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ग्रेटा थनबर्ग के फ्राइडेस फॉर फ्यूचर में आज लोग सोशल डिस्टन्सिंग के रहते, कई जगह डिजिटल हड़ताल में भी हिस्सा ले रहे हैं।
उम्र कोई भी हो अगर कदम उठे तो अंतर दिखता है। अकेला चना भाड़ फोड़ने की शुरुआत तो कर ही सकता है। एक किशोर लड़की ने जलवायु संकट के विरुद्ध ऐसी आवाज उठायी जो इस महामारी में भी डिजिटल आंदोलन का रूप लेकर २५ सितम्बर शुक्रवार को ‘ग्लोबल क्लाइमेट एक्शन डे’ के रूप में और अधिक सशक्त ढंग से सामने आने को है।
वह लड़की है स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग, जिसने मात्र १५ वर्ष की आयु में ही अकेले अपने स्कूल के सामने बढ़ रहे जलवायु संकट के विरोध में धरना दे दिया और इस बात की मिसाल बनी कि छोटी सी कोशिश भी बड़ा बदलाव ला सकती है।
देखते-देखते स्कूल के अन्य विद्यार्थी भी इस आंदोलन में शामिल हो चले और हर फ्राइडे ‘फ्राइडे स्ट्राइक फॉर फ्यूचर’ के बैनर तले धरना दिया जाने लगा। यह समस्या स्वीडेन की ही नहीं वैश्विक थी और धीरे-धीरे इसका असर भी वैश्विक स्तर पर दिखने लगा।
स्वीडन के स्टॉकहोम में ३ जनवरी २००३ में जन्मी ग्रेटा थनबर्ग का पूरा नाम ग्रेटा टिनटिन एलेनोरा एरनमन थनबर्ग है। सबसे पहले ग्रेटा ने अपने माता -पिता को मजबूर किया कि वह पर्यावरण के लिए खतरा बनने वाली चीजों का प्रयोग बंद करें। और १५ वर्ष की आयु में घर से बाहर पर्यावरण को बचाने की जंग छेड़ दी। उनका कहना था कि पैसों के लालच में कुछ लोग अपने वर्तमान के आगे युवा वर्ग के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उनकी मांग थी कि सरकार पेरिस समझौते के तहत कार्बन का उत्सर्जन कम नहीं बल्कि बंद करे।
ग्रेटा का कहना है कि ग्रीन हॉउस गैस का उत्सर्जन कम नहीं बल्कि बंद करने की जरूरत है, यदि हम चाहते हैं कि पेरिस एग्रीमेंट के निर्धारित लक्ष्य १.५ डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को प्राप्त कर सकें।
स्कूल स्ट्राइक फॉर क्लाइमेट अथवा फ्राइडेस फॉर फ्यूचर एक ऐसा आंदोलन है जिसमे विश्व भर के छात्र फ्राइडे को स्कूल से अनुपस्थित रहकर जलवायु संकट के विरुद्ध आंदोलन में हिस्सा लेते हैं और राजनेताओं से बढ़ रही जलवायु समस्या के विरुध कड़े कदम उठाने की मांग करते हैं।
पर २५ सितम्बर २०२० जबकि करोना महामारी भी विकट रूप लिए है, जहाँ समूह में उपस्थित हो कर धरना देना असुरक्षित है, वहां लोग डिजिटल हड़ताल में हिस्सा लेकर अपना विरोध जता रहे हैं। फ्राइडे फॉर फ्यूचर अभियान के तहत स्कूल हड़ताल आंदोलन है। एक साथ दुनिया भर में स्वस्थ जलवायु की मांग करने वाला यह एक बड़ा और प्रभावी कदम साबित होगा। इस दिन को ग्लोबल डे फॉर क्लाइमेट एक्शन घोषित किया गया।
अब वक्त आ गया है कि हम प्रकृति और मानव हित की रक्षा हेतु मिलकर कदम बढ़ायें। इन आंदोलनों का शायद तात्कालिक असर न दिखे, पर आने वाला कल एक बेहतर कल होगा जहां शायद पानी खरीदना न पड़े, हवा में ऑक्सीजन की कमी न हो भू-गर्भ का जल स्तर बढ़ा हुआ हो और खुली हवा में सांस लेने के सही मायने हों।
मूल चित्र : YouTube
पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग के शब्द आपको भी कुछ सोचने को मजबूर करते हैं क्या?
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