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लाड़-प्यार

बच्चों की ज़िद पूरी करते-करते, हम उन्हें बिगाड़ देते हैं! और यह बात! हमें जब समय बीत जाता है, तब समझ में आती है कि लाड़-प्यार एक हद में ही करना चाहिए!

बच्चों की ज़िद पूरी करते-करते, हम उन्हें बिगाड़ देते हैं! और यह बात! हमें जब समय बीत जाता है, तब समझ में आती है कि लाड़-प्यार एक हद में ही करना चाहिए!

आज सामने के घर में किसी का सामान आया था। उत्सुकता थी, कि हमारे सामने वाले घर में कौन आया है? देखा तो दंपत्ति शायद 65 साल की उम्र के होंगे! पता नहीं क्यों, देख कर कुछ जाना पहचाना सा लगा, कि कहीं देखा तो नहीं? फिर कुछ सोचकर सुजाता अंदर आकर, घर के काम में लग गई। और अपने पति मनोज से बोली कि हमारे घर के सामने कोई बुजुर्ग लोग आए हैं। कुछ जाने पहचाने से लगे। मनोज ने हंसकर कहा कि ऐसा बहुत बार होता है।

“थोड़ी देर बाद जाकर पूछ लूंगी कि कुछ चाहिए तो नहीं ? बुजुर्ग हैं, तो बाजार से कहां लेने जाएंगे, कुछ खाने पीने के लिए?”

” तुम ऐसा करो! कुछ पूरी-आलू और चाय बना लो और वह उन्हें दे आना। पड़ोसियों के नाते इतना तो हमारा फर्ज बनता ही है”, मनोज ने कहा।

“हां! लंच बनाने की तैयारी तो कर ही रही हूँ, तो पूरी आलू ही बना लूंगी।”

सुजाता ने पूरी आलू बनाए और एक केतली में चाय भरी और दो कप लेकर वह सामने वाले घर में चली गई। दरवाजा खुला ही था। मजदूर सामान रख रहे थे। नमस्ते अंकल! नमस्ते आंटी! मैं आपके सामने के घर में ही रहती हूँ, सुजाता! आपके लिए चाय और नाश्ता लाई हूँ। सामान उतारते देखा, तो सोचा आप थके होगें!

ध्यान से, जब सुजाता ने देखा तो कुछ पहचानी सी सूरत लगी। तभी अंकल जी बोले,”अरे बैठो-बैठो बिटिया।” वह तो शायद नहीं पहचान पाए थे, पर सुजाता के दिमाग में अचानक बहुत पुरानी यादें सामने आ गई! आंटी रॉबिन की मम्मी पापा तो नहीं आप? अब वह भी अचंभे से देखने लगे। हां, हां! बेटी! तुम कैसे जानती हो?

हम आपके घर के सामने वाले घर में रहा करते थे! शर्मा जी! उनकी बड़ी बेटी सुजाता हूँ!

आंटी,”अरे वाह! किस्मत ने खूब मिलाया!”

अंकल जी हँस कर बोले, “कैसे हैं, तुम्हारे मम्मी पापा? बहुत साल के बाद देखा! तब तो तुम छोटी सी थी!”

“हाँ जी! ठीक है सब! आंटी जी, ना जाने, कितने सालों के बाद आपको देखा है? तब तो शायद मैं दसवीं क्लास में होती थी।”

तभी मनोज भी आ गये! बातें सुनकर बोले,”हम आपके घर के सामने ही रहते हैं, कुछ भी जरूरत हो तो बोलिएगा हमें!”

“बेटा धन्यवाद! जो तुमने हमारे लिए इतना सोचा।”,अंकल जी बोले।

“अंकल! पहले तो मैंने पड़ोसी के होने के नाते खाना दिया था। परअब तो आप हमारे अपने हैं, तो कोई भी चीज की जरूरत हो तो, बेझिझक हमें बोल दीजिएगा!”

और ऐसे सुजाता उनका हालचाल पूछने धीरे-धीरे रोज़ आने जाने लगी! परन्तु रॉबिन की बात पर दोनों कुछ चुप हो जाते थे। सुजाता के मन में प्रश्न उठ जाते थे। उसने रॉबिन के परिवार का फोटो दिखाने के लिए कहा कि उसका परिवार कैसा है?

तब दोनों की आँखों में एक नमी सी आ गई और उन्होंने रॉबिन के परिवार का फोटो सुजाता को दिखाया।

सुजाता ने पूछा, “फोन आता होगा उसका?”

वे बोले,”रॉबिन हमारा कहां?”

“क्यूँ, क्या हुआ, अंकल?”

तब सुजाता ने कहा कि मुझे अच्छे से याद है, आपने अपने छोटे भाई के बेटे, रॉबिन को गोद लिया था! और उसको इतना लाड़-प्यार करते थे कि पूरी कॉलोनी आपको हमेशा कहती थी कि उसकी हर बात की जि़द पूरी ना किया करें! यह सबको पता है, आपने बहुत लाड़-प्यार से पाला है, रॉबिन को! हम तो अपने मम्मी-पापा से झगड़ा करते थे कि रॉबिन की हर बात उनके मम्मी-पापा पूरी करते हैं,आप नहीं!

हाँ बेटा! रुआँसी आवाज से आंटी बोलीं, “वही चीज अगर हम, तब पूरी ना करते, तो आज रॉबिन ऐसा नहीं होता! धीरे-धीरे उसकी जिद पूरी करते-करते, वह इतना जिद्दी बन गया था कि उसे जो लेना था, वह बस चाहिए ही था! किसी भी हालत में कैसे भी! धीरे-धीरे लाड़-प्यार में, उसकी उम्र से जल्दी, सब सामान मिल जाते थे। कार! बाइक! जो उसने बोला और सस्ती पर, वह हाथ नहीं रखता था! क्योंकि आदत हमने ही बिगाड़ रखी थी। ना करने पर, जवाब देता! बाहर ही दोस्तों में रहता! गोद लिया था उसे, तो डर भी था, कोई हम पर ऊँगली ना उठाए, कि सगे जैसा प्यार नहीं दिया! और बहुत सालों में बच्चा आया था, इसलिए भी प्यार की अति कर दी!” और आंटी जोर से रोने लगीं। हम दोनों की आँखों में आँसू थे!

“जब उसकी शादी हुई तो हम फूले न समाए और हमने अपनी सारी जायदाद, उनके नाम कर दी और उसका उसने फायदा उठाया! पर हम बातों को नजरअंदाज करते आए। पत्नी, अगर कुछ सहयोग वाली होती, तो शायद उसे समझा बुझा देती। पर उसने भी, उसी का साथ दिया और उन दोनों ने हमें  घर से बेदखल कर दिया। तब मैं सरकारी नौकरी में था, अब रिटायर हो गया हूँ। इसीलिए अब यहां पर किराए पर रहने के लिए, सामने आया हूँ।”

अंकल बड़ा दुख हुआ! मनोज ने भी कहा और उनको पैर छूते हुए उनको गले लगा लिया! “अंकल अब आप कभी नहीं समझना कि आप अकेले हैं, हम हैं! रॉबिन ने आपके साथ जो किया वो उसके साथ है, पर आज से आपका रॉबिन मैं ही हूँ! मनोज और आप हमारे माता पिता की तरह ही रहेंगे!”

रॉबिन की मम्मी, पापा की आँखों में खुशी के, आँसू थे। ढेरों आशीर्वाद उनके दिल से निकल रहे थे। सुजाता को भी अपने ऊपर गर्व महसूस हो रहा था, कि मनोज उसके जीवन साथी हैं। कभी-कभी परिस्थितियों में बच्चों की ज़िद पूरी करते-करते, हम उन्हें बिगाड़ देते हैं! और यह बात! हमें जब समय बीत जाता है, तब समझ में आती है कि लाड़-प्यार एक हद में ही करना चाहिए!

मूल चित्र: Canva

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