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तन की उड़ान तो फिर भीं रुक जाती है, मगर मन की उड़ान को रोकने वाला कोई नहीं होता, न कोई रोक सकता, खुद को उड़ने दीजिए और रूह को परवाज़ करने दें, ज़िंदगी खूबसूरत हो जाएगी।
वो देखो शिकारी आया,
संग अपने है धनुष बाण लाया,
डोरी खिंची तीर चलाया,
मेरे पंखों को है निशाना बनाया।
निर्जीव सी काया हुई लहूलुहान,
गिरी धम से धरती की कोख में,
भेदा मेरे हर अंग को,
पर मेरी जिद्द को तोड़ ना पाया।
मिट्टी की मरहम लगा,
एक लम्बी साँस भर आस की,
फिर आकाश को निहारा,
काश की थी ना कोई गुंजाइश,
टूटे पंखों को लपेट।
ली फिर एक उड़ान ख़ुद को समेट,
ली फिर एक उड़ान ख़ुद को समेट।
देखो वो शिकारी बाज़ ना आया,
जाल बिछा मुझे फिर क़ैद करने आया,
पिंजरे में मैं रहती कैसे,
बहती हवा हूँ,
मुझे बाँध पाता कैसे।
यह देख शिकारी हुआ हैरान,
सोच पड़ा …….
हर बार कैसे हुआ वो नाक़ाम,
फिर एक दिन आया,
किया एक आख़री फ़ैसला,
तन से अलग कर दिया उसने सर मेरा,
मुझ पर कर एक अंतिम वार,
क्योंकि उसे क़बूल ना थी अपनी हार।
पर नादान था वो,
ना समझ सका,
ना भाँप सका,
ना माप सका,
बिन पंखों वाले कोशिशों की उड़ान,
मेरी ख़्वाहिशों की ऊँची उड़ान।
कैसे रोकेगा अब मेरी रूह की उड़ान,
फिर लौट आऊँगी भरने मैं एक लम्बी उड़ान,
फिर लौट आऊँगी भरने मैं एक लम्बी उड़ान।
किसी ने ख़ूब कहा है,
मेरी उड़ान की पहुँच देखनी हो तो,
आसमान को कह दो,
थोड़ा और उँचा उठ जाए,
पर मैं तो कहूँगी,
आसमान को कह दो रास्ते से ही हट जाए,
क्योंकि …
अब ना मैं मानूँगी,
ना रुकूँगी,
ना झुकूँगी,
ना थकूँगी,
ना हारूँगी,
ये मैं नहीं,
आज़ सर पर चढ़,
ये है मेरा जुनून बोला ,
आज़ सारे ख़्वाहिशों की पोटली खोला।
बस उड़ लेने दे आज़ जी भर,
कल को है किसने देखा।
मूल चित्र : Unsplash
Founder of 'Soch aur Saaj' | An awarded Poet | A featured Podcaster | Author of 'Be Wild Again' and 'Alfaaz - Chand shabdon ki gahrai' Rashmi Jain is an explorer by heart who has started on a voyage read more...
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