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मेरा सर उठा कर जीना डराता है तुम्हें…

क्यों उसका स्वयं के लिए जीना बन गया अपराध उसका? क्यों उसका सर उठा कर जीना रास ना आया तुम्हे? क़ुसूर क्या बस इतना था कि...

क्यों उसका स्वयं के लिए जीना बन गया अपराध उसका? क्यों उसका सर उठा कर जीना रास ना आया तुम्हें? क़ुसूर क्या बस इतना था कि…

पल-प्रति-पल सोचे वह,
पाया क्या और खोया क्यों?
क़ुसूर क्या बस इतना था,
कि स्त्री बन कर जन्मी वह?

कि क्यों ‘अस्तीत्व’ पर उसके,
हैं इतने सवाल खड़े,
कि क्यों ‘समर्पण’ हर बार,
रहा उसके ही हिस्से।

कि क्यों उसका स्वयं के लिए जीना,
बन गया अपराध उसका,
कि क्यों उसका सर उठा कर जीना,
रास ना आया तुम्हे?

मिले जवाब गर उसके सवालों का,
तो क्या खुद से नज़र मिला सकोगे?
क्या तब भी उसकी तरफ देख,
तुम्हारे अधरों पर व्यंग्यात्मक मुस्कान,
की रेखा खिंच पायेगी?

इमेज सोर्स : Still from Malabar Gold and Diamonds, YouTube

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Anchal Aashish

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