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भतीजा होने पर सोने के झुमके तो बनते हैं ना…

कई बार नेग के नाम पे बड़ी डिमांड कर दी जाती है बिना सामने वाले की परेशानी देखे। नेग तो ख़ुशी से लेने देने की चीज है ना की जबरदस्ती लेने की।

कई बार नेग के नाम पे बड़ी डिमांड कर दी जाती है बिना सामने वाले की परेशानी देखे। नेग तो ख़ुशी से लेने देने की चीज है ना की जबरदस्ती लेने की।

“ये क्या? अदिति तुमने पुरियों का आटा क्यों लगाया मैंने तो भठूरे का आटा लगाने को कहा था?” 

“दीदी, दही कम था इसलिए मैंने पुरियों का आटा लगा दिया क्यूंकि फिर दही भल्ले पे दही कम पड़ जाती।” 

“ठीक है अब लगा दिया तो लगा दिया लेकिन अगली बार पूछ लेना।” ऑंखें दिखाती बड़ी नन्द ने अदिति को कहा।

“ठीक है दीदी, पूछ लूँगी”, धीरे से अदिति ने कहा।

पास खड़ी बाई के चेहरे पे भी एक अजीब सी मुस्कान खेल गई थी। अपमान से अदिति का चेहरा लाल हो गया लेकिन मौके उचित ना देख चुप लगा के रह गई। 

अदिति की शादी राहुल से हुई थी। राहुल तीन बहनों का लाडला छोटा भाई था। बहुत मन्नतों के बाद राहुल का जन्म हुआ था। तीनों बहनें राहुल को प्यार भी करती और राहुल पे अपना अधिकार भी समझती थी। राहुल की मम्मी की मृत्यु काफ़ी पहले हो चुकी थी जब राहुल छोटा ही था, एक कारण ये भी था की बहनें भाई पे स्नेह लुटाती थी। राहुल के पापा राहुल और अदिति के साथ रहते थे। 

अदिति अपने ससुर जी का बहुत ध्यान रखती थी समय पे खाना दवाई सब कुछ करती। ससुरजी भी अदिति जैसी बहु पा ख़ुश थे। 

समस्या थी तो बस नन्दों का अपने मायके में अधिक दखल करना। नंदों को बुरा ना लगे इसलिए अदिति चुप लगा जाती थी। आज अदिति की बड़ी नन्द की बेटी का जन्मदिन था, इस अवसर पे सब इक्कठा थे। दही कम थी तो अदिति ने भठूरे की जगह पुरियों का आटा लगा दिया, इसी बात पे बिना आस पास देखे नन्द ने अदिति को डांट दिया। 

वैसे ये कोई नयी बात नहीं थी। जब से अदिति की शादी हुई थी उसकी नंदें कोई मौका नहीं छोड़ती थी अदिति को नीचा दिखाने में। खैर बातों को टालना अदिति को आता था सो अदिति ने टाल दिया। 

कुछ समय बीता और अदिति के तरफ से ख़ुशख़बरी भी आ गई। बच्चा आने की बात सुन घर में सब ख़ुश थे। राहुल भी अब ज्यादा ख्याल रखता अदिति का। तीनों नंदे भी हालचाल पूछती रहती और हर बार याद दिला देती, “अदिति नेग तैयार रखना भतीजा होगा तो झुमके लेंगी हम तीनों बहनें।” अदिति हॅंस कर रह जाती। 

देखते देखते समय बीत गया और डिलीवरी के लिये अदिति को अस्पताल जाना पड़ा। ऑपरेशन से सुन्दर बेटा हुआ लेकिन बच्चे को जॉन्डिस हो गया और बच्चा हुआ भी कमजोर था, तो उसे डॉक्टर अपनी निगरानी में भर्ती कर लिया।

भतीजे के होने की ख़बर सुन तीनों नंदे अस्पताल में ही राहुल को कुआँ पूजन के दिन झुमके लाने को कहने लगी। बहनों की बातें सुन राहुल परेशान हो गया। 

“क्या हुआ राहुल आप खुश नहीं है क्या?” राहुल को परेशान देख अदिति ने पूछा।

“नहीं अदिति ऐसी बात नहीं है। मैं तो बहुत ख़ुश हूँ हमारा पहला बच्चा हुआ है लेकिन अपनी बहनों की बातें सुन परेशान हूँ।” 

“एक तरफ महंगे अस्पताल में ऑपरेशन का खर्चा, बच्चे को जॉन्डिस हुआ था उसकी चिंता और ऐसे में मेरी स्थति समझने की जगह मेरी बहनों को झुमको की पड़ी है?” 

बुरा तो अदिति को भी लग रहा था लेकिन उसने उस वक़्त राहुल को ही समझाना उचित समझा। 

“जाने दीजिये राहुल, बुआ है वो तीनों तो भतीजे के होने की ख़ुशी में नेग लें रही है।” अदिति की बात सुन राहुल सिर हिला कर हामी भर चुप रह गया। 

चार पांच दिन बाद अदिति और बच्चे को अस्पताल से छुट्टी मिल गई। अस्पताल का लम्बा बिल देख राहुल परेशान था। कुछ सेविंग तो पहले से कर रखी थी लेकिन इतना बिल आयेगा इसका आभास नहीं था। किसी तरह बिल दे राहुल बिलकुल खाली हो चूका था लेकिन ख़ुशी थी की अदिति और बच्चा स्वस्थ थे। 

“पापा, तीनों दीदियों को झुमके चाहिये नेग में। मेरे पास तो अभी पैसे बचे नहीं एक झुमका होता तो फिर भी सोच लेता लेकिन तीन जोड़ी बनवाना फिलहाल मेरे बस का नहीं।” 

“बेटा, एक काम करते है अभी अच्छी साड़ियां और चाँदी के पायल दे देते है कुछ दिनों में मेरे बीमा के पैसे आ जायेंगे तो बनवा देंगे झुमके।” 

“ठीक है पापा जैसा आप कहें” पापा की बात मान राहुल ने पायल और साड़ियाँ लें ली। 

दसवें दिन कुँवा पूजन की रस्म थी। अदिति के घर से भी सब के लिये कपड़े मिठाइयाँ और बच्चे के लिये सोने की चेन आयी थी। 

“ये क्या अदिति सिर्फ साड़ियाँ और हजार रुपये का शगुन यही आया तुम्हारे मायके से? तुम्हारे घर वाले तो बहुत कंजूस निकले अब माँ होती तो उनके लिये भिजवाते ना फिर अब तो हम ही उनकी जगह तो हमें तो कुछ गोल्ड देना बनता ही है।”

बड़ी नन्द ने कटाक्ष किया तो छोटी कहाँ चुप रहती, “चलो जो दिया सो दिया अब तुम दोनों निकालो झुमके देखूं तो कैसी डिज़ाइन लिया राहुल ने।” 

नन्दो की बातें सुन अदिति के आँखों में आँसूँ आ गए, “कैसी बहनें है ये क्या इन्हें दिख नहीं रहा की इनके भाई की परेशानी?” 

राहुल के पापा जो अब तक सब चुपचाप सुन रहे थे उन्हें भी गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन खुद पे नियंत्रण रख बेटियों को समझाया, “देखो तुम तीनो फिलहाल तो साड़ियां और पायल रखो झुमके बाद में बनवा देंगे हम।” 

“ये क्या बात हुई पापा? एक ही भाई है और पहला भतीजा हुआ है। ऐसे में तो हमें कंगन मिलने चाहिये लेकिन हम बहनें झुमको से भी फिलहाल ख़ुश हो जायेंगी लेकिन हाँ हमें बिना झुमको के नेग लिये तो कोई रस्म ना करें हम।” सबसे छोटी नन्द ने साफ साफ कह दिया। 

राहुल के पापा अवाक् रह गए। “तुम तीनों सगी बहनें हो की दुश्मन हो अपने भाई की। क्या तुम लोगो दिख नहीं रहा कितना खर्च हुआ है अस्पताल में और मत भूलो तुम्हारा भाई की एक साधारण प्राइवेट नौकरी है कोई बड़ा सरकारी अफसर नहीं और ना तुम्हारा पिता कोई करोड़पति है। तुम सब को अदिति बहु के घर से भी सोना चाहिये? कहाँ लिखा है की भाभी के मायके से नन्दों को गोल्ड ही मिले नेग में?” 

“नेग के नाम पे मेरी बहु बेटे को लूटना और उन्हें नीचा दिखाना बंद करो। मुझे तो शर्म आती है कि तुम मेरी बेटियां हो। अगर बुआ की रस्म करनी हो तो करो वर्ना बहुत सी लड़कियाँ है जो मेरे पोते की बुआ बन रस्म कर देंगी।”

अपने पिता का रौद्र रूप देख तीनों बहनों की सीटी-पीटी गुम हो गई।चुपचाप तीनों रस्म निपटाने में लग गई और वही राहुल और अदिति ने चैन की सांस ली। 

कई बार हम देखते है की नेग के नाम पे बड़ी डिमांड कर दी जाती है बिना सामने वाले की परेशानी देखे। नेग तो ख़ुशी से लेने देने की चीज है ना की जबरदस्ती लेने की। ऐसे नेग का क्या फायदा जो इंसान अपने इच्छा से नहीं बल्कि विवश हो कर दे। 

मूल चित्र: Still from Show Kya Haal Mr.Panchal

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