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मेरे सिरदर्द को बीमारी नहीं नौटंकी कहते हैं…

खुद की बेटी आने की इतनी ख़ुशी है कि व्यंजनो की लिस्ट पकड़ा दी, लेकिन कभी मेरे मायके से कोई आये तो डर-डर के दो सब्ज़ी बनाती हूँ। 

खुद की बेटी आने की इतनी ख़ुशी है कि व्यंजनो की लिस्ट पकड़ा दी, लेकिन कभी मेरे मायके से कोई आये तो डर-डर के दो सब्ज़ी बनाती हूँ। 

कुछ दिनों से नीति को थोड़ी हरारत सी हो रही थी। सुबह अलार्म की आवाज़ से नीति की नींद तो खुली, लेकिन ऑंखें खुल नहीं रही थीं। लेकिन उठना तो था ही। शरीर आराम मांग रहा था और दिमाग़ भाग रहा था घर के कामों की ओर।

नीति का छः महीने का बेटा रात को देर तक जागता रहता। कितनी भी प्रयास कर ले नीति, वो रात को एक या दो बजे से पहले सोता ही नहीं था, जिससे नीति की नींद पूरी ही नहीं हो पाती।

बड़ा बेटा सनी जो चार साल का था, उसका स्कूल सुबह सात बजे लगता। छ: बजे बस आती थी, तो पांच बजे नीति को बिस्तर छोड़ना ही पड़ता था।

सिर दर्द से फटा जा रहा था। किसी तरह सनी को बस में बिठा कर नीति घर आयी, तब तक माँजी भी सुबह की सैर से वापस आ गई थीं।

“आज चाय मिलेगी बहु?”

“लायी माँजी!”

“ये सिर पे पट्टी क्यों बांधे घूम रही हो बहु?”

“सिरदर्द हो रहा है”, नीति ने ज़वाब दिया।

“दवा ले लो बहु। और याद है ना, आज सुषमा ओर दामाद जी बच्चों के साथ आ रहे हैं? खाने की तैयारी शुरू कर दो। लेकिन उससे पहले मेरे लिये दलिया बना देना, मुझसे नहीं खाया जाता तेज़ मिर्च मसाले वाला खाना।”

“जी माँजी!” कह नीति रसोई की ओर चल दी। तभी माँजी की आवाज़ आयी, “थोड़ा घर की बहु की तरह भी रहा कर, जब देखो सिर पे पट्टी बांध घूमती रहती है। मेरी तो किस्मत ही ख़राब है, कैसी बीमार बहु मिली है। रोज़ रोज़ की नौटंकी! कभी ये दर्द तो कभी वो दर्द।”

रसोई में खड़ी नीति अपनी आँखों से बहते आंसू पोंछ सोच रही थी, ‘किस्मत इनकी ज्यादा ख़राब है या मेरी ज्यादा ख़राब है? सुबह के सबसे पहले उठती हूँ और सबसे अंत में सोती हूँ। कभी आधे घंटे की नींद ज्यादा ले लूँ, तो माँजी दिन भर सबको कहती फिरती हैं, “एक हम थे और एक आज की बहुएँ हैं। दिन निकलने तक बिस्तर पे पड़ी रहती हैं।” आप बीमार हो तो रात दिन मैं सेवा करती हूँ और कभी भूल से मैं बीमार हो जाऊँ, तो आपको नौटंकी लगती है? एक कप चाय भी दोपहर को मिलती है बीमारी में?’

खुद की बेटी आने की इतनी ख़ुशी है कि व्यंजनो की लिस्ट पकड़ा दी, लेकिन कभी मेरे मायके से कोई आये तो डर-डर के दो सब्ज़ी बनाती हूँ और आप अगले दस दिन-रात दिन मेरे मायके वालों  को कोसती हैं कि उनके बेटे की कमाई उड़ाने आते हैं वे यहाँ।

आँखों के आंसू पोछ सिर की पट्टी थोड़ी कस के बांध ली नीति ने, दो बिस्किट खा दवा ली और जुट गई रसोई में सास का हुकुम जो था।

क्यूंकि ससुराल में बहु के सिरदर्द को बीमारी नहीं नौटंकी जो कहते हैं। 

मूल चित्र : gawrav from Getty Images Signature via Canva Pro

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