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कमाने वाला पति भी अपनी पत्नी पर निर्भर होता है, तो डिपेंडेंट कौन…

"अपने चारों तरफ देखो हर औरत, चाहे वो हाउस वाइफ हो या ऑफिस जाने वाली, अपना घर संभालती है। समझ नहीं आता कि तुम्हें इतनी शिकायत क्यों है!"

“अपने चारों तरफ देखो हर औरत, चाहे वो हाउस वाइफ हो या ऑफिस जाने वाली, अपना घर संभालती है। समझ नहीं आता कि तुम्हें इतनी शिकायत क्यों है!”

रात के लगभग 11:00 बज चुके थे, परिवार के सारे लोग कब के सोने जा चुके थे। सुप्रिया घर के सारे खिड़की दरवाजे बंद कर अपने कमरे में जा रही थी। तभी उसका ध्यान सासू मां के कमरे से आ रही आवाज की ओर गया। शायद मां को कुछ चाहिए यह सोचकर वह कमरे की ओर गई।

दरवाजा खोलने ही वाली थी कि सहसा वह रुक गई। सासु मां ससुर जी से सुप्रिया शिकायत कर रही थीं। वह कह रही थीं, “सारा दिन घर में इतने काम होते हैं जिसे करते-करते वह थक जाती है? बहू तो बस सबको दिखाने भर के लिए काम करती है। और ये भी कोई काम है? एक हमारा बेटा है कि पूरा दिन ऑफिस में थकता है, पैसे कमाता है इस घर के लिए, ये तो बस हमारे बेटे के पैसे पर मौज करती है। ज़रा दो पैसे कमा के लाये तो पता चले काम क्या होता है।” 

यह सब सुन सुप्रिया को कोई आश्चर्य नहीं हुआ। उसे पहले से पता है कि उसके ससुराल वाले उसके बारे में कैसी राय रखते हैं। ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब उसे अपने पति के पैसों पर निर्भर होने का ताना नहीं मारा जाता हो। सुप्रिया के माता-पिता भी यही कहते थे की इतना अच्छा पति है, तुम्हारा सारा खर्च उठता है। यहां तक कि उसका पति सुनील भी उसे अपने व्यवहार से निर्भर होने का एहसास कराता रहता था।

आज भी उसे अच्छे से याद है, तीन साल पहले सुनील, उसके ससुराल वाले और सुप्रिया के माता-पिता ने शादी और ससुराल की जिम्मेदारी उठाने के नाम पर कैसे उसपर उसकी नौकरी छोड़ने के लिए दबाव डाला था। सुप्रिया शादी के पहले से एडवरटाइजिंग कंपनी में काम करती थी। उसे वहां काम करना बहुत पसंद था। जब सुनील से शादी की बात शुरू हुई थी तो, सुप्रिया ने साफ शब्दों में बता दिया था कि वह शादी के बाद भी काम करते रहेगी। जिस पर सभी ने हामी भरी थी। और हुआ भी वैसा ही। सुप्रिया शादी के बाद भी ऑफिस जाती थी। प्रमोशन के दिन भी नजदीक आ रहे थे।

शादी के बाद के कुछ महीने बहुत ही आराम से बीते। सास-ससुर और पति ने घर की जिम्मेदारियों को सुप्रिया के साथ मिलजुल कर बांटा लिया था। समय के साथ-साथ धीरे-धीरे घर का माहौल बदलने लगा और घर और परिवार की सारी जिम्मेदारी सुप्रिया पर आ गई। सुबह सवेरे उठकर सास-ससुर जी को चाय देना, पति को बेड टी, सबके लिए नाश्ता बनाना और परोस कर हाथ में देना, सफाई करने वाली वाली दीदी के साथ मिलकर घर का हर कोना चमकाना और फिर दोपहर का खाना बनाकर ऑफिस जाना।

इतना ही नहीं, ऑफिस से लौटते समय सब्जी, राशन, दवाइयां और घरवालों की बाकी जरूरत की चीजों को बाज़ार से लेकर आना भी सुप्रिया के ज़िम्मे में था अब। फिर घर पहुंचते ही सब की फरमाइशओं का ख्याल रखते हुए, रात का खाना पकाना घर की बहू यानी सुप्रिया के दिनचर्या का हिस्सा बन चुका था। इतना सब करने पर भी घर वालों को कोई ना कोई शिकायत तो रहती ही थी।

पति और ससुराल वालों को खुश रखने की कोशिश में अक्सर वह अपनी सेहत और ऑफिस के कामों में ढील देने लगी थी। जिसके कारण उसकी प्रमोशन भी टल गई थी, पर तब भी ससुराल वालों की शिकायतें कम नहीं हो रही थी। सुप्रिया ने कई बार सुनील से बात करने की कोशिश की पर वह भी सुप्रिया के अच्छी पत्नी और बहू होने पर सवाल उठा देता था। उसका कहना था, “अपने चारों तरफ देखो हर औरत, चाहे वो हाउस-वाइफ है या ऑफिस जाने वाली, अपना घर संभालती है। समझ नहीं आता कि सिर्फ तुम्हें इतनी शिकायत क्यों है! नहीं संभल रहा तो ऑफिस छोड़ दो, लेकिन मेरे से सहायता की कोई उम्मीद न रखना।”

सुप्रिया ने अपनी समस्या अपने माता-पिता को बताई। उन्होंने उसे अपनी घर गृहस्थी को प्राथमिकता देने को कहा। फिर चाहे इसके लिए उसे अपनी नौकरी ही क्यों ना छोड़नी पड़े। यह सुन उसे संदेह हुआ कि उसके माता-पिता कुछ छुपा रहे हैं। बहुत पूछने पर पता चला कि सुनील और उसके घर वालों ने कई बार बातों-बातों में सुप्रिया का नौकरी करना उसकी गृहस्थी के लिए सही नहीं है, का संकेत दिया है। यह सुन वह सोच में पड़ गई। ऐसी बातें तो कई बार उसके सामने भी हुई थी पर, उसने कभी इतना ध्यान नहीं दिया था। अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारियों को निभाने और ससुराल वालों को खुश रखने के लिए सुप्रिया ने अपने करियर की कुर्बानी दे दी। अपने दु:ख को अपने अंदर समेटे अपने घरवालों और ससुरालवालों को खुश करने की कोशिश में दिन-रात लग गयी। 

आज 3 साल बाद भी वो इसी कोशिश में लगी रहती है कि सबका मन जीत ले।किसी को कोई शिकायत का मौका ना दें। पूरे घर की जिम्मेदारी उठाती है। एक ग्लास पानी के लिए भी लोग सुप्रिया को आवाज लगाते हैं। घर और घर के हर एक सदस्य का जीवन सुप्रिया के इर्द-गिर्द घूमता रहता है। अगर वह एक दिन के लिए भी बीमार पड़ जाए तो ऐसा लगता है मानो पूरे घर पर मुसीबत आ गई हो। इसलिए नहीं की घर की बहू बीमार पड़ गई है बल्कि इसलिए कि आखिर आज घर का काम कौन करेगा?  इतना सब करने पर भी किसी भी सदस्य के मन में सुप्रिया के लिए प्यार और इज्जत नहीं थी। ऐसा लगता था जैसे घर में बहू नहीं मुफ़्त की काम करने वाली को लाया गया है।

पूरा घर सुप्रिया पर निर्भर करता था, तब भी घर के लोग उसे “डिपेंडेंट” कहते थे। अगर वह खाना ना पकाये तो पूरा परिवार मैगी खा कर ही गुजारा कर ले। तब भी विडंबना है कि “निर्भर” उसे कहा जाता है।

दरवाजे के पास खड़ी सुप्रिया यह सब सोचते-सोचते अपने कमरे में कब आ गई उसे पता ही नहीं चला। मन में सवालों का ज्वालामुखी फूट रहा था। हर सवाल एक ही ओर इशारा कर रहा था कि क्या केवल पैसे की निर्भरता मायने रखती है? क्यों पत्नी या घर की बहू के ऊपर निर्भर लोग उसे निर्भरता नहीं अपना हक समझते हैं? डिपेंडेंट हमेशा हाउस-वाइफ ही क्यों कह लाती है?

मूल चित्र : Still from Short Film Meri Umeed, Bollywood Hub/YouTube

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Ashlesha Thakur

Ashlesha Thakur started her foray into the world of media at the age of 7 as a child artist on All India Radio. After finishing her education she joined a Television News channel as a read more...

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