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ऐसा लगता है मेरे जीवन की डोर है इनके हाथों में, जी रहीं हूँ वो बचपन जो था सिर्फ मेरी यादों में।
हंस देते हो हर बार जब भी आता है जिक्र मेरे मायके जाने का, क्या हक़ नहीं है मेरा एक भी छुट्टी पाने का? क्यों सामान नहीं हैं हम जब वक़्त हो पति धर्म निभाने का?
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