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दूसरों को दोष देने वाले, करते मारपीट दूजे की लड़की के साथ तो गलती उसकी बताते हैं, जब होता अपनी बेटी के साथ, तो घरेलू हिंसा बताते हैं?
दुनिया के महफ़िल को रंगमंच का, और खुद को कठपुतली का नाम देते हैं, खुदा के इशारों पर हम यहीं अनेक किरदार निभाते हैं…
पूरी जिंदगी करते हैं खुद को बड़ा बनाने की कोशिश, और इसी वास्ते सही गलत का फर्क हम भूल जाते हैं, गर सच में खुदा के इशारों पर चलता यह जहां है, तो बताओ फिर क्यूं इंसा को इंसा से ही खतरा यहां है?
कहीं और होता गलत तो देखने चाव से हम जाते हैं, सभ्यता संस्कृति मानवता धर्म की दुहाई अनेक देते हैं, पर होता जब अपने यहां मौन हम हो जाते हैं?
दूसरों को दोष देने वाले अपने घर में ना झांकते हैं, करते मारपीट दूजे की लड़की के साथ तो गलती उसकी ही बताते हैं, पर जब होता यही अपनी बेटी के साथ तो घरेलू हिंसा का नारा देते हैं?
वजह कुछ खास ना होने पर छोटी सी गलती को भी न बख्शते हैं, घर में औरतों पे रौब जमाकर मर्दानगी अपनी दिखाते हैं?
जागीर समझ अपने बाप की हुकुम शान से चलाते हैं, खुद को मर्द नहीं असल में नपुंसक साबित यह करते हैं!
जिनको पैरो की धूल समझते वहीं इन्हे बनाती संवारती है, जिसकी वजह से देखी दुनिया उसको ही यह दुनिया कमजोर क्यूं समझती है।
शांति स्वरूपा बन झेला जिसने हर मुसीबत को, ए दुनिया मत भड़काओ तुम दबी हुई उस ज्वाला को!
आई जिस दिन काली रूप में नाश सबका हो जाएगा, तुम्हे बचाने फिर कोई महादेव उसके पैरों के नीचे नहीं आएगा।
मूल चित्र : Canva
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