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Aarti Sudhakar Sirsat

Author✍ Student of computer science Burhanpur (MP)

Voice of Aarti Sudhakar Sirsat

क्या मैं हर घर में परायी ही रहूंगी?

एक घर ने नाम रखा है, ये तो परायी है, तो दूजा घर कहता है ये तो पराये घर से आयी है, और नाम जिसका रखा है दुनिया ने बोझ...

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बाकी सब तो वैसा का वैसा ही रहेगा…

पिता कैसे अपने कलेजे को छलनी होने से रोक पाएगा, ज्यादा कुछ नहीं बस वह अपनी बेटी के घर का मेहमान हो जाएगा, बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा।

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इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है…

कई बीमारियाँ भी निकलेगी और उन बीमारियों का ईलाज भी होगा। लेकिन इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। ये तो सदीयों से चली आ रही है...

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एक नारी की दास्तान

कभी- कभी दम घुटता है इन ऊंची- ऊंची दीवारों में। खुली हवा भी कैसे खाऊंहैवान बैठे है सडक़ों के किनारों में।

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अरे आपने इतना अच्छा रिश्ता छोड़ दिया…

मोहन जी आपकी बेटी ने इतना अच्छा रिश्ता तोड़ दिया और आप उसे डाँटने कि जगह पर आप प्यार से बात कर रहे हो...

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