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वह समझ गयी कि अन्याय सहने वाला भी गलत होता है…

अब उसने सोच लिया कि वह अपने खोए हुए आत्मसम्मान को लौटा लाएगी, वह भी सालों इस घर की जिम्मेदारी निभाती आयी है बदले में सम्मान ही तो चाहिए उसे।

अब उसने सोच लिया कि वह अपने खोए हुए आत्मसम्मान को लौटा लाएगी, वह भी सालों इस घर की जिम्मेदारी निभाती आयी है बदले में सम्मान ही तो चाहिए उसे।

रुपा शादी के बाद ससुराल आते ही रसोईघर के कामों में लगा दी गई। नयी नवेली बहु के नये वैवाहिक जीवन का उल्लास उसके लिए सपना ही रह गया। कभी रसोई में तो कभी साफ सफाई में लगी रहती।

उसके पति रवि ने भी जिंदगी में समझौता करना ही उचित समझा। उसने भी कभी अपनी इच्छा-अनिच्छा को महत्व नहीं दिया। शादीशुदा जिंदगी को इसी तरह जीते हुए रुपा दो बार माँ भी बन गई। अब उसकी जिम्मेदारियां और बढ़ गयी।

घर की सुख शांति के लिए उसने कभी बड़ों के विरुद्ध आवाज नहीं उठाई। उसने बड़ों की बात का कभी पलट कर जबाव नहीं दिया। पर ननद और देवर जो उससे छोटे थे, बेवजह उसे बेवकूफ कह देते और अपमानित करते। तब भी वह उन्हें जबाव नहीं दे पाती। चुप रहने की उसकी आदत जो हो गई थी। पर उनके गलत व्यवहार से वह बहुत दुखी हो जाती थी।

उसकी बेटी बड़ी हो गयी। माँ की दशा पर उसे दुख होता। वह हमेशा माँ से कहती, “अन्याय करने वाले के समान ही अन्याय सहने वाला भी गलत होता है। गलत बातों का विरोध करो।”

बेटी की बातों को बचकानी बातें समझ वह सिर्फ मुस्कुरा देती।

बेटी कहती, “माँ तुम किस मिट्टी की बनी हो? तुम पर किसी बात का असर क्यों नहीं होता ?”

वह कहती, “घर की सुख शांति बनी रहे। इसलिए चुप रहना ही बेहतर समझती हूँ।”

गुस्से में उबलते हुए बेटी उसे समझाती, “माँ, घर की सुख शांति को बनाए रखनी की जिम्मेदारी घर के हर सदस्य की है, सिर्फ तुम्हारी नहीं। जो तुम्हारी इज्ज़त नहीं करते हैं, तुम भी उनको सही राह दिखा दो। ”

बेटी की बात सुनकर भी वह चुप रही। पर उसके मन में विचारों की आंधी चलने लगी। वह अपने खोए हुए आत्मसम्मान को लौटा लाएगी। इसके लिए उसे बदलना होगा। ठीक ही तो है। वह भी सालों इस घर की जिम्मेदारी निभाती आयी है बदले में सम्मान ही तो चाहिए उसे।

एक दिन जेठ की बेटी ने उसके बने पराठों में बेवजह कमी निकालते हुए उससे बदतमीजी से बात की तो उसे गुस्सा आ गया। वह बोली, “मैं तुम्हारी माँ के समान हूँ। माँ की तरह ही ठीक से बात करो। अगर तुम्हें पराठा पसंद नहीं है तो स्वयं बनाकर खा सकती हो। तुम बड़ी हो गयी हो।”

सारी बात सुनकर जेठानी और सासूजी रुपा को डाँटने लगीं। रुपा कुछ कहती उससे पहले ही उसके पति रवि ने कहा, “माँ और भाभी, आप लोग रुपा को क्यों डाँट रही हैं? उसने जो कहा है, बिलकुल सही कहा है।”

रुपा और रवि के बदले हुए रुप देख सब भौचक्के थे। दोनों पति पत्नी बातों को ज्यादा तुल न देकर वहाँ से अपने कमरे में चले गये।

आज रुपा को आत्मसंतोष हुआ। स्वयं के लिए उसने आवाज उठायी। वर्षों से दबी आवाज भी एक दिन अन्याय का कड़े शब्दों में विरोध करती है। उसने साबित कर दिया।

औरतों की दयनीय स्थिति को सुधारने के लिए स्वयं औरत को आगे बढ़ना होगा। तब उसकी स्थिति घर से लेकर बाहर तक मजबूत होगी।
मूल चित्र : Canva Pro 

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