कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

अब निकल आई है, दरवाज़े से बाहर औरत

जिन निग़ाहों में थी, तलवार भी इमराह पे हराम, आ गई उनके मुक़ाबिल लिए लश्कर औरत।

जिन निग़ाहों में थी, तलवार भी इमराह पे हराम, आ गई उनके मुक़ाबिल लिए लश्कर औरत।

एक अरसे से दबी-कुचली, मुसाफिर औरत
क़ैदी ओ’ कुश्ता, ओ’ रंजीदा, ओ’ मुज़तर औरत।

उठ के ख़ुद आएंगी, अब राहें क़दम बोसी को
अब निकल आई है, दरवाज़े से बाहर औरत।

तुम हो बस तंग नज़र, तूबा तलक देखते हो
जाएगी देख, जहाँ उससे भी ऊपर औरत।

कोई अब, जिन्सी तवातिर नहीं मंगताओं में
जिस तरफ डालो नज़र, पाओ तवांगर औरत।

जिन निग़ाहों में थी, तलवार भी इमराह पे हराम
आ गई, उनके मुक़ाबिल लिए लश्कर औरत।

देखने वालों, कि ये हुस्न ए’ नज़र ने देखा
जिस जगह पहुँची, दिखाई पड़ी बेहतर औरत।

इल्म साज़ी कि क़यादत, कि सहाफ़त, कि निज़ाम
सारी नालेंन में है, पाओं बराबर औरत।

मूल चित्र: Canva

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

96 Posts | 1,398,302 Views
All Categories