कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

कल तुम्हारे नाम बदलने की रस्म करनी है…

अतुल जी नाम बदलने की रस्म पुराने समय के रिवाज़ थे, जब अर्रेंज मैरिज में लड़के लड़की मिलना तो दूर, शादी से पहले एक दूसरे को देखते भी नहीं थे।

अतुल जी नाम बदलने की रस्म पुराने समय के रिवाज़ थे, जब अर्रेंज मैरिज में लड़के लड़की मिलना तो दूर, शादी से पहले एक दूसरे को देखते भी नहीं थे।

रौशनी का आज ससुराल में पहला दिन था। मायके के अनगिनत यादों को अपने आँचल में समेटे ससुराल की देहलीज पे रौशनी खड़ी थी। गृहप्रवेश के साथ छोटी मोटी रस्में भी शुरु हो गईं। रौशनी भी भारी गहनों और साड़ी में सिमटी दुल्हन बनी बैठी थी कि तभी सासूमाँ आयी, “चलो बहु अब आराम कर लो, कल नाम बदलने की रस्म भी करनी है तो जल्दी उठना होगा।”

रौशनी परेशान हो उठी, जिस पल से डर रही थी वो सामने था। कमरे में नई नवेली दुल्हन को परेशान देख अतुल पूछ बैठा, “आज की रात तो खुशियों की रात है, ऐसे में तुम उदास क्यों हो रौशनी?”

सकुचा कर रौशनी ने कहा, “माफ़ कीजियेगा अतुल जी, लेकिन मैं अपना नाम या सरनेम नहीं बदलना चाहती।”

“क्यों रौशनी?” अब अतुल सोच में पड़ गया।

“अतुल जी ये तो पुराने समय के रिवाज़ थे, जब अर्रेंज मैरिज में लड़के लड़की को मिलना तो दूर शादी से पहले एक दूसरे को देखते भी नहीं थे। बड़े बुजुर्ग ये सोच कर लड़के के नाम से मिलता जुलता नाम लड़की का रखते कि उनमें आपसी तालमेल अच्छे से होगा साथ ही प्रेम भी। लेकिन अतुल जी आप ही सोचिये क्या इससे लड़की अपनी शादी के पहले की सारी पहचान नहीं खो देगी?

और आज तो लड़के-लड़की दोनों पढ़े लिखें होते हैं। शादी से पहले मिलना जुलना भी हो जाता है ऐसे में नाम बदलने का क्या औचित्य है? पुराने समय में शादी का संबन्ध पारिवारिक संपत्ति से भी था जब लड़की दूसरे परिवार में जाती तो वहाँ का सरनेम लगा वहाँ के संपत्ति का अधिकार भी पाती लेकिन अब तो लड़कियाँ अपने माता पिता की संपत्ति की भी अधिकारी हैं।

वो समय कुछ और था जब पितृसत्तात्मक समाज में लड़कियाँ को पढ़ाई और नौकरी करने की आजादी नहीं होती थी, जिस कारण लड़कियों को नाम बदलने में ख़ासी परेशानी नहीं होती थी। जबकि आज लड़कियाँ उच्च शिक्षा पा रही हैं, ऐसे में स्कूल से लेकर कॉलेज तक के सर्टिफिकेट में यहाँ तक कि राशन कार्ड और पासपोर्ट में भी पिता का सरनेम होता है जिसे बदलवाने में परेशानी होती है।

शादी का रजिस्ट्रेशन कराकर एक एफिडेविड कोर्ट में जमा करवाना पड़ता है, तब जा कर नाम बदल सकता है। और इन सब में जाने कितने चक्कर लगाने पड़ते है सरकारी दफ्तरों के? मैं तो बस इतना बताना चाहती हूँ अतुल जी कि नाम तो इंसान की पहचान होती है और मैं इस बदलाव के लिये तैयार नहीं।”

“मैं तुम्हारी बातों से सहमत हूँ रौशनी लेकिन आज भी लड़कियाँ नाम बदलती है।”

“बिलकुल बदलती हैं लेकिन ये अपनी इच्छा से होनी चाहिये ना कि किसी दबाव में। और अगर कोई दबाव हो तो उसका विरोध भी हम आज की युवा पीढ़ी को करनी चाहिये क्यूंकि जब विरोध होगा तभी तो बदलाव होंगे? और इस प्रयास में आज के पढ़े-लिखें लड़कों को भी लड़कियों का साथ देना चाहिये। विवाह तो प्रेम का बंधन है ऐसे में इन खोखले रीती-रिवाजों का क्या काम जो एक महिला के पहचान पे ही प्रश्नचिन्ह लगा दे? कठिन परिश्रम के बाद एक लड़की समाज में अपना एक नाम बनाती है, जिसे सिर्फ एक रिवाज़ के कारण बदल देना मेरे नज़रिये से बिलकुल अनुचित है।”

रौशनी की बातें सुन अतुल सोचने पे मजबूर हो गया। आज एक महिला के दृष्टिकोण को सुन अतुल भी इस बात से पूरी तरह सहमत था कि इन रिवाजों को बदलने का वक़्त अब आ गया है।

“तुमने तो मेरा नज़रिया ही बदल दिया रौशनी। सच है कुछ कुरीतियों का विरोध ही बदलाव लायेगा और तुम्हारे इस प्रयास में मैं तुम्हारे साथ हूँ।” अतुल का समर्थन पा रौशनी निश्चिंत हो मुस्कुरा उठी।

मूल चित्र : KIJO77 from Getty Images, via Canva Pro 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

174 Posts | 3,897,010 Views
All Categories