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तुम ये सलवार-सूट पहन कर क्यों आई हो?

डिअर तन्वी मैं तुमको समझाने की कोशिश कर रहा हूं और तुम समझ नहीं रहीं, इस मीटिंग में तुम्हारा जाना ज़रूरी है और सेक्सी-मॉडर्न लुक में।

डिअर तन्वी मैं तुमको समझाने की कोशिश कर रहा हूं और तुम समझ नहीं रहीं, इस मीटिंग में तुम्हारा जाना ज़रूरी है और वो भी सेक्सी-मॉडर्न लुक में।

“तुम्हारा बॉडी स्ट्रक्चर काफी अट्रैक्टिव है, शादी से पहले मुझे हमेशा डर लगा रहता था, कहीं आड़ी-टेढ़ी बीवी न मिल जाए। बेवजह दोस्त भी मज़ाक उड़ाते।”

अभय ने तन्वी की कमर में हाथ डालते हुए ये बात बोली। दोनों की शादी को महज दो दिन हुए हैं। तन्वी मज़बूत और कर्मठ महिला है, साथ के साथ थोड़ी पितृसत्तात्मक समाज की पीड़िता भी।

तन्वी सारी बातें चुपचाप सुनती जाती थी। एक आह ज़रूर भरती थी और चुप हो जाती थी। उसको भी एक रोग था, क्या कहेंगे लोग, वाला।

“यार वेदांत तेरी वाइफ क्या पहन रही है? मिडी या फिर साड़ी?”

“अभय यार! अभी कुछ पता नहीं शायद साड़ी पहनेगी, विद डीप कट ब्लाउज, और तेरी शो-पीस क्या पहन रही है?” वेदांत ने चुटकी लेते हुए अभय से पूछा।

ये सारी बातें तन्वी भी सुन रही थी। खुद को शो-पीस बुलवाना उसको बिल्कुल भी पसंद नहीं आया।

“तन्वी जल्दी से तैयार हो जाओ आज बॉस की पार्टी है। तुम कुछ मॉडर्न सा पहन लेना।”

“मॉडर्न सा मतलब?”

“मतलब जो थोड़ा अच्छा लगे। थोड़ा विदेशी, थोड़ा देसी। थोड़ा खुला और थोड़ा ढका। वैसे भी मौका ऐसा है कि तुम्हारी बॉडी मेरी मदद करेगी। अगर ये लोग इम्प्रेस हुए तो अच्छे बिज़नेस ऑफर्स मिल सकते हैं मुझे।”

“अभय क्या बोल रहे हो? मेरी बॉडी, ड्रेस, खुली ये सब क्या है?”

“तन्वी ये मीटिंग इंटरनेशनल लोगों के साथ भी है। वहां ऐसी ड्रेस ही पहनी जाती है, जैसी उनको पसंद आए। अब जाओ और जल्दी से तैयार हो जाओ मैं भी रेडी हो जाऊंगा।”

“ठीक है मैं रेडी हो जाती हूं।”

“ध्यान रखना कपड़ों का।”

“हां ठीक है।”

तन्वी कुछ सोचती हुई बाथरूम में चली जाती है। वहीं अभय लिविंग रूम में बैठ कर चाय पीने लगता है। आधा घण्टा बीतने जाता है। अभय गेस्ट रूम के बाथरूम को इस्तेमाल करके रेडी हो जाता है।

“तन्वी कितना टाइम लगाओगी? मैं नहा कर रेडी भी हो गया और तुम अभी तक रूम से बाहर नहीं आईं। मैं ड्राइंग रूम में वेट कर रहा हूं आ जाना।”

“हद है तन्वी, ये क्या गवार बन कर आई हो? बड़े-बड़े बिज़नेसमेन और उद्योगपति आएंगे पार्टी में और तुम ये सूट-सलवार पहन कर आ गई? यार! इतना अच्छा फिगर और इसको कहां से छुपा कर बैठी हो। आजकल ऑफिस में सेक्सी बीवी का कॉम्पटीशन चल पड़ा है। जाओ चेंज कर आओ। मैंने गिफ्ट्स में तुमको स्लीवलेस गाउन और सेक्सी मिडिस दी हैं उनमें से कोई भी पहन लेना।”

“अभय मैं आज इसी में कम्फ़र्टेबल महसूस करती हूं। इसमें क्या खराबी है? मैं ऐसे ही जाऊंगी।”

“डिअर तन्वी मैं तुमको समझाने की कोशिश कर रहा हूं और तुम समझ नहीं रहीं। इस मीटिंग में तुम्हारा जाना ज़रूरी है और सेक्सी-मॉडर्न लुक में।”

“नहीं, अभय मैं इसी में कंफर्टेबल हूं। या फिर मैं नहीं जा पाऊंगी। सॉरी।”

“देखो अगर लेट हो गई तो बॉस मुझे सुनाएगा, मुझे गुस्सा मत दिलाओ। जाओ जल्दी चेंज करके आओ।”

“मैं इसी सूट में जाऊंगी।”

“उतार के फैंको इसको, अभी!” अभय तन्वी का दुपट्टा खींचते हुए झिड़क कर बोला।

तन्वी वहीं खड़ी रहती है। मगर एक भी आंसू नहीं निकलता। अभय उसको धक्का देने लगता है। तन्वी भी अपना बचाव करते हुए अभय को धक्का दे देती है।

“अभय तुम अपनी लिमिट्स क्रॉस मत करो मैं उस तरह की औरत बिल्कुल नहीं जो रो-धो कर आदमियों के गुस्से को शांति से झेल लूं। इतना ही है तो मिस्टर अभय आप भी अपने दोस्तों की तरह अपने लिए एक एस्कॉर्ट क्यों नहीं रख लेते? तुमने मेरा दुपट्टा नहीं खींचा बल्कि अपने करैक्टर का एक नमूना पेश किया है।”

“तन्वी तुमने मुझसे शादी क्यों की थी? अगर मेरे साथ रहना होगा, तो मेरी तरह से रहना होगा। जैसा मैं बोलूंगा वैसा करना पड़ेगा। या फिर तुम अपने घर जा सकती हो।”

“मैंने शादी की थी मगर शायद मैं तुम्हें ठीक से पहचान नहीं पाई। मुझे पूरा हक है और मैं अपनी गलती को सुधार लूंगी।”

अभय, तन्वी पर फिर हाथ उठाने की कोशिश करता है इस बार तन्वी उसको तेज़ी से धक्का देते हुए अपने कमरे में जाती है। वहीं अभय उसको गन्दी-गन्दी गालियां देना शुरू कर देता है। तन्वी अपने रूम में जाकर दरवाज़ा बन्द कर लेती है।

“ये रहा वो जोड़ा जो मैंने शादी वाले दिन पहना था। बात छोटे और बड़े कपड़ों की नहीं अभय, बात है सिर्फ इज़्ज़त और समझने की। मैं इस रिश्ते में नहीं रह सकती। तुमको जीवन संगिनी नहीं बल्कि एक शो-पीस चाहिए जिसको तुम पूरे ज़माने में घुमा सको, नुमाइश कर सको। मैं लाइफ में एक पार्टनर चाहती हूं। मालिक नहीं।”

“तुमने नशा किया हुआ है क्या तन्वी? रात गई बात गई। इतना तो होता ही रहता है घर में। हर घर की कहानी यही है।”

“बस अब सोसायटी से यही बात तो मिटानी है कि मार खाना, बेइज़्ज़त होना औरतों के लिए कहानी है। ये कहानी नहीं बल्कि अभिशाप है। बात छोटी हो या बड़ी सब झेली जा सकती है बात जब आत्मसम्मान की हो तो वहां कोई समझौता नहीं।”

“बहुत देखा है ऐसी औरतों को। हारकर उनको आना ही पड़ता है मर्दों की जूती के नीचे! बस याद रखना यहां से जाना तो आने का मत सोचना। मेरे पास बहुत सारे ऑप्शन हैं।”

“तलाक नाम से अक्सर औरतें टूट कर बिखर जाती हैं मगर अभय याद रखना मैं अपनी इस आज़ादी से खुश हो कर तुमको तलाक की अप्लीकेशन भेजूंगी। ये बात तुम याद रखना। और अब की बार किसी भी औरत से जुड़ने से पहले ध्यान रखना उसको जीवन साथी की ज़रूरत होती है, किसी मालिक की नहीं।”

मूल चित्र : Photo by Anitha Devi from Getty Images via Canva Pro

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