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पाबंदियां, ढंग के कपड़े पहनों से लेकर लड़कियों की तरह बैठो तक…

अपने पाठकों से किये प्रश्न पर आयी प्रतिक्रियाओ को देखकर लगा हाँ, देश बदल तो रहा है लेकिन अभी लड़ाई लम्बी है, संघर्ष अभी भी चल रहा है...

अपने पाठकों से किये प्रश्न पर आयी प्रतिक्रियाओ को देखकर लगा हाँ, देश बदल तो रहा है लेकिन अभी लड़ाई लम्बी है, संघर्ष अभी भी चल रहा है…

हाल ही में हम सबने इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे सेलिब्रेट करा, ठीक वैसे ही जैसे इंटरनेशनल विमेंस डे सेलिब्रेट करते हैं? वही सोशल मीडिया पर अपनी बेटी से लेकर देश की हर बेटी के लिए दो चार लाइन लिखी होगी या फॉरवर्ड किया हुआ चिपका दिया होगा। भ्रूण हत्या, बाल विवाह से लेकर बलात्कार जैसे मुद्दों पर बात करी होगी। लेकिन क्या इस बदलाव की शुरुवात आज तक आपने अपने घर से करी? या वही सालों से चली आ रही पाबंदियों से आपकी बेटियां भी गुज़र रही है। क्या आप पितृसत्ता से लड़ पाएं? या वही ‘ढंग के कपड़े पहनों से लेकर लड़कियों की तरह बैठो’ तक, सब आपकी बेटी को भी सुनना पड़ रहा है?

तो क्यों न इस इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे के उपलक्ष में एक बार सच से भी रूबरू हो लिया जाये? क्यों न जाना जाये कि क्या सच में हम एक बेहतर भविष्य के लिए बदलाव की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं?

इसीलिए हमने इस बार इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे पर अपने पाठकों से एक प्रश्न किया।

इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे पर हमने अपने पाठकों से एक सवाल किया था 

इस पर आयी प्रतिक्रियाओ को देखकर लगा हाँ, देश बदल तो रहा है लेकिन अभी लड़ाई लम्बी है।इन्ही में कुछ कमैंट्स’ को चुन कर देश के हर तबके की महिलाओं और लड़कियों की बात आप तक पहुंचा रहे हैं जो लड़कियों पर पाबंदियों के साथ चुनौतियों का एक प्रत्यक्ष नज़ारा दिखा रहे हैं। तो अगर आपने भी अगर उम्मीद की किरण के साथ इस बार इंटरनेशनल गर्ल चाइल्ड डे मनाया हो, तो इन आवाज़ों को ज़रूर सुनें।

सुमेधा सिसोडिया के शब्द हैं

मेरे ऊपर कोई पाबंदी नहीं थी मेरे माता पिता की सोच यह थी कि बच्चों को सही गलत की पहचान कराओ उन पर बंधन मत लगाओ। रही बात मेरी बेटी की तो उस पर भी कोई बन्धन नहीं है लेकिन पहले के और आज के परिवेश में बहुत फर्क आ गया है। अब बच्चों को पहले की तरह अकेले नहीं छोड़ सकते, प्रत्येक परिवार में जागरूकता और सतर्कता ही बचाव है।”

रुबिता अरोड़ा के शब्दों को जीवन में अपनाए

“हमारे लिए बहुत सी पाबंदियां थी। घर से ज्यादा देर बाहर नहीं रहना, सीधा कॉलेज जाना और फिर सीधा घर, फैशन से कोसों दूर, ऊंची आवाज में बोलने व हँसने पर रोक, सही होने के बावजूद कई बार अपना पक्ष रखने की अनुमति नहीं थी। शिक्षा का मकसद आत्मनिर्भर बनाना नहीं ब्लकि अच्छा घर व वर ढूंढने तक था। लडकियों की योग्यता का मापदंड बाहरी सुंदरता व घरेलू कार्यों में दक्षता था। परन्तु अब समय बदल चुका है।

मैने अपनी बेटी पर पाबंदियां नहीं लगाई बस कुछ दिशा निर्देश जरूर दिये हैं। मैं चाहती हूं मेरी बेटी इन पाबंदियों से बाहर निकल आत्मनिर्भर बने। बाहरी सुंदरता से कहीं ऊपर उठकर अपनी काबलियत से जानी जाए। रास्ते में आने वाली मुसीबतों का सामना करने के लिए खुद सक्षम हो। पढ़ाई का मकसद लक्ष्य प्राप्ति हो, कपड़ों के चुनाव को लेकर स्वतंत्र हैं, फिर भी वही पहने जिसमें खुद को सहज महसूस करें, दोस्तों का चुनाव करने की स्वतंत्रता है फिर भी सिर्फ उन्हें चुने जो सच्चे व समझदार हो,खुद आगे बढ़े और तुम्हें भी प्रेरित करें। अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है पर जहां कोई परेशानी है बेझिझक हमारे साथ सांझा कर सकती हैं। मां बाप से कहीं आगे बढकर एक दोस्त बन हमेशा तुम्हारे साथ है।”

ममता सिंह के शब्दों में

“हां हम लोगो पर ढेर सारी पाबंदियाँ थी लेकिन मेरी बेटी को भी पाबंदियों का सामना करना पड़ता है।”

अनिशा सिध्दांत के अनुसार

“मेरे ऊपर तो बहुत सारी थी। मेरी बेटी अभी छोटी है पर मैंने सोच लिया है कि इतिहास नहीं दोहराएंगे।

उर्वी कार्तिक के सकारात्मक विचार कुछ इस प्रकार हैं

“हमारे लिए तो ढेरों पाबन्दियां थीं। लेकिन मैं मेरी बेटी को किसी पाबन्दी में नहीं रखूंगी और नाही किसी को ये हक दूंगी कि मेरी बेटी पर कोई पाबन्दी लगाए।

जूही मिश्रा अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए

“मेरे समय में ये पाबंदी थी कि लड़कियों को पढ़ाई के लिए कहीं भी नहीं जा सकती थी पर लड़के जा सकते थे, बल्कि उस समय दसवीं बारहवीं करते ही ज्यादातर लड़कियों की शादी के लिए दूल्हा ढूंढने लग जाते थे और लड़कों के लिए कोई पढ़ाई का कोर्स और होस्टल और इसी वजह से मेरा IAS officer बनने का सपना सपना ही रह गया, पर अभी मैं अपनी बेटी पर कोई पाबंदी नहीं लगाई है पढ़ लिख कर वो जो बनना चाहे वह बने, जब शादी करना चाहेंगी तब करें। दसवीं बारहवीं के बाद उसके लिए कोई अच्छा सा पढ़ाई का कोर्स ढूंढ़गी ना कि दूल्हा।

सुनीता तिवारी कहती हैं

“मेरे ऊपर तो थी लेकिन बेटी पर नहीं है।”

अनुजा यादव के शब्दों से आप भी सहमत होंगे

“तरह तरह की पाबंदियां थी पर वो सब अब बेटियों पर हावी नहीं होती, बेटियों को प्रति तरह तरह की मुहिम चलाई जा रही जा रही है और समाज को जागरूक कर रही हैं। मैं भी अपनी बेटी को हर रूढ़िवादी सोच से बचकर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करूंगी। बेटियां आपके जीवन में वह हर खुशी दे सकती है जिसे पहले लोग बेटों से ही कामना किया करते थे। लोगों को सिर्फ सोच बदलने की जरूरत है। सच तो यह है कि बेटियों के जन्म के साथ ही घर में अनुशासन की नींव पड़ती है।

आज बेटियों ने साबित कर दिया है कि वे हर क्षेत्र में सफलता का परचम फहरा रही हैं। लड़कियां सृष्टि की जननी हैं फिर उसके साथ भेदभाव क्यों। परिवार समाज की प्रारंभिक इकाई है इसीलिए अगर समाज का नजरिया लड़के व लड़कियों के प्रति बराबरी का नहीं है तो इसके लिए माता-पिता ही दोषी हैं। इसके लिए समाज के साथ-साथ स्वयं महिलाओं को ही आगे आना होगा।”

ऋतू माथुर के विचार और आज की सच्चाई

“मैं खुद अभी बेटी हूँ और मेरी मम्मी और मेरे बीच फेमिनिज़्म की लड़ाई ही चलती रहती है।”

मुक्ता मिश्रा समाज को ललकारते हुए कह रही हैं

“ढ़ेर सारी पाबंदियाँ थीं पर हम बच्चे (चाची, फुआ, मामा, मुहल्ले की हमउम्र लड़कियाँ) इन पाबंदियों से दूर थे। जब भी मौका मिलता खूब खेलते और घर आकर डाँट सुनते और कभी कभी माँ से एकाध थप्पड़ भी पर दूसरे दिन वही खेल कूद। पाबंदियों की ऐसी तैसी।”

सोनाली सोनी के सशक्त विचार

“पहले तो इस समाज में बेटी पैदा होना ही अभिशाप है। बेटी पैदा हुई नहीं की उस पर थोप दिए जाते हैं हज़ारों नियंत्रण। घरवालों के द्वारा उसका मानसिक बलात्कार और जब फिर भी बेचारी जी गयी तो बाहर के दरिंदे उसे नोच के मरने को घाट लगाए ही रहते हैं।”

कोई शादी मत करो, कमाओ, सिंगल रहो और खुश रहो। किसी को दुनिया में लाने का मतलब ये नहीं होता कि आप उस पर नियंत्रण करे। सिर्फ एक माँ के अनमुक्त गगन दे देने से लड़कियां स्वंत्रत नहीं हो सकती है जिस देश में ही रेपिस्ट की उम्र देखकर सजा दी जाती हो। संवैधानिक तौर पर भी कुछ नियम और उनका पालन करने की आवश्यकता है। बाकि ये मेरी पर्सनल सोच है।”

ये हैं अपनी बेटियों को लेकर कुछ महिलाओं के विचार। आप घबराइए मत! आप से ज़्यादा कुछ नहीं मांग रही हैं ये बेटियाँ। अपने लिए बस अपने हिस्से की थोड़ी आज़ादी मांग रहीं हैं जिन्हें आप तरह तरह के तर्क देकर टालते आये हैं।

सच में, जिन पाबंदियों में आज भी लड़कियाँ बंधी हैं वो समय के साथ और जटिल होती जा रही है। लेकिन जिस तरह हमारे पास अनगिनत बेटियों के कामयाबी के उदाहरण हैं, उसमे समय के साथ हर दिन नए नाम जुड़ते जायेंगे। बस आप देखते जाइये। तो बेहतर होगा, सबके भविष्य के लिए आप अपनी पाबंदियों के जाल से बाहर निकलें और अपनी बेटियों को उड़ने दें।

मूल चित्र : Bhupi from Getty Images Signature via Canva Pro

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About the Author

Shagun Mangal

A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...

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