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जंगल की एक सैर : प्राकृतिक के साथ साथ नन्हे दोस्तों की दास्ताँ

जंगल का नाम सुनते ही मन में एक प्राकृतिक की महक की लहर दौड़ जाती है। जानवर ,पेड़ ,हरियाली और कभी कभी झरनों की कलकल। मन करता है जानवरों से बात करे और खेलें।

जंगल का नाम सुनते ही मन में एक प्राकृतिक की महक की लहर दौड़ जाती है। जानवर , पेड़, हरियाली और कभी कभी झरनों की कलकल। मन करता है जानवरों से बात करे और खेलें।

चले ! ले चलूँ तुझे जंगल की एक सैर कराने।

वन में बसे जीव–जंतु से मिलाने।

कहीं शेर की दहाड़ ,

कहीं नागराज की पुकार ,

कहीं भेड़िए की चीख ,

तो कहीं हाथी की चिंघाड़ ,

कहीं भालू पेड़ों के पीछे से गुर्राया , 

कहीं बंदर ने ली एक छलांग और ज़ोर से चिल्लाया ,

कहीं छोटा सा मेंढक पानी के बीच टरटराया ,

तो कहीं मगरमच्छ मुंह खोले घुरघुराया ,

पंछियां यहाँ पहली किरण की खबर लाएँ ,

रात में वन जुगनुओं की रोशनी से जगमगाए ,

और भी है कई क़िस्से ,

छिपे इस जंगल की शोर में ,

चले ले चलूँ तुझे जंगल की एक सैर कराने।

दिखलाऊँ इसका एक और छुपा हुआ पहलू।

जादू है इसके हर जन-जीवन में ,

हवा भी है देखो कितनी पावन ,

मनभावन है इसका चितवन ,

सुन भौरों की गुंजन ,

चहचहाहट चिड़ियों की ,

दिल खिल उठा उपवन सा ,

महक उठा मन का चमन ,

चंचल सी बहती नदी ,

चारों ओर फैली सोंधी सी खुशबू ,

अनगिनत वृक्षों का बसेरा यहाँ ,

सवेरा हो या अँधेरा ,

कई जीव-जंतु का डेरा यहाँ !

आज़ादी की है महक इसकी हवा में ,

बँधा नहीं यहाँ कोई कानून से ,

सब मिलजुलकर यहाँ हैं रहते ,

ज़िंदगी को ही धर्म मानते ,

शेर चीता भालू हाथी ,

सब जंगल के हैं ये साथी ,

ना है कोई भेदभाव यहाँ ,

पानी की बहती धारा पर ,

सब का है हक यहाँ ,

पर मीलों दूर से कैसी यह शोर आई ,

जानवरों ने कहा !

हम भी हैं एक दूसरे के सुख-दुख के साथी ,

पर इन शिकारियों में इंसानियत कहाँ ,

कौन मिटाए इन की भूख  ?

इन शहरों की गलियों में ,

है बसा अँधेरा जंगल का ,

हम ही हैं इनसे भले ,

साँस लिए सुकून की रोशन किए अपना जहाँ ,

चले ! ले चलूँ तुझे जंगल की एक सैर कराने।

घने वृक्षों की छांव में एक आशिया बनाने।

मूल चित्र : Pexels

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Rashmi Jain

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