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अगर मेडल जीतें तो हम भारत के, नहीं तो हम चिंकी, चाइनीज़, नेपाली?

मीराबाई चानू की जीत के बाद अंकिता कोंवर के मन में भी यही मलाल है कि अगर मेडल जीतें तो हम भारत के वरना चाइनीज़ हो जाते हैं?

मीराबाई चानू की जीत के बाद अंकिता कोंवर के मन में भी यही मलाल है कि अगर मेडल जीतें तो हम भारत के वरना चाइनीज़ हो जाते हैं?

कुछ बातें मज़ाक में भी अच्छी नहीं लगती लेकिन हम फिर भी उन्हें दोहराते हैं क्योंकि हम उसे महसूस नहीं कर सकते। हमारे देश के नॉर्थ-ईस्ट राज्य के लोगों के साथ भी कुछ ऐसा ही मज़ाक होता है।

पहले तो कृपा करके आप अपने देश के इन सात राज्यों के नाम जान लीजिए क्योंकि ये देश सिर्फ दिल्ली, मुंबई, यूपी, एमपी और राजस्थान नहीं है। अरुणाचल प्रदेश, असम, त्रिपुरा, मिज़ोरम, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम राज्य हमारे देश का सबसे ख़ूबसूरत हिस्सा हैं जिन्हें आप अक्सर भूल जाते हैं और इनके लोगों को भी।

ये भेदभाव दिल दुखाने वाला है और इसी दु:ख को अंकिता कोंवर ने अपनी पोस्ट के ज़रिए ज़ाहिर किया है।

कौन हैं अंकिता कोंवर?(Ankita Konwar)

यूं तो अंकिता कोंवर की अपनी अलग पहचान हैं और वो कई मैराथन भी दौड़ चुकी हैं और फिटनेस फ्रीक हैं लेकिन हम उन्हें इसलिए ज़्यादा जानते हैं क्योंकि 28 साल की अंकिता ने 55 साल के सुपरमॉडल एंड एक्टर मिलिंद सोमन से शादी की है। हम ऐसे ही हैं, हमें उपलब्धियों में नहीं कंट्रोवर्सी में मज़ा आता है।

उन्होंने भी भेदभाव का सामना किया है

ख़ैर, तो अंकिता कोंवर असम की रहने वाली हैं और उन्होंने भी अपने नॉर्थ-ईस्टर्न भाई-बहनों की तरह भेदभाव का सामना किया है। उनकी पोस्ट का हिंदी में अनुवाद है, “अगर आप भारत के नॉर्थ-ईस्ट इलाके से आते हैं, तो आप भारतीय तभी बन सकते हैं जब देश के लिए कोई मेडल जीतें, नहीं तो हमें चिंकी, चाइनीज़, नेपाली और आजकल नए नाम कोरोना से पहचाना जाता है। भारत में सिर्फ जातिवाद ही नहीं नस्लवाद भी है और ये मैं अपने अनुभव से कह रही हूं # हिप्पोक्रेट्स” और कैप्शन में लिखा है every single time। यानि ये भेदभाव एक दिन का नहीं बल्कि हर रोज़ का है।

अंकिता का ये गुस्सा जायज़ है

अंकिता का ये गुस्सा जायज़ है क्योंकि नॉर्थ-ईस्ट के नागरिकों के साथ ‘सूरज उगे तो अपना और डूबे तो उनका’ जैसा व्यवहार होता है।

अभी टोक्यो ओलंपिक्स में मणिपुर की जानी-मानी वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने सिल्वर मेडल जीतकर भारत का नाम ऊंचा किया। मेडल जीतने के बाद हर जगह उनका नाम छाया रहा और लोगों ने बस ये कहा कि देश को मेडल मिला है। लेकिन मीराबाई चानू के लिए भी ये सफ़र आसान थोड़े ना था।

आज उन्हें अगर दुनिया जानती है तो इसके लिए उन्होंने खूब संघर्ष किया है। लेकिन आज जो लोग उनके मेडल का जश्न मना रहे हैं वही लोग दरअसल उनके राज्य का नाम भी जानते होंगे। वही लोग शायद उन्हें मशहूर खिलाड़ी ना होने पर चिंकी के नाम से बुलाते या चाइनीज़ कह देते।

अगर मेडल जीतें तो हम भारत के वरना चाइनीज़ हो जाते हैं?

अंकिता कोंवर के मन भी यही मलाल है कि अगर मेडल जीतें तो हम भारत के वरना चाइनीज़ हो जाते हैं?

सच में, कुछ लोगों तो लगता है कि सिक्किम, मणिपुर वगैरह अलग देश हैं। भारत उनका भी उतना ही है जितना हमारा है। हमें शर्म आनी चाहिए जब हम किसी नॉर्थ-ईस्टर्न को देखकर ये बोलें कि ये तो बाहर वाले हैं क्योंकि असल में तो हमसे ज़्यादा उन्होंने अपने क्लचर और पुरानी सभ्यताओं को ज़िंदा रखा है। इन्हीं राज्यों की ख़ूबसूरती को देखकर लोग कहते हैं, भारत बहुत सुंदर हैं लेकिन नॉर्थ-ईस्टर्न के साथ ऐसा भेदभाव हमारी सोच की बदसूरती दिखाता है।

नॉर्थ-ईस्ट भारत के लोगों के साथ होने वाले इस भेदभाव की कहानी बहुत लंबी है

नॉर्थ-ईस्ट भारत के लोगों के साथ होने वाले इस भेदभाव की कहानी बहुत लंबी है जो उनके साथ शारीरिक, मानसिक और रोज़गार के स्तर पर होता है। उनके चेहरे के बनावट से लेकर उनके खाने, पहनावे, कपड़े और भाषा, हर स्तर पर उन्हें बाहर वाला महसूस कराया जाता है। क्योंकि अधिकतर ये लोग हिंदी भाषी नहीं होते इसलिए उन्हें मुख्यधारा से अलग-थलग कर दिया जाता है।

जहां एक-तरफ़ इन राज्यों के लोगों विशेषकर महिलाओं के साथ अपराध की कई घटनाएं होती हैं वहीं दूसरी तरफ़ राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के 2014-16 के अपराध रिकॉर्ड के आधार पर महिला स्वतंत्रता और सुरक्षा में अन्य राज्यों की तुलना में सबसे आगे हैं।

उत्तर-पूर्व में महिलाएं, बंगाल, उत्तर प्रदेश या महाराष्ट्र की तुलना में कहीं अधिक सुरक्षित हैं। भारत देश हम सबका घर है, और हम सब इसके बराबर के हिस्सेदार हैं, ऊंच-नीच करते-करते हम 70 साल गुज़ार चुके हैं लेकिन अब भी वहीं के वहीं है। ये दूषित सोच हम सबके लिए ख़तरनाक है।

मूल चित्र : Ankita Konwar via Instagram 

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