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नन्ही कलियाँ…

ऐसा लगता है मेरे जीवन की डोर है इनके हाथों में, जी रहीं हूँ वो बचपन जो था सिर्फ मेरी यादों में।

ऐसा लगता है मेरे जीवन की डोर है इनके हाथों में, जी रहीं हूँ वो बचपन जो था सिर्फ मेरी यादों में।

दो नन्ही कलियाँ हैं मेरे आंगन में,
माँ माँ कर आंचल मेरा पकड़ लेती हैं,
पल भर ओझल होते ही वो,
सब कुछ छोड़ मेरे पीछे हो लेती हैं।

ये कैसा अनोखा रिश्ता है जिसमे मैं बहती जाती हूँ,
मैं उनकी हूँ वो मेरी हैं बाकी सब भूलती जाती हूँ।

ऐसा लगता है मेरे जीवन की डोर है इनके हाथों में,
जी रहीं हूँ वो बचपन जो था सिर्फ मेरी यादों में।

इनकी अटखेलियों से मेरे आँगन में कोथुल रहता है,
हर सामान अस्त व्यस्त बिखरा बिखरा सा रहता है।

फिर सोचती हूँ मैं ज़रा क्या ये समय फिर लौट कर आएगा,
फूल बनेंगी मेरी कलियाँ ये घर सिमटा रह जाएगा।

दो नन्ही कलियाँ हैं मेरे आंगन में,
माँ माँ कर आंचल मेरा पकड़ लेती हैं,
पल भर ओझल होते ही वो,
सब कुछ छोड़ मेरे पीछे हो लेती हैं।

मूल चित्र : Pexels

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