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सुरभि ने कहा भी था, "मां तुम मेरे बारे में किसी से चर्चा क्यों नहीं करती हो?" मां ने कहा था, "बेटा मैं क्यों बताऊंगी? वह लोग खुद जान जाएंगे।" वक्त से पहले बोलना नहीं चाहती थी वो।
राधिका की खुशियां थामे नहीं थम रही थी। आज बहुत ही ज्यादा खुश थी वह। आखिर उसकी सुरभि की सुगंध ने सबको जवाब जो दे दिया था। बात यह थी कि राधिका के पति नहीं थे। उनकी मृत्यु 15 साल पहले हो गयी थी, जब राधिका के बच्चे छोटे ही थे। ससुराल वाले, मायके वाले, सारे रिश्तेदार सब ने मिलकर राधिका को संभाल लिया।
राधिका के पति की जगह पर राधिका को नौकरी भी मिल गई। राधिका के ससुराल में जेठ-जेठानी, सास-ससुर, मायके में माँ-पिताजी, भाई-भाभी, सब ने राधिका को समय-समय पर हौसला दिया।
सभी समय-समय पर आते, सभी राधिका को समझाते, “राधिका तुम्हें रोने की कोई जरूरत नहीं है। तुम्हें दुखी होने की कोई जरूरत नहीं है। सोहन तुम्हारा सहारा है ना। यह 10 साल बाद तुम्हारा सारा दुख दूर कर देगा।”
जब राधिका के पति की मृत्यु हुई थी रोहन 8 साल का और सुरभि 5 साल की थी।
राधिका ने जैसे तैसे खुद को संभाला। वह ऑफिस जाती और घर का भी ख्याल रखती। घर से लेकर बाहरवाले सभी की बातों को ध्यान से सुनती। उसके ससुराल वाले, मायके वाले बार-बार यही बात दोहराते, “तुम्हारा दु:ख दूर हो जाएगा, जब सोहन बड़ा हो जाएगा। सोहन की पढ़ाई पर बस ध्यान देना है। सोहन के पढ़ाई के लिए पैसा रखना शुरू कर दो। सोहन को अच्छी पढ़ाई दो। सोहन तुम्हारी जिंदगी का अंधेरा दूर कर देगा। सोहन है तो तुम्हें रोने की कोई जरूरत नहीं। राकेश बाबू तुझे अकेला छोड़कर नहीं गए हैं। तुझे सोहन के हाथों सौंप कर गए हैं।”
राधिका सुनते सुनते ऊब भी जाती थी। लेकिन किससे कहे? क्या कहे? जब सभी अपने हैं।अपने ही दर्द नहीं समझ रहे हैं। राधिका के जिंदगी में राकेश के जाने के बाद, सभी की नजरों में सिर्फ सोहन की अहमियत है। क्या राधिका का भी कोई अस्तित्व है? बस सोहन को पढ़ाना है। सोहन राधिका का दु:ख दूर कर देगा। सोहन राधिका को थाम लेगा। सोहन उसकी पीठ पर खड़ा रहेगा। सोहन कंधे से कंधा मिलाकर चलेगा।
राधिका का ना अपना कोई अस्तित्व? ना ही सुरभि की कोई बात? नन्ही मासूम सी सुरभि, माँ का आंचल पकड़ शायद सवाल करती। माँ मैं तुम्हारा दु:ख दूर नहीं कर सकती क्या? मैं तुम्हारे लिए कोई मायने नहीं रखती क्या? माँ मेरा क्या होगा? मेरे लिए क्या सोचा है तुमने? शायद सुरभि की मासूम आंखें राधिका से यही सवाल करती। राधिका किसी से कुछ तो नहीं कहती थी। लेकिन उसने कभी भी सोहन और सुरभि में कोई अंतर नहीं किया। वह घर और बच्चों की जिम्मेदारी अच्छे से संभाल रही थी।
कहते हैं ना कि ऊपर वाला जब कोई दुख देता है, तो उस दु:ख को सहकर हम और मजबूत हो जाते हैं। राधिका का भी यही हाल था। उसके परिवार वाले बराबर उसके सहयोग के लिए आते रहते थे। जब भी आते ज्यादातर सोहन के बारे में जरूर पूछते थे। सोहन के भविष्य, और सोहन तुम्हारा सहारा, बस यही मुख्य बातें रहती।
सोहन ही अब उसका भविष्य है। राधिका समझ रही थी कि इसमें सोहन का कोई दोष नहीं है। कभी-कभी परिवार के परवरिश और परिवार की किसी बच्चे को ज्यादा अहमियत के कारण बच्चा या तो ईष्यालू या अहंगी हो जाता है। लेकिन समाज के खोखले विचार, खोखली सोच। चाहे वह आपका पिता हो, पति हो, बेटा हो बस वही आपका सहारा बन सकता है। ना ही आप खुद मजबूत हैं और ना ही आपकी बेटी आपके किसी काम की है।
यह सोच समाज की, राधिका को अंदर ही अंदर खाए जा रही थी लेकिन उसने समय से पहले किसी से कुछ भी कहना उचित नहीं समझा। बस वह सबकी सुनती जाती थी। परिवार वाले कहते सुरभि को भी बारहवीं तक पढ़ा देना है। फिर सुरभि के लिए अच्छा लड़का खोज कर, हम लोग इसकी शादी कर देंगे। सुरभि के भविष्य का क्या होगा? सुरभि के जीवन में जब कोई संकट आएगा तो किसके सहारे रहेगी?
उसका आत्मविश्वास मजबूत होना चाहिए। इन सब बातों को किसी को कोई फिक्र न थी। यह सब बातें सोच कर ही राधिका चिंतित होने लगती थी। क्या एक औरत का अपना कोई अस्तित्व नहीं? एक लड़की के जिंदगी के कोई मायने नहीं है? लेकिन राधिका किसी से कुछ भी नहीं कहती थी। सुरभि पढ़ाई में बहुत अच्छी थी। सोहन और सुरभि एक ही स्कूल में पढ़ते थे।
समय के साथ दोनों बच्चे बड़े हो गए, और समझदार भी। राधिका के परवरिश का नतीजा था कि सोहन को इंजीनियरिंग में इंटरेस्ट था। वह बारहवीं करके, इंजीनियरिंग करने चला गया और सुरभि ने मेडिकल को चुना। घरवालों का दबाव बढ़ने लगा। सुरभि की शादी करवानी है। बिना बाप की बच्ची है जल्दी शादी हो जाये, बेचारी का कल्याण हो जायेगा। कभी-कभी इन सब बातों से राधिका दुखी हो जाती। उसे राकेश की याद आने लगती। की कैसा जमाना है? जिसका पति नहीं है, उसके दूसरे लाखों मालिक बनने के लिए तैयार बैठे रहते हैं। सुरभि के लिए लड़का देखना है।
राधिका कुछ न कुछ कह कर टाल देती थी। मैं गई थी लड़का देखने, लड़का नहीं जँचा मुझे। अभी छुट्टी नहीं मिल रही है। आप लोग देखिए, मैं देख लूंगी। ऐसे कई बहाने बनाते-बनाते 2 साल हो गए। सुरभि का मेडिकल में प्रवेश किए हुए। सुरभि घर से ही मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी।
राधिका के अलावा इस बात की किसी को जानकारी नहीं थी। सुरभि ने कहा भी था, “मां तुम मेरे बारे में किसी से चर्चा क्यों नहीं करती हो? क्यों नहीं बताती हो मेरी सुरभि भी मेरा ख्याल रख सकती है। वह मेरा नाम रोशन कर सकती। वह मेरा सहारा बन सकती है। वह भी नौकरी कर सकती है।”
सुरभि ने कहा भी था, “मां तुम मेरे बारे में किसी से चर्चा क्यों नहीं करती हो?” मां ने कहा था, “बेटा मैं क्यों बताऊंगी? वह लोग खुद जान जाएंगे।” वक्त से पहले बोलना नहीं चाहती थी वो।
आज सुरभि का मेडिकल कंप्लीट हो गया और उसने अपने कॉलेज में ही नहीं, अपने स्टेट में टॉप किया। फोटो के साथ सुरभि का इंटरव्यू पेपर में देख कर सारे घर वाले राधिका को फोन करने लगे। कब-कैसे? सुरभि कबसे पढ़ रही थी? सभी के फोन आने लगे। लाखों सवाल!
राधिका के ससुराल और मायके वाले। क्या सुरभि को तुम मेडिकल पढ़ा रही थी और हमें मालूम ही नहीं था? राधिका की खुशी थामे नहीं थम रही थी। उसने बस इतना कहा, “मैंने दोनों बच्चों के पढ़ाई में कोई भेदभाव नहीं किया। यह मेरा फर्ज था कि मैं सुरभि को भी पढाऊँ वह जो पढ़ना चाह रही थी।”
शादी और सहारा तो बाद की बात है, पहले पढ़ाई। ससुराल वाले और मायके वालों की दखलअंदाजी धीरे-धीरे कम हो गई। उन्हें समझ आ गया कि राधिका शिक्षित, समझदार और उचित विचार करने वाली है। उन्हें झूठे सांत्वना की कोई जरूरत नहीं है। उसने खुद को और बच्चों को संभाल लिया है। राधिका अपनी डॉक्टर बेटी और इंजीनियर बेटे के साथ खुश थी। उसने समाज को बेहतरीन सन्देश दिया।
हमें अपने बच्चों को आत्मविश्वासी बनाना चाहिए। हमें खुद जिंदगी की हकीकत को समझते हुए, अपने आप में विश्वास को मजबूत करना चाहिए। किसी के कुछ भी कहने से खुद को कमजोर नहीं समझना चाहिए। राधिका ने इस खुशी में एक बड़ी सी पार्टी दिया। राधिका के खुशी में शामिल होकर मुझे भी अच्छा लगा।
इमेज सोर्स : Still from The School Bag, Royal Stage Barrel Select Large Short Films via Youtube
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