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सूचियों के ढेर में दफन कविताएँ

न जाने कितनी ही कविताएँ गृहणियों की ऐसी ही सूचियों के ढेर में दफन मसालों और दालों के तोल बताती अपने अस्तित्व से अंजान बेमोल पड़ी सिसक रही हैं।

न जाने कितनी ही कविताएँ गृहणियों की ऐसी ही सूचियों के ढेर में दफन मसालों और दालों के तोल बताती, अपने अस्तित्व से अंजान बेमोल पड़ी सिसक रही हैं। 

एक किलो राजमा,
दो किलो मसूर,
चावल सेला पाँच किलो,
तीन किलो तूर।

साबुन टिक्की पाँच,
हल्दी की सौ ग्राम गाँठ,
गरम मसाला छोटा पैकेट,
नमक का एक बड़ा पैकेट।

बिट्टू के लिए बार्नवीटा,
छुटकी को बिस्कुट मीठा,
मेरे लिए हेयर डाई,
अम्मा को जलेबी मिठाई,
पिताजी को गज्जक पोली,
बड़े संदूक को नेपथिलीन की गोली।

एक झाड़ू और दो पोछे,
रसोई को सूती अँगोछे,
दो गुडनाईट रीफिल,
चार कोका कोला चिल्ल।

और ढेर सारी माफी उस कविता से,
जो यह गृहस्थी की जरूरत लिखते,
मेरे पास भागी आई थी,
मैंने उसकी ओर देखा तक नहीं,
और वो मर गई।

न जाने कितनी ही कविताएँ
गृहणियों की ऐसी ही सूचियों के ढेर में दफन,
मसालों और दालों के तोल बताती
अपने अस्तित्व से अंजान,
बेमोल पड़ी सिसक रही हैं।

मूल चित्र: Andrea Piacquadio via Pexels

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