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बहुत पछताती हूँ जब उनका फ़ोन नहीं उठा पाती, जब उनके बीमार होने पर उनके पास नहीं जा पाती हूँ तब बेटी के रूप में खुद को हारा हुआ पाती हूँ।
सोचती हूँ कभी कितने ओहदे पाए मैंने बहन, बहु, पत्नी, माँ, गुरु, लेखक लेकिन सबसे ज्यादा हारा हुआ मैंने बेटी को पाया है।
हारा हुआ देखा मैंने खुद को जब जब भी मैं उनके पास नहीं थी एक बूँद पलकों पर आने से पहले जो समेट लेती मुझे आँचल में कभी रोई होगी सिसकियाँ भर कर अँधेरे में, उस वक़्त मैं उसके साथ नहीं थी।
जो मेरे लिए छप्पन व्यंजन बनाती तो मैं नखरे कर एक कौर खाती जो सौ आवाजों पर नहीं उठती मैं, फिर भी प्यार से मेरा सर सहलाती बिजली की तरह अब सरपट आदेशों की पालन करती नज़र आती हूँ बेटी के रूप में खुद को हारा हुआ पाती हूँ।
बहुत पछताती हूँ जब गृहस्थी में उलझी उनका फ़ोन नहीं उठा पाती “बस काम में लग गयी थी”, उनके चौथे फ़ोन पर भी इतना ही कह पाती हूँ याद करती हूँ वो ज़माना जब सब कुछ ज़रूरी छोड़ वो मेरे पास बैठ जाया करते “अरे काम तो होता रहेगा” पापा बड़ी आसानी से कह जाया करते उस वक़्त में खुद को बहुत छोटा पाती हूँ बेटी के रूप में खुद को हारा हुआ पाती हूँ।
पुरानी और बेमेल रंगों से बनी वो प्रतिच्छाया भी मेरी जब आज भी तुम सहेजे रख लेती हो “कितनी पुरानी है माँ ये, इसे फेंकती क्यूँ नहीं?” कहा मैंने और तुम उतने ही प्रणय से उसे अपने सीने से लिपटा लेती हो मेरा मन बंट गया है कितनों में, पर आज भी तुम्हारे मन पर मेरा एकाधिकार पाती हूँ उस वक़्त, बेटी के रूप में खुद को हारा हुआ पाती हूँ।
“मैं आ रही हूँ कल घर पर”, सुनते ही, मेरे आने से पहले ही भरे बाज़ार से कैसे उस पतली गली के कोने वाली दुकान से पापा “अभी फ्रेश बना हुआ” मावा लेने पहुँच जाया करते हैं चार दिन दिवाली हो ऐसे जताया करते हैं जब उनके बीमार होने पर उनके पास नहीं जा पाती हूँ उस वक़्त, बेटी के रूप में खुद को हारा हुआ पाती हूँ।
भरी आँखें और फिर मिलने की उम्मीद, जब घर छोड़ते हुए देखती हूँ रूककर फिर से उन्हें गले नहीं लगा पाती जिम्मेदारियों का चोला और ये मीठे रिवाज़ मुझे फिर उतरकर उनके पास नहीं जाने देते अंतरमन में दहाड़ कर रोते हुए भी उन्हें बचपना ना करने की बनावटी नसीहत देती हूँ उस वक़्त मैं बेटी के रूप में खुद को हारा हुआ पाती हूँ।
मूल चित्र : FatCamera from Getty Images Signature via Canva Pro
Now a days ..Vihaan's Mum...Wanderer at heart,extremely unstable in thoughts,readholic; which
अब न मैं अबला हूँ, मैं आज की वुमनिया हूँ!
खुद से खुद करती प्रश्न, कौन हूँ मैं…कौन हूँ मैं?
आप एक, आपके रूप अनेक : ब्रह्मांड स्वयं साक्षी है औरत की विविधता और एकता का
रंजनी हूँ! मैं, अब सिर्फ मैं हूँ
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