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जैसी वो अट्ठारह बरस की थी…

जैसी वो अट्ठारह बरस की थी, सतरंगी-मनमलंगी, आज पचास की उम्र में उसे वैसी लड़कियाँ कतई नहीं भाती, ये कमबख्त उम्र भला इतनी दोगली कैसे हो जाती?

जैसी वो अट्ठारह बरस की थी, सतरंगी-मनमलंगी, आज पचास की उम्र में उसे वैसी लड़कियाँ कतई नहीं भाती, ये कमबख्त उम्र भला इतनी दोगली कैसे हो जाती?

जैसी वो अट्ठारह बरस की थी,
सतरंगी, मनमलंगी
नाचती, गाती, खिलखिलाती मुस्कुराती,
लड़कों से पंजा लड़ाती,
उनकी नकल कर आढ़े-तिरछे मुंह बनाती,
इठलाती-बलखाती, दुनिया के
नित नए फैशन अपनाती,
बाईक पर फर्र-फर्र
शहर भर के चक्कर लगाती,
घर आए गए को खूब सताती,
जिससे जी चाहे जुबान चलाती,
तौर तरीकों की हिदायत देती सारी,
उम्रदराज़ औरतें उसे फूटी आँख न भाती!
आज पचास की उम्र में
उसे वैसी लड़कियाँ कतई नहीं भाती,
ये कमबख्त उम्र भला
इतनी दोगली कैसे हो जाती?

मूल चित्र : Ujjwal chouhan via Unsplash

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