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तो चल रोशनी से मुंह न मोड़, सूर्यमुखी बन रोशनी की ओर मुंह मोड़, अपनी किरणों से रोशन कर दूंगी तेरा ये जहाँ, क्योंकि सूरज की रौशनी हूँ मैं!
नभ से उतर कर, चारों दिशाओं में बिखरी हूँ मैं, प्रकृति की मुस्कुराहट हूँ मैं, एक नए जीवन का संदेशा लाई हूं मैं।
मेरे आने की आहट सुन, खिल उठा है फूलों का चेहरा, भौरें गूँजे, पंछी चहके, मीठी सी मुस्कान लिए, खुशी मना रहा है जग सारा।
रंगी सुनहरे रंग में यह धरती, धरा के कण कण में है खुशियां उमड़ती, उजली सी धूप हूँ मैं, हर नए सवेरे का आगमन हूँ मैं।
भोर की पहली किरण हूँ मैं, अँधियारे को तोड़, बादलों को चीर, ये जहाँ रौशन करने निकली हूँ मैं।
खिड़की से झाँक, रोज़ तुझे पुकारूँ, बतलाऊं यह दास्तां, हर रात के बाद सवेरा होगा।
किरणों से उजागर यह जहां होगा, गम के बादल छटेंगे, और खुशियों की भी बारिश होगी, बस तू हार ना मान, एक न एक दिन जीत तेरी भी होगी।
तो चल रोशनी से मुंह न मोड़, सूर्यमुखी बन रोशनी की ओर मुंह मोड़, अपनी किरणों से रौशन कर दूंगी तेरा ये जहाँ, क्योंकि सूरज की रौशनी हूँ मैं,
रश्मि हूँ मैं…..
मूल चित्र : Unsplash
Founder of 'Soch aur Saaj' | An awarded Poet | A featured Podcaster | Author of 'Be Wild
मैं ऐसी ही हूँ…
आखिर मैं कौन हूँ?
रंजनी हूँ! मैं, अब सिर्फ मैं हूँ
मैं कविता हूँ
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