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आखिर कब तक! फैसला तो आपको लेना ही होगा…

"नहीं प्रिया, ये घर मेरे बाबूजी का है। मेरा बचपन बीता है यहाँ। अपनी माँ को तो देखा नहीं लेकिन उनकी मौजूदगी का एहसास होता है इस घर में।"

“नहीं प्रिया, ये घर मेरे बाबूजी का है। मेरा बचपन बीता है यहाँ। अपनी माँ को तो देखा नहीं लेकिन उनकी मौजूदगी का एहसास होता है इस घर में।”

“अभी तक सोये नहीं आप?” अपने पति साहिल को देर रात तक करवटें बदलता देख प्रिया परेशान हो उठी। 

“तुम सो जाओ प्रिया।”

“मैं तो सो जाऊंगी साहिल लेकिन आप कब तक एहसानों के बोझ से दबे रहेंगे? फैसला तो आपको लेना ही होगा। मैं मानती हूँ बड़े भाईसाहब ने बहुत कुछ किया है आपके लिये लेकिन क्या आप ताउम्र उन एहसानों के बोझ से दबे रहेंगे? निर्णय लीजिये साहिल वर्ना कहीं देर ना हो जाये।” 

मन ही मन अपने पति से नाराज़ प्रिया ये कह सोने चली गई लेकिन साहिल उसकी नींद तो उड़ ही चुकी थी। 

“बेटा आज से तेरे छोटे भाई की जिम्मेदारी तेरी है अपनी औलाद समझ रखना इसे।” बाबूजी ने अपने आखिरी पलों में साहिल के बड़े भाई अलोक से ये वादा लिया था। 

अलोक और साहिल बिना माँ के संतान थे साहिल के जन्म के समय ही उनकी मृत्यु हो गई। माता पिता दोनों की जिम्मेदारी बाबूजी ने संभाली थी। दोनों भाई में दस वर्ष का अंतर था। जब अलोक नौकरी में आया तो ये सोच की घर में लक्ष्मी आ जाये बाबूजी ने अलोक की शादी इंदु से कर दी। 

दोहरी जिम्मेदारी निभाते बाबूजी समय से पहले वृद्ध हो चले थे और अपनी जिम्मेदारी अलोक पे डाल बैकुंठ निकल पड़े। साहिल के लिये अब उसके भैया भाभी ही सब कुछ थे।

अलोक अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहा था, साहिल की पढ़ाई लिखाई हो या अन्य खर्चे लेकिन ये बात इंदु को अखरती की उसका पति अपनी कमाई अपने छोटे भाई पे खर्च करे। 

इंदु पूरा प्रयास करती अलोक को रोकने की लेकिन जब बात नहीं बनी तो उसने दूसरा रास्ता निकाल लिया। बाहर के काम तो साहिल की जिम्मेदारी थी ही अब घर के छोटे मोटे कामों में भी इंदु ने साहिल को लगा दिया। कॉलेज की पढ़ाई और कामों से साहिल परेशान हो उठता लेकिन भाई के एहसान से दबा साहिल मुँह सिये रहता। 

जल्दी ही कॉलेज समाप्त कर साहिल की नौकरी भी लग गई। अब तो इंदु की लॉटरी लग गई। 

“साहिल ये लिस्ट दे रही हूँ शाम को लौटना तो सारा सामान लेते आना।” इंदु हर पहली तारीख को एक लंबी लिस्ट साहिल को पकड़ा देती और साहिल अपनी पगार का एक बड़ा हिस्सा पहले दिन ही ख़र्च करने को मजबूर हो जाता। 

सब देख सुन कर भी अलोक अब चुप रहते। आखिर इतने सालों तक इंदु की मेहनत रंग लायी थी और अब अलोक के मन में इंदु ने साहिल के खिलाफ ज़हर भर दिया था। 

“क्या बहु? देवर की शादी नहीं करोगी क्या? अब तो नौकरी भी करता है साहिल।” बड़ी बुआ के बार बार टोकने पे मज़बूरी में इंदु और अलोक ने साहिल की शादी के लिये हामी भर दी। इच्छा तो उन दोनों की नहीं थी, जानते थे कि सोने का अंडा देने वाली मुर्गी शादी के बाद हाथ से निकल सकती थी। 

इंदु ने बहुत प्रयास किया अपनी जान-पहचान में शादी हो लेकिन बुआ इंदु के इरादे समझ गई और देख भाल कर प्रिया का रिश्ता साहिल के साथ तय कर दिया। 

प्रिया दुल्हन बन आ गई। शुरुआत के कुछ दिनों में ही समझदार प्रिया ये जान गई की उसके पति की हैसियत इस घर में सिर्फ एक पर्सनल नौकर की है और उसकी नौकरानी की क्यूंकि प्रिया के आने से इंदु को और भी आराम हो गया घर और बाहर दोनों के काम साहिल और प्रिया ही करते। 

“साहिल क्यों ना हम अलग रहें?”

“नहीं प्रिया, ये घर मेरे बाबूजी का है। मेरा बचपन बीता है यहाँ। अपनी माँ को तो देखा नहीं लेकिन उनकी मौजूदगी का एहसास होता है इस घर में। और, भैया भाभी के बहुत एहसान भी है मुझपे। मैं ऐसा करने की सोच भी नहीं सकता।”

साहिल की दो टूक बात सुन प्रिया चुप रह जाती। इसी उधेड़बुन में जिंदगी कट रही थी। 

“क्या बात है साहिल किस सोच में डूबा है?” ऑफिस में साहिल को खोया देख उसके दोस्त रजत ने पूछा तो साहिल झेंप उठा। 

“कुछ नहीं दोस्त तेरी भाभी का जन्मदिन है कल, सोच रहा हूँ एक अच्छी साड़ी गिफ्ट कर दूँ।” 

“तो इसमें सोचना क्या है? चल आज ऑफिस के बाद चलते है एक अच्छी सी साड़ी ले लेते हैं।” 

शाम को साहिल, रजत के साथ बाजार जा एक सुन्दर गुलाबी जड़ी की साड़ी प्रिया के लिये ले आया। शादी के बाद पहला जन्मदिन था प्रिया का और साहिल इसे यादगार बनाना चाहता था। 

“ये क्या है देवर जी?” साड़ी की थैली हाथों में देख इंदु ने पूछताछ शुरू कर दी और जैसे ही साहिल ने बताया कि ये प्रिया के जन्मदिन का तोहफा है तो इंदु भड़क उठी। 

“इतने पैसे बेकार कर दिये जन्मदिन के नाम पे। अरे! ऐसा क्या शौक चला है जन्मदिन का? मेरे घर में ऐसे फालतू के खर्चे नहीं चलेंगे। पत्नी के आते ही फालतू के खर्च शुरू कर दिये।”

“भाभी, आप भूल रही हैं ये घर बाबूजी का है।” पति का अपमान देख आज प्रिया खुद को रोक ना पाई। 

प्रिया का बोलना था की इंदु अपना आपा खो बैठी और दोनों पति पत्नी को खुब खड़ी खोटी सुनाई।  अलोक वहीं खड़े चुपचाप सुनते रहे। साहिल के इशारे पे प्रिया आगे कुछ बोल नहीं पायी लेकिन साहिल, उसका मन अब टूट चूका था, अपने भाई भाभी के व्यवहार और उनके एहसानों के बोझ को ढोते-ढोते। 

सोचते-सोचते रात निकल गई नई किरण के साथ साहिल ने एक फैसला भी कर लिया। 

“भैया, बाबूजी के जाने के बाद आपने बहुत कुछ किया मेरे लिये लेकिन अब आपका भी परिवार है।  मैंने घर देख लिया है आज शाम ही प्रिया और मैं वहाँ शिफ्ट हो जायेंगे।”

“ठीक है साहिल जब तुमने सोच लिया है तो तुम्हें रोकूंगा नहीं लेकिन इस घर पे तुम्हारा हक़ नहीं होगा। सोच लेना तुमपे आज तक जो खर्च लिया उसके बदले तुम्हारा हिस्सा मेरा हुआ।”

अपने पिता तुल्य भाई के मुँह से ऐसी बातें सुन साहिल दंग रह गया। 

“ठीक है भैया अगर ऐसी बात है तो ये घर आपका हुआ। मेरे साथ तो मेरे बाबूजी और माँ का आशीर्वाद है फिर यहाँ क्या मैं किसी भी घर में रह लूंगा। लेकिन दो पल को सोचना भैया आप क्या ज़वाब दोगे माँ बाबूजी को? एक और बात भैया आज से मैं मुक्त हुआ आपके एहसानों के ऋण से।  अब मेरे सर आपका कोई एहसान बकाया नहीं है।” 

अपने भाई को पहली बार ज़वाब दे भरे गले से साहिल और प्रिया माँ बाबूजी की तस्वीर उनकी ना मिटने वाली यादें और उनका आशीर्वाद ले निकल पड़े अपनी नई दुनिया बसाने और वहीं इंदु और अलोक ठगे से खड़े देखते रह गए। 

मूल चित्र : Still from Amazon India ad, YouTube

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