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ऐसे शुरू हुआ था आकाश और नित्या के बातों का सिलसिला। बातचीत का सिलसिला धीरे-धीरे दोस्ती में तब्दील हो गया। कुछ दिन में ही दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे।
मैं अक्सर अपना अकेलापन दूर करने के लिए पौधे से बात करती थी मुझे अच्छा लगता था ।मुझे ऐसा एहसास हुआ कि जैसे मुझे कोई सुन रहा है। पलट के देखा तो कोई नहीं था। मुझे अपनी नादानी पे हँसी आ गईं ये जानते हुए कि यहाँ मेरे सिवा कोई भी नहीं है…
मैं यानी ‘नित्या कबीर चौहान’ ये नाम है मेरा। नित्या से नित्या कबीर चौहान बस एक साल पहले ही बनी। मेरे लिए जब कबीर का रिश्ता आया तो सब मुझे भाग्यशाली कह रहे थे। मैं भी अपनी क़िस्मत पे बहुत इतरा रही थी।
इतराती भी क्यों न भला? कबीर नेवी में जो थे। नेवी वाले तो हैंडसम होते ही हैं…
लेकिन शायद खुद की नज़र भी अपने को लगती है, करीब एक साल बाद ही कबीर का देहांत हो गया।
मैं मम्मी के साथ यहाँ रहती हूं। भाभी को बच्चा होने वाला था तो वो वहीं चली गयीं। न मैंने जाने को कहा, न भाभी ने आने को कहा…
पर नित्या खुश थी क्योंकि ज़िंदगी के शोर से कहीं अधिक उसको अपनी खामोशी की दुनिया पसन्द थी।
अब इस समय नित्या, उसकी तन्हाई और उसकी बागवानी ये ही उसकी दुनिया थी। अपनी दिल की बातें इन से करके दिल हल्का कर लेती थी।
एक दिन नित्या ने देखा कि एक पौधे की टहनी जिसमें फूल लगा था वो तने से न के बराबर टिका हुआ था। सामने एक फुटबॉल पड़ी थी।
नित्या को बहुत गुस्से से बड़बड़ाई, “ये आजकल के लड़के बड़े हो गए पर बचपना नहीं जाता इनका…”
फिर नित्या ने उस टहनी को तने से बांध के बोला, “चिंता मत करो जल्दी ठीक हो जाएगा।”
तभी एक लड़के के हँसने की आवाज़ आयी।
“कौन हो तुम? और हँस क्यों रहे हो?” नित्या बोली।
“मैं आकाश…आप तो ऐसे कह रही हो जैसे ये आपकी बातें सुनते हो”, आकाश बोला।
“ये बेजुबान पौधे ज़रूर हैं, पर ये सारी बात समझते हैं। इनसे ज्यादा वफादार कोई नहीं होता क्योंकि ये हमारी बातें सुनते और है और अपने तक ही रखते हैं”, नित्या बोली।
“इसलिए आप इनसे खूब देर तक बात करती हो?”आकाश बोला।
“आप हमारी बाते चोरी-चोरी सुनते हैं? वैसे आप हैं कौन और मेरे घर में कैसे आये?” नित्या बोली।
“अरे अरे रिलैक्स! मैं कोई चोर नहीं हूँ। मैं तो अपनी फुटबॉल लेने आया था। आर्मी में हूँ तो दीवार फांद के आना कोई बड़ी बात नहीं है मेरे लिए”, आकाश बोला।
“तो आपके आर्मी में बिना बेल बजाए, चोरों की तरह दीवार कूद के आना सिखाया जाता है? आप कायदे से डोर बैल भी बजा सकते थे”, नित्या बोली।
“आपके यहां कोई पहली बार आता है तो आप ऐसे पेश आते हो?”आकाश बोला।
“आप अपनी फ़ुटबॉल ले और जाएँ यहाँ से”, नित्या बोली।
आकाश का नित्या की ज़िंदगी में आना, ऐसा था जैसे खामोशी में किसी गीत का गुनगुना।
“ये पौधे आपकी सारी बातें समझते हैं ?” आकाश ने पूछा।
“हां। ये तो मेरी खामोशियाँ भी पढ़ लेते हैं”, नित्या बोली।
“और अगर कभी जब ये आपकी खामोशी न पढ़ पायें तो?” आकाश बोला।
“तो खुद कह देती हूँ अपने दिल की बात”, नित्या ने एक फ़ूल हाथों में लेके कहा।
” ये की न आपने पते की बात! मेरे भी यही मानना है, अगर इंसान आपके मन की बात नहीं समझ पाए तो आपको खुद उसको दिल की बात बतानी चाहिए। ये इंतज़ार करते रहना कि वो कभी तो आपकी खामोशी पढ़ेगा। इससे अच्छा है कि आप खुद ही बता दो अपने दिल की बात”, आकाश बोला।
फिर एक दिन…
“ये लो तुम्हारे लिये”, आकाश बोला।
“अरे ये क्या? मैं नहीं ले सकती”, नित्या बोली।
“ले लो आज फ़्रेंड शिप डे है! रुको अभी नहीं, मेरे जाने के बाद ही खोलना”, आकाश ये कहके जाने लगा, फिर पलट के आके नित्या को गले लगाया और चला गया।
नित्या ने आकाश का गिफ्ट खोला तो उसमे एक खत था।
“नित्या…
मुझे पता है कि तुम मुझे सिर्फ अपना दोस्त मानती हो। पर मैं तुमको दोस्त से ज़्यादा मानने लगा हूँ।
मैं तुमको पसन्द करने लगा हूँ नित्या। डरता हूँ कि अगर मैं यूं ही तुमसे मिलता रहा तो कही तुमसे प्यार न हो जाये। मेरी छुट्टी कैंसिल हो गयी मुझे अभी जाना है। ये बात खत में लिख के इसलिए कही क्योंकि तुम्हारी न का सामना करने से डरता हूँ।
मेरे पास समय नहीं था और तुम मेरी खामोशी पढ़ने में पता नही कितना समय लगातीं, इसलिए खुद ही कह दिया।
ये जानते हुए कि मेरी नज़र में तुम दोस्त से ज्यादा अहमियत रखने लगी हो। ये तुम पे छोड़ता हूँ कि तुम इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहती हो या इसे यहीं पे खूबसूरत मोड़ देके छोड़ना चाहती हो।
तुम्हारा आकाश…”
नित्या ने उसी समय आकाश को कॉल किया। वो कुछ कह न पायी। पर उसे लगा जैसे आकाश ने उसकी खामोशी सुन ली, जिसमें उसकी स्वीकृति छिपी थी…
मूल चित्र : Canva Pro
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