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इन लोगों को मंदिरा बेदी का दुःख नहीं, सिर्फ़ उनके कपड़े दिखे…

मंदिरा बेदी के दुःख को समझने से अधिक उसके कपड़ों से लोगों को परेशानी हैl क्या जींस पहनने वाली महिलाओं को दुःख नहीं होता?

मंदिरा बेदी के दुःख को समझने से अधिक उसके कपड़ों से लोगों को परेशानी है। क्या जींस पहनने वाली महिलाओं को दुःख नहीं होता?

विगत दिनों बॉलीवुड के प्रसिद्ध निर्माता और निर्देशक राज कौशल की दुखद मृत्यु के बाद से उनकी पत्नी मंदिरा बेदी ट्रॉल्स के निशाने पर हैं।

अभिनेत्री मंदिरा ने अपने पति की अर्थी को कंधा भी दिया और उनके अंतिम संस्कार की सभी रस्मों में हिस्सा लिया। परंतु जैसे ही उनकी तस्वीरें जनता के सामने आईं, लोगों ने मंदिरा को ट्रोल करना शुरू कर दिया।

अपने पति की अंतिम यात्रा में मंदिरा ने सफ़ेद रंग टी-शर्ट और जींस पहनी हुई थीं। बस सारा हंगामा यहीं से शुरू हुआ। लोगों ने सोशल मिडिया साईट पर मंदिरा को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया।

बुधवार, 30 जून राज कौशल का निधन दिल का दौरा पड़ने से हो गया है। हालाँकि राज अपनी मौत से पूर्व पूरी तरह स्वस्थ थे और उनकी अचानक हुई मृत्यु ने सभी को शोक में डुबो दिया। उनकी आकस्मित मृत्यु से मंदिरा पूरी तरह टूटी नज़र आईं।

मंदिरा बेदी और राज कौशल ने 1999 में शादी की थी और उनके दो बच्चे भी हैं। उन दोनों का प्रेम विवाह हुआ था और उन दोनों की मुलाकात निर्देशक मुकुल आनंद के घर में हुई थीl उनकी दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई और दोनों ने अपने परिवार की मर्ज़ी के विपरीत जाकर शादी की थी।

क्या एक पत्नी अपनी पति की अंतिम यात्रा की साक्षी नहीं बन सकती?

जबसे इंटरनेट में मंदिरा के अर्थी उठाने की तस्वीरें आईं हैं लोगों ने उन पर सवाल खड़े कर किए।मंदिरा इन तस्वीरों में बहुत ही भावुक और बिखरी नज़र आ रही हैं और रोती हुई दिखाई दे रही हैं पर लोगों को उनके दु:ख से अधिक परेशानी उनके द्वारा ‘नहीं अपनाये हुए’ रिवाज़ों से है।

लोगों ने उनकी तस्वीरों को देख कर उनको ट्रोल करना शुरू कर दिया और एक यूजर ने लिखा कि बेटे के होते हुए वह अर्थी क्यों उठा रही हैं? हिन्दू रीतिरिवाज के अनुसार महिलाएँ अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होती हैं और पुरुष ही ये सभी क्रिया करते हैं। लेकिन आज कई महिलाएं ये ज़िम्मेदारी भी निभा रही हैं और अगर कोई महिला इसमें शामिल होना चाहती है तो उसे मना करने का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए।

क्या कपड़ों से किसी का दु:ख मापा जा सकता है?

लोगों ने उनके कपड़ों को लेकर भी उन्हें बहुत ट्रोल किया है। ट्रोल्स उन्हें सलाह दे रहे थे कि क्या वह अंतिम संस्कार के समय में  साड़ी या सलवार-सूट नहीं पहन सकती थीं? पर क्या भारतीय संस्कृति सिर्फ कपड़ों की वजह से मिट सकती है?

संस्कृति का ठेका उठाए ये लोग किसी न किसी बहाने अपने मन की भड़ास निकालते रहते हैं पर यह भूल जाते हैं कि संस्कृति कभी भी कपड़ों की मोहताज़ नहीं होती। वो संस्कृति ही क्या जो कपड़ों से मिट जाए?

मंदिरा क्या पहनती हैं ये उनका व्यक्तिगत मत है और किसी को अधिकार नहीं है कि उनको कपड़ों को मानसिक रूप से परेशान  किया जाए।

हालाँकि सोशल मीडिया में उनके पक्ष और विपक्ष में चर्चा छिड़ी हुई है। कुछ उनके समर्थन में हैं और उनके द्वारा तोड़े गए जेंडर स्टीरियोटाइप पर उनकी तारीफ भी कर रहे हैं। जबकि कुछ लोग उनके कपड़ों और रूढ़िवादी परम्पराओं को तोड़ने पर उनको बुरी तरह ट्रोल कर रहे हैं।

वह महिलाओं के लिए हमेशा एक मिसाल रही हैं और उन्होंने महिला सशक्तिकरण के कई उदाहरण समाज को दिए हैं। पर एक पत्नी और एक मजबूत महिला के तौर पर मंदिरा ने अपने को हमेशा साबित किया है और हम उनके लिए हिम्मत और साहस की प्रार्थना करते हैं।

मूल चित्र : Hindi News 18 

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SHALINI VERMA

I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...

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