ड्राइंग क्लास, डांस क्लास भी जाती थी। क्यों हम बच्चों को ऑल-राउंडर बनाने की रेस में दौड़ाते हैं? क्या होगा ऑल-राउंडर बनकर? कुछ मेडल्स और सर्टिफ़िकेट में इज़ाफ़ा और माँ-बाप की नाक थोड़ी सी ऊंची हो जाएगी? बच्चे की उपलब्धियों का पिटारा घर में आने वाले मेहमानों के सामने खोल सकेंगे। बस इतना ही!

बच्चे को क्यों मशीन बनाने में तुले हैं हम। सुबह से शाम तक बच्चों को भगाते रहते हैं। क्यों नहीं छुट्टी के दिन थोड़ा सा ज़्यादा सोने देते? क्यों नहीं थोड़ा सा उसके साथ बैठकर हँसी मज़ाक, उसके दिल की बात नहीं सुन लेते? क्यों नहीं उसके नैसर्गिक विकास के बारे में सोचते? क्यों नहीं कलाकार बनने की जगह रंगों से उसे खेलने दे देते, रंगों के तापमान से उसका परिचय करवाते, प्रकृति का संगीत, पक्षियों का कलरव, नदियों की कल-कल सुनने देते।

जानती हूँ मैं, काॅम्पीटिशन के इस दौर में मेरी बातें बचकानी लग रही होंगी। लेकिन फिर भी एक कोशिश ज़रूर करें क्योंकि बचपन वापस नहीं आता और सच पूछिए तो ये हाॅबी क्लासेज़ कोई अच्छी यादें सहेज कर नहीं रख सकतीं।

थोड़ा सा रूक जाओ माँ

थोड़ा सा रूक जाओ माँ, वो देखो सूरज निकला हैं आसमान से,
थोड़ा सा रूक जाओ माँ, अभी तो आँख खुली है गहरी नींद से।
थोड़ा सा रूक जाओ माँ, अभी तो चलना भी नहीं सीखा ठीक से,
थोड़ा सा रूक जाओ माँ, अभी कैसे दौड़ लगाऊँ मैं दुनिया से।
थोड़ा सा रूक जाओ माँ, अभी तो किसलय निकली है बीज से,
थोड़ा सा रूक जाओ माँ, अभी कैसे फल पक कर गिरेंगे पेड़ से।
थोड़ा सा रूक जाओ माँ, कैसे लिखने लगूँ मैं कविताएं अभी से,
थोड़ा सा रूक जाओ माँ, ज़रा मेरे अनसुने गीत तो सुनो ध्यान से।
थोड़ा सा रूक जाओ माँ, अभी तो मैं तुम्हारे पास आया हूँ चांद से,
थोड़ा सा रूक जाओ माँ, कुछ बतियाएँ, कुछ खेल खेलें प्यार से।
थोड़ा सा रूक जाओ माँ, मैं बनूँगा अच्छा इंसान कहोगी तब गर्व से,
थोड़ा सा रूक जाओ माँ, मेरा बचपन लौटकर आएगा नहीं अतीत से।

मूलचित्र : Pixabay 

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