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उसकी आँखें नम थीं और चेहरा सुर्ख लाल…

शीशे के सामने खड़ी रेखा सीधे हाथ से सिंदूर लगाने की कोशिश कर रही थी। अमित ने रेखा के हाथ से सिंदूर की डिब्बी ले उसकी मांग भर दी। 

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शीशे के सामने खड़ी रेखा सीधे हाथ से सिंदूर लगाने की कोशिश कर रही थी। अमित ने रेखा के हाथ से सिंदूर की डिब्बी ले उसकी मांग भर दी। 

“देखो अमित मैं मानती हूँ नेहा को भूलना इतना आसान नहीं होगा लेकिन बेटा अपनी बच्ची को देखो। मेरी भी उम्र हो गई है कब तक तुम्हारी और प्रीति की देखभाल कर पाऊँगी? लड़की की जिम्मेदारी बहुत बड़ी होती है अमित मेरी मान तो समधन जी का प्रस्ताव मान ले और रेखा के लिये हाँ कर दे।”

बार-बार माँ के कहने पे आखिर अपनी बच्ची के बेहतर भविष्य के लिये अमित ने हामी भर ही दी।  आँखों के आंसू पोंछ माँ ने तुरंत अपनी समधन रमा जी को फ़ोन लगाया। 

“बहन जी, अमित मान गया है अब बस आप रेखा से भी हां करवा दे तो चैन से ऑंखें बन कर सकुंगी।”

अमित की माँ की बातें सुन रमा जी भी रो पड़ी, “बहन जी कभी नहीं सोचा था ऐसा दिन भी आयेगा समय हर रंग दिखा जाता है।”

फ़ोन रख रमा जी अतीत में खो गई। दो बेटियों की हँसी और प्यार से उनका घर रौशन रहता था।  पति स्कूल में प्रिंसिपल के पद पे थे। जब बड़ी बेटी नेहा शादी के लायक हुई तो प्रिंसिपल साहब ने देखभाल के अमित को चुना। अपनी विधवा माँ का अकेला बेटा था अमित। खुद के लगन से बैंक में नौकरी पा गया था। सब कुछ तसल्ली कर नेहा की शादी अमित से कर दी गई।

नेहा बहुत ख़ुश थी ससुराल में माँ जैसी सासूमाँ और इतना प्रेम करने वाला पति। दोनों परिवार में खुशियाँ ही खुशियाँ थीं। जल्दी ही प्रीति भी नेहा की गोद में खेलने लगी। 

कुछ समय बाद प्रिंसिपल साहब की तबियत गिरी-गिरी रहने लगी तो उन्होंने रेखा के लिये भी लड़के देखने शुरु कर दिये। हर तस्वीर रेखा ये कह कर छांट देती कि नहीं मुझे तो जीजू जैसा दूल्हा चाहिये। 

“देखो ना माँ दीदी के चेहरे की चमक ही बताती है की जीजू कितना प्यार करते है दीदी को।”

रेखा की बात सुन अमित चिढ़ाता, “चलो रेखा तुमसे दूसरी शादी कर लेता हूँ…”

“क्या जीजू आप भी ना?” और सब हँसते। 

“आज कैसे मज़ाक में कहीं बात सच होने चली थी।” खुद से बातें करती रमा जी का गला भर आया था। 

कुछ दिनों की भाग दौर के बाद रेखा की शादी भी तय हो गई। शादी के अगले दिन पास के मंदिर में नये जोड़े को आशीर्वाद दिलवाने नेहा साथ में ले गयी। एक घंटे बाद ही ख़बर आ गई की गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया सब बदहवास भागे। सबको हॉस्पिटल पहुंचाया गया लेकिन नेहा और रेखा का नया दूल्हा वही खत्म हो चुके थे। 

ड्राइवर और रेखा जाने कैसे बच गए थे। कुछ घंटो की सुहागन रेखा अब उसी सुर्ख़ लाल जोड़े में विधवा हो चुकी थी। बहुत गमगीन माहौल में नेहा का अंतिम संस्कार किया गया। प्रीति को संभालना सबसे बड़ी चुनौती थी साल भर की बच्ची अपनी माँ के लिये बिलख बिलख रोती रहती। रेखा की स्तिथि भी विचित्र थी सुहागन से विधवा एक झटके में बन गई थी। 

वो कहते है ना समय सारे घाव भर देता है धीरे धीरे ही सही सब सामान्य होने की कोशिश में थे। रमा जी को रेखा की बहुत चिंता रहती समाज में भी तरह तरह की बातें होने लगी थी। कुछ सोच विचार कर रमा और प्रिंसिपल साहब ने अमित की माता जी से रेखा और अमित के शादी की बात की।

अंधा क्या चाहे दो ऑंखें? वो तो कब से ऐसा ही सोचे बैठी थी लेकिन कहने से घबराती रही। रेखा भी ज़्यादा बिना सोचे समझे इस रिश्ते को मान गई। 

सादे समारोह में दोनों विवाह बंधन में बंध गए। सबसे ख़ुश प्रीति थी उसे सिर्फ मासी नहीं एक माँ मिल गई थी। रेखा ससुराल आ गई। समय बीतने लगा जो रेखा पहले जीजू-जीजू कहते अमित के आगे पीछे घूमती थी अब जितना कम होता उतनी बातें करती। सासूमाँ की सेवा कर दिल जीत लिया तो प्रीति को अपने आँचल की छाव में ले लिया। 

“बेटा, अब तू और अमित भी जिंदगी की एक नई शुरुआत कर।”

माँजी ने कहा तो रेखा ने बिना कुछ ज़वाब दिये सिर झुका लिया। दिल ही दिल में अमित के लिये झुकाव महसूस होने लगा था रेखा को लेकिन दीदी की जगह कैसे लेती ये सोच पीछे हट जाती। 

एक दिन रसोई में काम करती रेखा को प्रीति ने दौड़ के पकड़ लिया अचानक प्रीति के पकड़ने से रेखा के हाथ से गर्म दूध का भगोना छूट गया थोड़ा दूध प्रीति पे गिरा लेकिन रेखा का दाहिना हाथ बुरी तरह जल गया। 

प्रीति जलते ही जोर-जोर से रोने लगी जल्दी से प्रीति को गोद में उठा रेखा ने नल के नीचे उसका हाथ रख दिया। तब तक माँजी ने आलू मसल कर हाथों पे लगा दिया।

“ये क्या बहु कितना हाथ जल गया तुम्हारा जल्दी से नल के नीचे हाथ रखो।” जलन से रेखा के आंसू निकल पड़े थे। तब तक अमित भी ऑफिस से आ गए प्रीति का जला हाथ देख नाराज़ हो रेखा को डांटने लगे। 

“ध्यान कहाँ रहता है? बच्ची का हाथ जला दिया।” रेखा रोती हुई कमरे में भाग गई। 

“अमित बेकार में नाराज़ हो गया बहु पे? अरे देखा नहीं कितना हाथ जल गया बेचारी का?”

माँ की बात सुन अमित ने कमरे रेखा का हाथ देखा। पूरे हाथों पे फफोले हो गए थे तुरंत डॉक्टर घर आ पट्टी कर गए। 

“बहुत ध्यान देना होगा हाथों पे अमित वर्ना सेप्टिक हो सकता है।” 

अमित ने छुट्टी लें ली और प्रीती और रेखा का ध्यान रखने लगा। हाथों पे दवा लगाते, रेखा को खाना खिलाते हुए जब दोनों पास आये तो कोमल कोपले दोनों ओर फूटने लगी लेकिन संकोच की दीवार उन्हें आगे बढ़ने ही नहीं दे रही थी। 

देखभाल से अब रेखा का हाथ काफ़ी बेहतर था लेकिन पट्टी अभी भी थी। एक रोज़ अमित की नींद खुली तो शीशे के सामने खड़ी रेखा सीधे हाथ से सिंदूर लगाने की कोशिश कर रही थी। 

इतने दिनों से सुनी मांग उसे बिलकुल अच्छी नहीं लग रही थी और उलटे हाथ से सिंदूर लगाने का मन नहीं था उसका। रेखा को देख जाने अमित ने रेखा के हाथ से सिंदूर की डिब्बी ले उसकी मांग भर दी। सिंदूर की छींटे पुरे चेहरे पे बिखर गई। चौंक उठी रेखा यूं अमित को अपनी मांग भरता देख। ऑंखें सजल हो उठी उसकी और चेहरा शर्म से लाल। 

“बस रेखा अब और आंसू नहीं”, कह अमित ने रेखा को अपने सीने से लगा लिया। 

चाय ले कर आयी माँ दरवाज़े से ही आंसू पोंछती चली गई। आज तस्सली हो गई थी की अब वो सारी खुशियाँ जो कहीं खो चुकी थी उन्हें लौट कर आना ही था। 

मूल चित्र : Still from Wagh Bakri ad, YouTube

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