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आज विश्व में फैली हुई COVID 19 की वजह से जहाँ सब कुछ नकरात्मक हो रहा है, वहाँ कुछ ऐसा भी है जो सकरात्मक हो रहा है।
बाहर बेशक लाकडाऊन चल रहा हो लेकिन हमारे भीतर पसरा लाकडाऊन धीरे-धीरे खुल रहा है। हम सभी अपने आप से भी खुल रहे हैं क्योंकि काफी वक्त से हम स्वयं से ही मुंह छुपाए, एक अजनबी से बने घूम रहे थे। खुद को तरह तरह के प्रलोभन देकर छल रहे थे। दिल ने कई बार दबे लहज़े में शिकायतें भी करने की कोशिश की थी, लेकिन हमने उसकी आवाज़ को हमेशा दबा दिया। अब उन्हीं आवाज़ों को सुन कर दिल को धन्यवाद देते हुए उन आवाज़ों की गहराई भी समझ रहे हैं। खुशी की बात यह भी है कि हम जैसे अंतर्मुखी लोग जो दुनियादारी से ज़रा दूर रहने की आदत के चलते लोगों के निशाने पर रहते थे, इन दिनों वही लोग हमारी ही तरह अंतर्मुखी होकर आनंद की प्राप्ति कर रहे हैं। बाहर बहुत हुआ अब भीतर की ओर दौड़ लगा रहे हैं! लग रहा है कि रिश्तों को कभी उस तरह समझ ही नहीं पाए जैसे वे थे और जैसा समझे वैसे वे शायद थे ही नहीं। जिन चीजों के बगैर जीवन असंभव लगता था वही गैरज़रूरी लगने लगी और तमाम फिजूल सी लगने वाली बातें जीवन की पहली ज़रूरत बन गई हैं। यही तो मिला है हमें भीतर का लाकडाऊन खोल कर! बेसब्री का दामन थामे हम एक घने अंधकार में हाथ पांव मारकर जीवन के मायने खोज ही रहे थे कि ‘सब्र’ ने अचानक से ऐंट्री मार कर चौंका दिया और हमारी हथेली पर कमी में भी संतोष से रोटी खाने का गुण धर कर हमें दुनिया में सबसे अमीर होने का अहसास करा दिया। बहुत सारी छोटी-छोटी खुशियों ने अहसास करा दिया कि वे भी बड़ी ही थी बस हमने ही कभी उन्हें तवज्जो नहीं दी। काफी वक्त से साथ रह रहे बहुत से दुख अब हमारे जीवन से स्वयं ही विदा ले चुके हैं। और बस इस सब के बीच अचानक हम सबको स्वयं से ही प्यार हो चला है क्योंकि अब हमारे भीतर का लाकडाऊन खुल चुका है! और उम्मीद है कि इसबार जब हम बाहर निकलेंगें तो स्वयं में आए इस बदलाव को सदा कायम रखेंगें। मूल चित्र : Pexels
निस्वार्थ प्रेम जैसा कुछ होता है क्या?
कठघरे में हर बार हम ही खड़े थे…
अब डरें नहीं बल्कि इस डर का खुल कर सामना करें…
आँखों ही आँखों में कटी, नहीं भूलती वो रात
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