कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

जेसिका लाल मर्डर केस कौन भूल सकता है? रिहा हो रहे हैं मनु शर्मा …

जेसिका लाल मर्डर केस के ऐसे फ़ैसले से ना जाने कितने मनु शर्मा को एक आत्मविश्वास मिलेगा और फिर कोई जेसिका होगी जो तड़प तड़प कर दम तोड़ देगी।

Tags:

जेसिका लाल मर्डर केस के ऐसे फ़ैसले से ना जाने कितने मनु शर्मा को एक आत्मविश्वास मिलेगा और फिर कोई जेसिका होगी जो तड़प तड़प कर दम तोड़ देगी।

पुरुषवादी समाज कभी भी कहीं भी किसी भी क्षेत्र में अन्याय कर सकता है। आज ऐसी ही एक और ऐसी कहानी है जो हँसते खेलते परिवार को बर्बाद करने वाला दोषी मनु शर्मा की है, जो हरियाणा के पूर्व मंत्री विनोद शर्मा का बेटा है। मनु शर्मा को दिसबंर 2006 में दिल्ली हाइकोर्ट ने जेसिका लाल हत्याकांड के हत्यारे के रूप में आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी। पितृसत्ता के नशे में चूर राजनीति भी अपने पाँव धीरे धीरे पसार रही है। दिल्ली के उपराज्यपाल ने मंगलवार 02 जून 2020 को मनु शर्मा को जेल से रिहा करने की मंजूरी दे दी है।

क्या आपको जेसिका लाल मर्डर केस याद है?

30 अप्रैल 1999 की वह भयानक रात याद करते हुए जेसिका की छोटी बहन सबरीना लाल रो पड़ती हैं, और बताती हैं, जेसिका का जाना सिर्फ उसका जाना नहीं था हमारे घर के उजड़ने की एक मजबूत वजह रही। हम सब बिखर चुके हैं। मुझे याद है जेसिका हमेशा से बहुत महत्वकांक्षी थीं, बस उनका कसूर इतना था कि उन्होंने मनु शर्मा और उसके दोस्तों को शराब परोसने से मना कर दिया था। यह कैसी विचारधारा का प्रसार है, जो महिलाओं को मात्र एक समान समझा जाता है।

दिल्ली के टैमरिंड कोर्ट रेस्टोरेंट में उस रात जो हुआ वह बहुत वीभत्स था, किसी महिला को गोलियों के द्वारा भूना गया था। जेसिका का एक सुखी परिवार था, और सुकून से अपनी दुनिया में मग्न था। जेसिका की बहन, सबरीना ने तो दो साल पहले ही उसको माफ कर दिया था।

बात सिर्फ मनु शर्मा को माफ़ करने की नहीं

यहाँ बात माफ़ करने की नहीं आती, बात है दोषी को उसकी सज़ा के आख़िरी पड़ाव तक पहुंचाने में किस बात का संकोच? यह पुरुषवादी समाज का एक जीता जागता उदाहरण है और इसमें नारीवादी विचारधारा और उसके अस्तित्व को झकझोर कर रख दिया है। मनु शर्मा को छोड़ने की बस यही वजह रही के उसका बर्ताव अच्छा रहा। क्या आपको यक़ीन है वो दोबारा ऐसा नहीं करेगा? क्या इसको रिहा करने वाले लोग इस बात की गारन्टी ले सकते हैं? कभी नहीं।

क्या सिर्फ अच्छा बर्ताव रिहाई का कारण है? या कुछ और?

क्या हम यह महसूस नहीं करते कि अनपढ़ और आर्थिक तौर पर कमज़ोर लोगों को ही जेल में सड़ने के लिए क्यों छोड़ दिया जाता है? वे बस जमानत, रिहा होने के लिए पैसों का जुगाड़ नहीं कर पाते, इसलिए?

भारतीय जेलों के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में 68 फीसदी कैदी ऐसे हैं जिन्हें किसी अपराध के लिए किसी अदालत ने दोषी नहीं ठहराया है।  उनमें से कई को मुकदमों की सुनवाई शुरू होने से पहले ही सालों तक इंतजार करना पड़ता है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की नवीनतम रिपोर्टों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत में जेल ज्यादातर युवा पुरुषों और महिलाओं से भरे हुए हैं जो अनपढ़ या अर्ध-साक्षर हैं और समाज के सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से आते हैं।  65 प्रतिशत से अधिक अंडरट्रायल कैदी एससी, एसटी और ओबीसी श्रेणियों के हैं।  उनमें से अधिकांश जमानत शुल्क भी वहन करने के लिए असमर्थ हैं।

जेल में निश्चित समय सीमा पैसा नहीं जुर्म निर्धारित करता है

आर्थिक रूप से पिछड़े होने वाले अधिकांश उपक्रमों का एक सीधा परिणाम यह होता है कि वे जेलों के भीतर बिताते हैं, यह अपराध उस अपराध से निर्धारित नहीं होता है जिस पर उनके द्वारा प्रतिबद्ध होने का आरोप लगाया जाता है।

गरीब और मुश्किल से साक्षर होने की दोहरी मार का मतलब है कि भारत में अधिकांश कैदी कानूनी तौर पर एक त्वरित परीक्षण और अनुचित नजरबंदी से आजादी के अपने मौलिक अधिकार का इस्तेमाल करने के लिए कानूनी तंत्र को न तो जानते हैं और न ही समझते हैं।

लोग जेलों में सालों तक पड़े रहते हैं

उदाहरण के लिए, 14 नवंबर, 2019 तक, 18,46,741 आपराधिक मामले थे जो भारत में विभिन्न निचली अदालतों में 10 से अधिक वर्षों से लंबित थे।  इस 2,45,657 आपराधिक मामलों में जोड़ें, जो विभिन्न उच्च न्यायालयों में 10 से अधिक वर्षों से लंबित थे।

इसके लिए कौन जिम्मेदार है?

इस बात पर संशय बरक़रार है, हम पुलिस को बोलें या चरमराई हुई न्यायिक व्यवस्था को। कोई भी इसके लिए ज़िम्मेदार हो मगर भुगतना निर्दोषों को पड़ता है। क्या ऊँचे ओहदे वाले लोगों के लिए कोई कानून नहीं, कोई सीमा नहीं?

यह एक दुःखद फैसला है, जिसका मैं व्यक्तिगत रूप से खंडन करता हूँ। यह एक संगीन मुद्दा है, ऐसे फ़ैसलों से ना जाने कितने और मनु शर्मा पैदा होंगे और जाने कितनी और जेसिका दम तोड़ेंगी।

मूल चित्र : Twitter 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

96 Posts | 1,398,303 Views
All Categories