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सासू माँ का डर या माँ का प्यार…

"नहीं नहीं भाभी आप सूरज भाईसाहब को कुछ मत बताना बस आप जल्दी से आओ", कह सिया ने फ़ोन रख दिया और निशा परेशान हो उठी। 

“नहीं नहीं भाभी आप सूरज भाईसाहब को कुछ मत बताना बस आप जल्दी से आओ”, कह सिया ने फ़ोन रख दिया और निशा परेशान हो उठी। 

सुबह सुबह सिया का नंबर मोबाइल पे फ़्लैश होता देख निशा आश्चर्य में पड़ गई।

“क्या बात है सिया इतनी सुबह कॉल किया सब ठीक तो है?”

“नहीं भाभी कुछ ठीक नहीं है। आप जैसे ही फ्री हो घर आ जाइये।” सिया की घबराई आवाज़ सुन निशा भी डर गई।

“क्या बात है सिया तुम और नितिन भाईसाहब तो ठीक है ना? कोई दिक्कत हो तो बताओं हम दोनों अभी आते हैं।”

“नहीं नहीं भाभी आप सूरज भाईसाहब को कुछ मत बताना बस आप जल्दी से आओ।” इतना कह सिया ने फ़ोन रख दिया और निशा परेशान हो उठी। क्या बात होगी? ऐसा तो सिया ने कभी नहीं किया।

सिया और निशा पड़ोसी थे अभी एक साल पहले ही सिया और नितिन की शादी हुई थी और निशा के बराबर वाले फ्लैट में सिया और नितिन शिफ्ट हुए थे। सिया और निशा के बीच की हाय-हेलो कब गहरी दोस्ती में बदल गई, पता ही नहीं चला। निशा उम्र में सिया से बड़ी और दो बेटियों की माँ थी।

जल्दी जल्दी सारा काम निपटा निशा ने सिया के घर का रुख किया। डोरबेल बजी नहीं कि सिया ने दरवाजा खोल दिया।

“ये क्या सिया दरवाजा पकड़ के ही खड़ी थीं? क्या जो बेल बजी नहीं की खोल दिया दरवाजा!” हँसते हुई निशा ने कहा तो फीकी मुस्कान लिये सिया दरवाजा बंद कर सोफे पे बैठ गई।

“आपको मज़ाक सूझ रहा है? भाभी यहाँ मेरी जान सुख रही है!”

“सॉरी सॉरी बाबा, अब बता क्या बात है जो मुझे जल्दी में बुलाया?”

“भाभी, मम्मीजी आ रही हैं।”

“फिर तो ये तो ख़ुशी की बात है सिया।”

“अरे मेरी मम्मी नहीं, नितिन की मम्मी यानि मेरी सासूमाँ।”

चिढ़ कर सिया ने बोला तो निशा समझ गई सिया को भी सास फोबिया हुआ है लेकिन सिया को परेशान देख निशा ने सिया को छेड़ना उचित नहीं समझा।

“पहले ये बताओं यूं अचानक कैसे प्रोग्राम बना आंटी जी का?”

“वो बात ऐसी है की कल मेरी प्रेगनेंसी पॉजिटिव आयी बस फिर क्या था नितिन ने मम्मीजी को दादी बनने की ख़ुशखबरी सुना दी और मम्मीजी ने तुंरत कह दिया की वो आ रही है मेरी देखभाल करने।”

“क्या? तुम प्रेग्नेंट हो और मुझे पता भी नहीं सिया? अच्छी दोस्ती निभाई!” झूठा गुस्सा दिखती निशा बोली।

“आपसे कुछ छिपा सकती हूँ क्या मैं भाभी?” उदास हो सिया बोली।

“एक बात बता सिया, तुझे क्यों इतना डर लग रहा है तेरी सासूमाँ के आने से?”

“ये कैसा सवाल है भाभी? सास तो होती ही है डरने वाली चीज हर बात में टोका टोकी, जल्दी उठो, घूँघट निकाल के घूमो और दिन भर ताने सुनो मेरी सभी सहेलियों ने इतने किस्से सुनाये हैं अपनी अपनी सासूमाँ के कि मुझे तो डर ही लग रहा है कैसे मैनेज होगा।”

“ऐसा कुछ नहीं होता सिया, जरुरी नहीं की सारी सास बुरी ही हो। क्या नितिन भाईसाहब से तुम्हें कोई परेशानी है? क्या वो तुम्हारा ख़याल नहीं रखते या प्यार नहीं करते?”

“नहीं नहीं भाभी नितिन तो बहुत अच्छे पति हैं।”

तो फिर जब नितिन अच्छे हैं तो उनकी माँ कैसे बुरी हो सकती है? प्रेगनेंसी का समय बहुत नाजुक होता है, ऐसे में किसी बड़े बुजुर्ग का साथ और सहारा हो तो इससे अच्छा क्या होगा और ज़रा सोचो तुम्हारी सासूमाँ का कैसे ख़बर सुनती दौड़ी आ रही हैं, अपनी बहु का ख़याल रखने।”

हर रिश्ता कुछ लेता है और कुछ देता भी है सिया! खुले दिल से ख़ुश हो कर उनका स्वागत करो, कल क्या होगा ये सोच कर अपना आज क्यों ख़राब करना?”

सिया को समझा निशा अपने घर आ गई। कुछ जरुरी काम से निशा को अपने मायके जाना पड़ा।  बीच-बीच में सिया से बातें होती रहतीं और सिया की बातें उसकी सासूमाँ से शुरू हो सासूमाँ पे ही ख़त्म होतीं। कैसे वो सिया का ख़याल रखती, कैसे पांव में सूजन होने पे तेल की मालिश कर देती है। पूछ-पूछ कर नये डिश बना कर खिलाती है।

नौ महीने पँख लगा के उड़ गए। प्रसव पीड़ा से छटपटी सिया को कभी हौसला देती तो कभी सिर दबाती उसकी सासूमाँ। समय आने पे सिया के सुन्दर से बेटे की माँ बन गई। कुछ महीने सिया और बच्चे को संभाल उसकी सासूमाँ का अपने घर जाने का समय आ गया।

जिस दिन सासूमाँ को जाना था सिया उनके गले लग यूं बिलख रही थी जैसे अपनी माँ से बिछड़ रही हो। दूर खड़ी निशा के आँखों में भी आंसू आ गए देख कर और एक तसल्ली का एहसास हुआ कि थोड़े प्रयास से सिया और उसकी सासूमाँ का रिश्ता सास बहु से माँ बेटी का बन गया था।

मूल चित्र : Still from Phuljhadi/Blush, YouTube

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