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मेरी इन ‘छोटी बातों’ की तुम हंसी क्यों उड़ाते हो?

हंस देते हो हर बार जब भी आता है जिक्र मेरे मायके जाने का, क्या हक़ नहीं है मेरा एक भी छुट्टी पाने का? क्यों सामान नहीं हैं हम जब वक़्त हो पति धर्म निभाने का?

हंस देते हो हर बार जब भी आता है जिक्र मेरे मायके जाने का, क्या हक़ नहीं है मेरा एक भी छुट्टी पाने का? क्यों सामान नहीं हैं हम जब वक़्त हो पति धर्म निभाने का?

आज मन किया है मेरा कुछ छोटी छोटी बातें बताने का,
जिनको समझते हो तुम मौका हंसी उड़ाने का…

हंस देते हो हर बार जब भी आता है जिक्र मेरे मायके जाने का,
क्या हक़ नहीं है मेरा एक भी छुट्टी पाने का?

हाँ शौक रखती हूँ बाहर का चटपटा खाने का,
क्यूंकि मेरा भी मन करता है कभी खाना न पकाने का…

अक्सर आस लगाती हूँ उपहार में सुन्दर साड़ी आने का,
क्यूंकि यूँ तो मौका ही नहीं पड़ता अपने लिए कुछ खरीद पाने का…

नहीं बोल पाती खुलकर जब मौका हो मेहमानों के आने का,
क्यूंकि अक्सर चुप कर देते हो तुम जब अवसर हो कुछ कहने का…

‘टीवी मोबाइल इतना नहीं जानती?’ ये मौका मिल जाता है तुम्हें जताने का,
पर वक़्त ही नहीं मिल पता मुझे अपने को कुछ नया सिखाने का…

मैंने ही तो तुम्हें हक़ दिया है मुझ पर अपना हक़ ज़माने का,
फिर क्यों सामान नहीं हैं हम जब वक़्त हो पति धर्म निभाने का?

मजबूर बेबस समझो ये इरादा नहीं मेरा ये लिखकर बताने का,
झाँसी की रानी भी बन जाऊँ जब वक़्त हो कुछ कर दिखाने का!

मूल चित्र : Canva Pro 

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