कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

सोशल मीडिया स्टेटस अपडेट – अवेलेबल! असल ज़िंदगी में, ना जाने कब से अनअवेलेबल

आज जिसे भी देखो सोशल मीडिया पर दिखावे में फोटो डालता है। वो और ना जाने कितने दुनिया को दिखाने में लगे है कि देखो, हम कितना सुखी जीवन जी रहे हैं।

आज जिसे भी देखो सोशल मीडिया पर दिखावे में फोटो डालता है। वो और ना जाने कितने दुनिया को दिखाने में लगे है कि देखो, हम कितना सुखी जीवन जी रहे हैं।

साधना जी आज खिड़की के किनारे बैठी हाथ में चाय का कप लिए पुरानी यादों को याद कर रही थी। कैसे राजेश जी पूरे घर को यह खुशी का माहौल देते थे। हंसना-हंसाना, कितनी भी परेशानी हो, कभी नहीं भूलते थे। पूरा घर चहल-पहल से गूंजा रहता था। बस उनका एक सपना था, नील। नील दस साल का ही होगा, जब राजेश जी इस दुनिया से चले गए। फिर भी साधना ने उनके सपने को पूरा करने के लिए जी जान लगा दी।सरकारी नौकरी में थे, तो उनकी जगह एक क्लर्क की नौकरी साधना जी को मिल गई थी।

साधना जी नील को वह सब कुछ देने की कोशिश करती जो नील चाहता था और इस वजह से नील ज़िद्दी हो गया। उसे माँ की मेहनत कभी दिखाई नहीं दी।

फेसबुक मेनिया था। जुनून था स्टेटस अपडेट का – अवेलेबल, ट्रैवलिंग, आउटिंग, पार्टी‌ और भी बहुत। आज जिसे भी देखो दिखावे में फोटो डालता है। वो और ना जाने कितने दुनिया को दिखाने में लगे है कि देखो, हम कितना सुखी जीवन जी रहे हैं। बड़े होटल में जा रहे हैं। और ना जाने क्या क्या! चाहे घर में वो सब ना हो जो दिखा रहा है।

‘फेसबुक मेनिया था। जुनून था स्टेटस अपडेट का-अवेलेबल, ट्रैवलिंग, आउटिंग, पार्टी‌ और भी बहुत।’

नील भी उनमें से एक था। नौकरी पाकर ही उसने अपनी मनपसंद लड़की से शादी की और बस बाहर घूमना-फिरना। माँ ने खाना खाया या नहीं खाया, इसका उसे कोई मतलब नहीं था। नील की पत्नी भी नील की तरह थी, कोई ममता साधना जी के लिए नहीं थी। वह भी सुबह ऑफिस जाती शाम को लौटती और सुबह फिर काम पर चली जाती। शनिवार-इतवार फोन पर पहले से ही प्रोग्राम तय रहता, कहीं घूमने का, कहीं बाहर खाना खाने का। बस ज़रूरी बातें ही होतीं।

साधना जी के लिए कभी-कभी कुछ पैक करा कर ले आया करती थी। और एक दिन ऐसा भी आया कि दोनों की नौकरी दूसरे शहर में हो गई। साधना जी वह घर छोड़ना नहीं चाहती थी और बच्चे वहाँ रुकना नहीं चाहते थे। समय की माँ को देखते हुए साधना जी वहीं रुकी, और दोनों दूसरे शहर में चले गए।

साधना जी उम्र के हिसाब से ही उनकी तबीयत ढलती जा रही थी। कभी कभार दोनों का फोन आ जाया करते थे। साधना जी घर बुलातीं तो उनके पास पचास बहाने थे, या कभी आते थे तो सुबह आते और दो-तीन घंटे में लौट जाया करते थे। वह प्यार-मोहब्बत नाम की चीज नहीं थी कि माँ के पास दो-चार दिन रह कर गुज़ार दिए जाते। शुरू में तो साधना जी से बिल्कुल रहा नहीं गया पर धीरे-धीरे उनको आदत पड़ गई।

आज नील की फेसबुक फ्रेंड लिस्ट में तीन सौ दोस्त हैं। स्टेटस हमेशा अवेलेबल(उपस्थित) है, पर अपनी माँ की ज़िंदगी में, ना जाने कब से अनअवेलेबल(अनुपस्थित) है।

मूलचित्र : Pixabay

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

28 Posts | 174,743 Views
All Categories