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मोहन जी आपकी बेटी ने इतना अच्छा रिश्ता तोड़ दिया और आप उसे डाँटने कि जगह पर आप प्यार से बात कर रहे हो...
मोहन जी आपकी बेटी ने इतना अच्छा रिश्ता तोड़ दिया और आप उसे डाँटने कि जगह पर आप प्यार से बात कर रहे हो…
“अरे! गीता तु अभी तक तैयार नहीं हुई है। सुबह से मैं कितनी बार बोल चुकी हूं, लेकिन तू है कि सुनती ही नहीं। बिल्कुल अपने पापा पर गई है। क्या और इक बार बोलना पड़ेगा तुझे। बस बहुत हुई पढ़ाई, अब किताब रख और जल्दी से तैयार हो जा, सुना क्या? लड़के वाले कभी आते ही होंगे। हे भगवान क्या लड़की है, सुबह से चार बार चाय पी चुकी है। चारों कप वहीं पड़े हैं। और पता नहीं तेरे पापा भी कब आएंगे बाजार से, कब से गए हैं।”
“मैं भोजन कब तैयार करूंगी और मैं अकेले भी क्या क्या करूं? तू तो किचन में आने से रही। तू बड़ी अफसर जो बन गई है अब।” मीना सारी बातें एक ही सास मे बोले जा रही थी, साथ में घर के भी सभी काम कर रही थीं।
“अरे! माँ तुम क्यों इतना टेंशन ले रही हो। जो होना है वही होगा,” गीता अपनी माँ के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। “और मैंने कह दिया है न कि मुझे शादी-वादी नहीं करनी है। मैं बस यहीं रहना चाहती हूँ, तो आप क्यों जिद कर रही हो?”
“हां ओर यही कहते-कहते तू कितने लड़कों को मना कर चुकी है।”
“तो क्या करूं? तुम मानती ही नहीं हो मेरी बात को। मुझे नहीं जाना, मेरा घर छोड़कर किसी दूसरे के घर। समझीं तुम?”
“हाँ, तो क्या तु जीवन भर यही रहेगी। कभी तो जाना ही पड़ेगा न तुझे?”
“नहीं जाना न कह दिया मैंने।”
“ले तेरे पापा भी आ गए। अब उनसे ही बहस कर, कब तक मेरा दिमाग खाएगी।”
“क्या चल रहा है भई? माँ और बेटी के बीच किस विषय पर चर्चा चल रही है। मुझे भी तो पता चले।”
“तुम ही समझाओ, अपनी लाडली को मेरी बात तो इसकी समझ में ही नहीं आती है”, मीना, मोहन के हाथों में पानी का गिलास देते हुए कहती है।
“देखो न पापा। माँ मुझे यहाँ से भगाना चाहती हैं। मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी। सुना आपने?”
“ठीक है बेटा लेकिन एक बार लड़के को तो देख लो। इसके बाद किसी भी लड़के को नहीं बुलाऊंगा। ठीक है?”
“ठीक है पापा सिर्फ आप के लिए, लेकिन अब ये आखिर बार होगा।”
“हाँ बेटा। लगता है वो लोग आ गए। तुम भोजन की तैयारी करो! मैं देखता हूँ। पंडित जी, आप आइये… अन्दर आइये। अच्छा हुआ, आप आ गये। लड़के वाले भी अभी आते ही होंगे। वैसे भी आप ही की वजह से तो गीता को इतना अच्छा रिश्ता मिला है।”
“मोहन जी, वो लोग अब नहीं आएंगे, उन्होंने मना कर दिया है इस रिश्ते से।” पंडित जी अपने सिर को नीचे कि झुकाते हुए कहते हैं।
“नहीं आएंगें? लेकिन क्यों नहीं? क्या हुआ कल ही तो बात हुई थी मेरी उनसे।” मोहन धीमी आवाज में कहता है।
“उन्होंने गीता की तस्वीर देखकर ही हां कह दिया था। और उन लोगों ने देहज का भी मना कर दिया था। लेकिन वो लड़का घर जमाईं नहीं बनना चाहता है।” पंडित जी मोहन से कहा।
“लेकिन पंडित जी हमने तो घर जमाईं, ऐसा कुछ नहीं कहा ही नहीं तो? कहीं गीता ने तो नहीं कहा, ऐसा उनसे फोन करके? मोहन सोचते हुए बोले।
“गीता! मीना, जरा गीता को बुलाना।” मोहन गीता को आवाज देते हुए, मीना से कहा।
“हां… पापा कहो, क्या हुआ?”
“बेटा क्या तुम्हारी कल शर्मा जी के घर बात हुई।”
“हां पापा हुई थी। मैंने उनसे बस इतना ही कहा था कि क्या उनका लड़का शादी के बाद भी यही मेरे घर रहेगा।” गीता ने बिना हिचकिचाते, बहुत ही सरलता से यह बात अपने पापा से कह दी।
“लेकिन मोहन जी कोई लड़का अपने माता पिता को छोड़कर घर जमाईं क्यों बनेगा?” पंडित जी अपना मुँह टेड़ा करते हुए कहा।
“क्यों नहीं पंडित जी जरूर बन सकता है। अब मेरे भाई को ही देख लो। वो भी तो अपने माता पिता को छोड़कर चले गए। और घर जमाईं बन गए।” गीता ने जवाब देते हुए कहा।
“बस कर गीता और कितना बोलेगी?” मीना पीछे से गीता को डाँटते हुए बोली।
“ठीक है बेटा, कोई बात नहीं। जाओ, तुम अपना काम करो।” मोहन ने गीता से बड़े प्यार से कहा।
“मोहन जी आपकी बेटी ने इतना अच्छा रिश्ता तोड़ दिया। और आप उसे डाँटने कि जगह पर आप प्यार से बात कर रहे हो?” पंडित जी, मोहन कि ओर बड़ी हैरानी से देखते हुए कहा।
“सब बताता हूँ पंडित जी आपको…ये वहीं लड़की है पंडित जी जो मुझे मन्दिर कि सीड़ियों पर मिली थी। तब वह सिर्फ चार महीने की ही थी। और पता नहीं कौन इस मासूम को छोड़ गया था। ये वही लड़की है, जिसे आप ने घर लाने से मना कर दिया था। और कहा था कि यह लड़की अशुभ है। ये जहां भी जाएगी, वहां बस हानियाँ ही होगी।
पंडित जी, ये वही गीता है जो आज तक अशुभ अशुभ का भार उठाते आई है। आज वह एक कामयाब अफसर बन गई है। और आज हम नहीं, ये हमारा पालन कर रही है। ऐसे लग रहा है कि गीता को हम नहीं, बल्कि गीता ने हमें गोद लिया है। मैंने कोई गलती नहीं कि पंडित जी गीता को मेरे घर लाकर”, मोहन यह कहते कहते भावुक हो गया।
“मोहन जी आपने कोई गलती नहीं की गीता को गोद लेकर। मुझे अफसोस है खुद पर कि आज मैं गलत साबित हो गया।” पंडित जी का भी गला भर आया।
“ओके पापा मैं ऑफिस जा रही हूं। आती हूँ।”
“अच्छा ठीक है, मोहन जी अब मुझे भी आज्ञा दीजिये। और गीता बेटी तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारे लिए इससे भी अच्छा रिश्ता लाऊंगा। ठीक है?”
“किस के लिए पंडित जी? अब इस घर में कोई लड़की नहीं है। ये तो मेरा बेटा है”, मोहन, गीता को गले से लगा कर कहता है।
बाप बेटी का प्यार देखकर उन्हें खुद पर लज्जा आ रही थी क्योंकि गीता को मंदिर की सीढ़ियों पर छोड़ कर जाने वाला और कोई नहीं खुद वही थे। ईश्वर से कामना करते हुए कहते हैं, “हे ईश्वर, मुझे फिर से अगले जनम में गीता जैसी ही बेटी देना ताकि मैं अपनी इस गलती को सुधार सकूँ। मैं धन्य हो जाऊँगा।”
मूल चित्र : ephotocorp from Getty Images, via Canva Pro
Author✍ Student of computer science Burhanpur (MP) read more...
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