कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

अब बस! मैं और चुप नहीं बैठूँगी…

निलेश के लिए यह रोज का था। पर रश्मी को अचरज इस बात से होता था कि कैसे कोई इंसान अपने किये को इतना अनदेखा कर सकता है?

निलेश के लिए यह रोज का था। पर रश्मी को अचरज इस बात से होता था कि कैसे कोई इंसान अपने किये को इतना अनदेखा कर सकता है?

रश्मी आज भी नम आँखों से सोने की कोशिश कर रही थी। पर विचारों का भँवर इतना जोर से घूम रहा था उसके जेहन में कि उसकी नींद, चैन, सुकून सब निगल गया था वो।

करवट बदलते हुए उसने निलेश को देखा, वो इस कदर सो रहा था मानो कुछ हुआ ही नहीं। कल सुबह फिर एक सॉरी और सब पहले जैसा हो जायेगा।

निलेश के लिए यह रोज का था। पर रश्मी को अचरज इस बात से होता था कि कैसे कोई इंसान अपने किये को इतना अनदेखा कर सकता है?

दिखने को रश्मी और निलेश का परिवार सुखी संपन्न घरों मै आँका जा सकता है। अच्छी नौकरी, पढ़ा-लिखा पति, दो बच्चे, अच्छा ख़ानदान। खुश न होने की कोई वजह ही नहीं थी रश्मी के पास।  पर क्या सच में यह चीज़ें काफी हैं खुश होने के लिए?

किसी भी रिश्ते में आप हों, आप वहाँ सम्मान, प्यार और स्नेह चाहते हो। अगर वो न मिले तो करोड़ों रुपये की जायदाद भी खैरात ही लगती है। बाहर से देखने पर एक सुखी संपन्न दिखने वाले इस घर मैं न रश्मी खुश थी न उसके दोनों बच्चे। वजह थी निलेश का स्वभाव। हर बात पे ताना देना, मज़ाक उड़ाना, नीचा दिखाना, शीघ्रकोपी स्वभाव। यहाँ तक बच्चों का अपना घर मै उछल-कूद करना भी निलेश को सहन नहीं होता था। बच्चों पर चिल्लाना, चपेट लगाना यहां तक कि बच्चे भी अपने पिता के घर आने पर सहम जाते और एक कोने मै चुपचाप बैठे रहते।

रश्मी को बच्चों को वैसे देख के अपना बचपन याद आता।

उसके पिता जो जो एक तरह से आत्मकेंद्री थे, शकी थे। कुछ काम नहीं करते, पर रोब घर के सारे लोगों पर दिखाते।

वसुंधरा, रश्मी की माँ, जो गलती से एक ऐसे इंसान से प्यार कर बैठी थी जो गुंडा प्रवृत्ती का था। पर जब तक उन्हें पूरी तरह जान पाती, दोनों की शादी हो चुकी थी। लोक-लाज के खातिर, घर के इज्जत के खातिर रोज अपनी पति का मार खातीं और काम करके घर भी चलातीं।

बचपन से पति चाहे जैसा भी हो, ‘समझौता करना पड़ता है’, यही सिखाया जाता है। रश्मी की माँ को भी यही सिखाया गया था और रश्मी भी यही सुनते हुए बड़ी हुई थी।

आज भी कितने घरों मैं मर्दो की परवरिश अलग और स्त्रियों की अलग तरीकों से, अलग संस्कारों से की जाती है।  स्त्री पर हक़ जताना, उपभोग और उपयोग इसके सिवा स्त्री का और कोई कर्त्तव्य नहीं है, यही तो सदियों जो सिखाया और समझाया जाता है हमें।

वसुंधरा आज भी पति की मार और शक से भरी नजरें, ताने खाके भी उसके लिए करवा चौथ का व्रत रखती है। माँ के नक़्शे कदम पे पाँव रख रश्मी भी तो वही कर रही थी। फर्क दोनों में इतना ही था वसुंधरा के जख्म दुनिया को दिखते थे क्यूंकि पति उसके शरीर पे घाव करता। लेकिन रश्मी के जख्म दिखते नहीं थे, क्योंकि उसका पति उसके मन पर घाव करता।

शरीर के घाव आप दुनिया को दिखा कर इंसाफ मांग सकते हो, मन के घाव आप कैसे दिखायेंगे?

और फिर रश्मी ने तय किया कि वो आवाज उठायेगी। जो नरक यातनायें बचपन में उसने सहन की हैं, वैसे वो अपने बच्चों को सहन करने नहीं देगी। अपने बच्चों के लिए वो ढाल बनके खड़ी रहेगी, चाहे उसकी माँ ने यह नहीं किया हो उसके लिए। वो बच्चों को गलत और सही का मतलब सिखाएगी और सही के लिए लड़ना और आवाज उठाना भी।

हिंसा, इस दो अक्षर के शब्द में एक मजबूत इंसान को आहत करने की क्षमता है। घरेलू हिंसा के तहत आप पीड़ित होने का दावा कर सकते हो, पर मानसिक हिंसा का क्या? आज भी कितने घरों में कितनी सारी औरतें इस दोनों तरह की हिंसा से पीड़ित हैं, पर-

“घर में ऐसी छोटी बातें होती रहती हैं।”

“इसमें गलत क्या है?”

“पति-पत्नी का मामला है, दोनों देख लेंगे!”

“अरे एक थप्पड़ ही तो मारा है, कौन सा आसामाँ टूट पड़ा!”

आज भी यह यह बातें आम सुनने को मिलती हैं।

थप्पड़ मूवी को आप भूले नहीं होंगे। वह इसी सवेंदनशील विषय को दर्शाती है। इस विषय को लेकर भी कितनी सारी समिश्र प्रतिकिया आयीं, जिसमे ज़्यादातर औरतें यही कहती नजर आयीं कि एक थप्पड़ के लिए कोई अपना घर नहीं तोड़ता। पर क्या एक थप्पड़ वो सिर्फ आपके गाल पे पड़ा होता है, आपके मान-सम्मान, आपके आत्मविश्वास, आपके रिश्ते पे नहीं पड़ता?

सही गलत का भेद करने के लिए शुरुआत हमें हमारे घर से ही करनी पड़ेगी।  संस्कार हमारे बच्चों को फिर चाहे लड़का हो या लड़की, हिसां फिर वो शाब्दिक हो या शारीरिक गलत ही है।  हर व्यक्ति, प्राणी को सम्मान देना होगा।  वो उनका मूलभूत अधिकार है और किसी का अधिकार हम नहीं छीन सकते।

ख़ुशी इस बात की है, आज बहुतांश लड़कियां इसके खिलाफ आवाज उठा रही हैं, घरेलू हिंसा के खिलाफ आगे आ रही हैं। वे अपने सम्मान के लिए जागरूक हो रही हैं। अगर आगाज़ यह है तो अंजाम भी यक़ीनन सुखद ही होगा।

इसी उम्मीद के साथ, “अब बस!

इमेज सोर्स: Still from Short Film CONSENT/Movifi, YouTube

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

7 Posts | 10,987 Views
All Categories