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जेठानी की बातें सुन नैना की ऑंखें भर आयीं। राजीव से जब नैना की नज़र मिली तो राजीव खुद अपराधबोध से भर उठे।
रसोई में काम करती नैना को अपने पति राजीव की आवाज़ साफ-साफ सुनाई दे रही थी। फ़ोन पर अपनी माँ से बात करते राजीव ने बिना तर्क वितर्क किये साफ-साफ अपनी बात, अपनी माँ के सामने रख दी थी की इस दिवाली को वह अपने इस किराये के घर में ही मनायेगा।
“क्या हुआ माँ नाराज़ हो रही थी क्या?”
रसोई का काम निपटा कर जब नैना ने राजीव से पूछा, तो हमेशा की तरह मुस्कुराकर राजीव ने कहा, “तुम माँ की चिंता मत करो बस कैसे त्यौहार मनाना है? ये सोचो!”
नैना और राजीव की शादी को सात साल हो गए थे। दो बच्चे भी थे और ये पहला मौका था जब दोनों ने दिवाली अपने घर में मनाने का फैसला लिया था। नैना की शादी संयुक्त परिवार में हुई थी। राजीव के दो बड़े भाई-भाभी उनके बच्चे और सास ससुर सभी पटना में रहते थे। दोनों जेठ की अच्छी सरकारी नौकरी थी वहीं राजीव प्राइवेट नौकरी में थे। ससुर जी द्वारा बनवाये दो मंजिला मकान में पूरा परिवार रहता था बस राजीव और नैना दिल्ली में किराये के मकान में रहते थे। कई बार राजीव ने सोचा अपना फ्लैट बुक कर ले लेकिन दिल्ली जैसे महानगर में इतना आसान कहाँ होता है अपना आशियाना बनाना?
देखते-देखते सात साल निकल गए। इस बीच जब भी दिवाली या होली का त्यौहार आता तो सासू माँ ज़िद कर बैठती पटना आने के लिए और नैना को दिवाली पर अपने घर में ताला लगाना बिलकुल अच्छा नहीं लगता। साल भर घर के मंदिर में दिया जलाने वाली, नैना के घर के मंदिर में दिवाली के दिन अंधेरा रह जाता। ये बात नैना को बहुत अखरती।
दिवाली पर अपने घर में रंगोली बनाना, फूलों और झिलमिल रंगीन बल्ब की लड़ीयों से घर और मंदिर सजाना नैना के लिये सपना ही रह जाता क्यूंकि पटना में भी वो अपने पसंद से कुछ कर नहीं पाती थी। पटना के घर में सासू माँ और दोनों जेठानियों की चलती वहीं निर्णय लेतीं, कैसे घर और मंदिर सजाना है? कौन सी मिठाईया बनेगी? क्या तोहफ़े मेहमानों को दिये जायेंगे? नैना और राजीव बस मेहमानों की तरह देखते रहते।
अभी पिछली दिवाली की ही तो बात थी, नैना ने अपने पसंद से रंगोली बना दी तो बड़ी जेठानी जी नाराज़ हो उठी।
“ये कैसी रंगोली बना दी नैना? कैसे फीके रंग है और मुझसे पूछा क्यों नहीं? कितने समय से डिज़ाइन सोच के रखा था मैंने। त्यौहार का सारा मज़ा ख़राब कर दिया।”
जेठानी जी की तीखी बोली सुन नैना की ऑंखें भर आयीं। राजीव भी वहीं कोने में बैठे अख़बार पढ़ रहे थे। राजीव से जब नैना की नज़र मिली तो राजीव खुद अपराधबोध से भर उठे।
त्यौहार के दिन बात ना बढ़े इसलिए डबडबाई आँखों से नैना ने अपनी बनाई रंगोली कपड़े से साफ कर दी। राजीव, नैना के दिल की बात समझता था साथ ही अपनी भाभी के इस बर्ताव से दुखी भी हो गया था। अब तो बच्चे भी कहते, “पापा! दिवाली अपने घर पर क्यों नहीं मनाते? पटना में ताई जी सिर्फ डांट ही लगाती रहतीं हैं।”
इच्छा तो राजीव की भी यही होती लेकिन जब भी दबे स्वर में अपनी माँ से जिक्र करता तो वो नाराज़ हो जातीं, “दिवाली का त्यौहार भी कहीं दूसरों के मकान में मनाया जाता है लक्ष्मी जी का स्वागत तो अपने घर में होता है।”
अब कैसे समझाता राजीव अपनी माँ को की चाहे किराये का ही सही था तो वो भी घर ही, जहाँ नैना साल भर दिया जलाती थी, जहाँ हर पहली तारीख को सबसे पहले लक्ष्मी जी को भोग लगाया जाता। हर छोटी-बड़ी खुशियाँ नैना और राजीव ने उसी घर में तो मनाईं थीं।
इस बार भी दिवाली का त्यौहार पास आ रहा था लेकिन इस बार राजीव ने भी निर्णय ले ही लिया था की ये दिवाली वो अपने इस घर में ही अपने तरीके से मनायेगा।
“कब निकलना है राजीव पटना के लिये, पैकिंग भी तो करनी होगी ना?”
“नहीं! नैना, इस बार हम दिवाली पर पटना नहीं जा रहे हैं। देर से ही सही लेकिन मैंने निर्णय ले लिया है कि इस बार की दिवाली हम यहाँ इस घर में मनायेंगे।”
राजीव की बात सुन एक बार तो नैना को विश्वास ही नहीं हुआ।
“लेकिन राजीव माँ जी?”
“माँ की चिंता तुम मत करो नैना, मैं उनसे बात कर लूंगा और फिर छठ पूजा के लिये तो हम जायेंगे ही। बस लक्ष्मी पूजा इस साल और आने वाले हर साल हम अपने घर में ही मनायेंगे, चाहे वो किराये का हो या अपना।”
राजीव के निर्णय को सुन नैना और दोनों बच्चे ख़ुशी से उछल पड़े। उत्साह से भर नैना ने खुब सारी मिठाइयाँ बनाई तो बच्चों के साथ राजीव ने भी पूरा घर फूलों और रंगीन बलबों से सजा दिया। शादी के बाद ये पहला अवसर था, जब दिवाली के त्यौहार पर नैना और राजीव ने अपनी इच्छा से कुछ किया था। नैना और बच्चों के चेहरे की ख़ुशी देख राजीव भी बेहद ख़ुश था।
आखिर अपने घर में त्यौहार मनाने की ख़ुशी ही कुछ और होती है, चाहे वो घर अपना हो या किराये का।
इमेज सोर्स – Still from Diwali After Marriage, A Short Film On Diwali, YouTube
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