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जब समानता का पाठ पढ़ाने वाले खुद ही असामनता की बातें करने लगें तो…

मैं अपनी संकुचित सोच के लिए माफ़ी चाहता हूँ। आपने सच कहा, शिक्षा का सभी पर समान अधिकार है, फिर चाहे पढ़ने का हो या पढ़ाने का।

मैं अपनी संकुचित सोच के लिए माफ़ी चाहता हूँ। आपने सच कहा, शिक्षा का सभी पर समान अधिकार है, फिर चाहे पढ़ने का हो या पढ़ाने का।

शबनम जब आकर सोफा सेट पर बैठी तो कुछ लोग उसे अजीब निगाह से देख रहे थे। शबनम को अटपटा तो लगा पर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया।

तभी रिशेप्शन पर बैठी लड़की ने कहा, “मिस शबनम आप अंदर जा सकती हैं।”

( शबनम उठकर अंदर ऑफिस में गयी)

“मैं शबनम, आदाब”, शबनम बोली।

“मार्क्स तो आपके बहुत अच्छे हैं”, प्रिंसपल ने उसकी फाइल देख के कहा। “पर एक बात बताए मोहतरमा शबनम, आपको नहीं लगता कि आपने एक अध्यापिका के रूप में एक गलत विद्यालय का चुनाव किया है?”

“जी मैं समझ नहीं पा रही कि आपने ये प्रश्न क्यों पूछा?” शबनम ने कहा।

फिर रुक के शबनम बोली, “अगर आप ये कहते कि ये विद्यालय क्यों चुना, तो मैं आपको इसके 10 कारण बता सकती थी। पर माफ़ करिए इस प्रश्न का मेरे पास कोई उत्तर नहीं है, क्योंकि मुझे नहीं लगता कि मेरा चुनाव गलत है।

मुझे हैरत इस बात की ज़रूर हो रही है कि आप इस विद्यालय की प्रिंसपल हो कर ये प्रश्न मुझसे पूछ रहे हैं। अगर मेरी जगह कोई हिन्दू अध्यापिका होती, तो आप ये प्रश्न उनसे नहीं पूछते, पर क्योंकि मैं एक मुसलमान हूँ और ये हिन्दू विद्यालय है इसलिए आप ने ये प्रश्न मुझसे पूछा। जी सच कहा न मैंने?

सच कहूँ तो मुझे आपके इस प्रश्न पे आश्चर्य हो भी रहा है और नहीं भी। आश्चर्य इसलिए, क्योंकि आप एक विद्यालय के प्रिंसपल हो कर ऐसा पूछ रहे हैं? और आश्चर्य नहीं, क्योंकि आप चाहो या न चाहो पर दूसरे की नज़रें मज़हब का भेद करा ही देती हैं।

अभी जब मैं बाहर बैठी थी, तो कुछ लोग मुझे अजीब निगाह से देख रहे थे। तब तो उनकी नज़रों को समझ नहीं पायी, पर अब कुछ कुछ समझ आ रहा है कि शायद उनको भी लग रहा होगा कि मैं ऐसे हिज़ाब पहन कर इस स्कूल में इंटरव्यू के लिए आ आयी हूँ।”

शबनम ने फिर थोड़ा रुक के गहरी सांस भर के कहा, “आपकी विद्यालय के दीवार पर कुछ स्लोगन लिखे हैं, जो हैं – ‘सभी धर्म की एक पुकार, एकता को करो साकार’, ‘अनेकता में एकता, यही भारत की विशेषता’…

जब मैंने ये स्लोगन पढ़े, तो मुझे लगा कि मेरा विद्यालय का चुनाव सही है, पर शायद मैं गलत थी, वो स्लोगन सिर्फ़ पढ़ने के लिए हैं न कि अमल करने के लिए। एक बात कहना चाहूँगी, हमारे संविधान में लिखा है कि शिक्षा सभी के लिए समान है। शिक्षा सभी का अधिकार है। फिर चाहे शिक्षा पढ़ने की हो या पढ़ाने की। इससे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए कि कौन किस धर्म का है।

मैं एक अध्यापक हूँ और मेरा ये कर्त्तव्य है कि मैं अपने देश को भावी होनहार नागरिक दूँ। मैं जब पढ़ाती हूँ तो मैं उस समय सिर्फ एक अध्यापक होती हूँ, तब मैं  मज़हब नहीं देखती।”

शबनम की बात सुनकर प्रिंसपल बोले, “मैं अपनी संकुचित सोच के लिए माफ़ी चाहता हूँ। आपने सच कहा, शिक्षा का सभी पर समान अधिकार है, फिर चाहे पढ़ने का हो या पढ़ाने का। वो जो स्लोगन विद्यालय की दीवार पे लिखे हैं, वो बस पढ़ने के लिए नहीं हैं, बल्कि अमल करने के लिए भी हैं।

आप जैसी होनहार अध्यापिका हमारे विद्यालय में आएगी तो हमारे लिए खुशी की बात होगी। मिस शबनब आप सोमवार से हमारा विद्यालय जॉइन कर सकती हैं और मैं आशा करता हूँ कि आप हमारे बच्चों के लिए भाईचारे का नया उदाहरण प्रस्तुत करेंगी।”

मूल चित्र : IBGGutenbergUKLtd from Getty Images via Canva Pro 

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