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सखी हाथ बढ़ा देना

नहीं ज़रूरत सीता बनने की,ना अहिल्या सी मूरत बनने की,तूँ तो बन जा दुर्गा काली जिसे देख डर जाए हर बलात्कारी।

नहीं ज़रूरत सीता बनने की, ना अहिल्या सी मूरत बनने की, तू तो बन जा दुर्गा काली जिसे देख डर जाए हर बलात्कारी।

हर पल, हर क्षण साथ हो तेरा
एक आवाज़ लगा देना,
सखी हाथ बढ़ा देना।

आज देखो कैसी शुभ घड़ी आयी है,
महिला ने महिला के उत्थान की क़सम खायी है।
हर पल, हर क्षण साथ हो तेरा
घर हो या हो बाहर फिर डेरा,
एक आवाज़ लगा देना,
सखी हाथ बढ़ा देना

नहीं ज़रूरत सीता बनने की,
ना अहिल्या सी मूरत बनने की,
तू तो बन जा दुर्गा काली
जिसे देख डर जाए हर बलात्कारी।
एक आवाज़ लगा देना
सखी हाथ बढ़ा देना।

अब ना झुलसे कोई भी अबला
ना मारी जाए कोई भी कोख में सरस्वती, दुर्गा
दादी, चाची, बुआ बनकर लक्ष्मी की रखवाली करना
धरा पर मुस्कुराएँ जो वो कलियाँ खिला देना
एक आवाज़ लगा देना
सखी हाथ बढ़ा देना। 

मूल चित्र: Pinterest

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