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हम देखते आ रहे हैं कि घर के सारे काम तो औरतें करती ही हैं और अब बाहर के काम भी कर रही हैं और जिस ‘परम्परा’ के रहते फ्री में काम मिल रहा हो, उसे समाज क्यों बदलना चाहेगा?
बच्चों का लॉकडाउन लग गया और स्कूल / कॉलेज बंद हो गये। पति का भी लॉकडाउन लग गया और ऑफिस बंद हो गया और उनको वर्क फ्रॉम होम मिल गया। उसका भी लॉकडाउन लग गया और वर्क फ्रॉम होम मिल गया। हेल्पर का भी लॉकडाउन लग गया और वो भी नहीं आते। लेकिन एक औरत के अभी भी कई क़िरदार हैं, जिनका लॉकडाउन कभी नहीं लगता – एक माँ, एक पत्नी, एक बहु। उनकी तो जिम्मेदारियां और बढ़ गयीं। और सबने भी तो कह दिया, हाँ घर से ही तो काम करना है। घर के काम भी हो जायेंगे, कौन से ज़्यादा होते हैं? उसमें क्या है, कोई भी कर लेगा। अक्सर यही सुनते हैं ना हम?
लेकिन जब काम करने की बारी आती है तो काम कोई नहीं करता। ख़ैर करेंगे भी क्यों, सदियों से हम यही तो देखते आ रहे हैं कि घर की औरतें ही सारा काम करती हैं। आखिर सारा काम फ्री में जो हो जाता है। अगर यही करने के लिए बाहर से किसी को बुलाएँ तो उसके पैसे लगते हैं। तो अगर जिस परम्परा में फ्री में काम मिल रहा है तो आखिर क्यों उसे तोड़ें? सही कह रही हूँ ना ?
तो चलियें इन दिनों का ही उदाहरण लेते है। घर में इतने लोग हैं लेकिन उसे ही सारा काम करना पड़ रहा है और ऑफिस का काम अलग। ऑफिस के समय में भी न जाने कितनी बार उठकर उसे सबकी सेवा करनी होती है। और फिर आखिर में सुनने को मिलता है, “मम्मी / बहु ये क्या बना दिया खाने में, अभी तो घर पर ही रहती हो कुछ अच्छा बना कर खिला दो।” मतलब जो रोज 7 -8 घंटे पहले ऑफिस का काम करें, उसके साथ ही घर के झाड़ू से लेकर बर्तन आदि सब करें, उसे आप दो मिनट शांति से भी नहीं जीने देंगे।
उसकी भी तो इच्छा होती होगी ना कि वो भी कुछ समय अपने आप को दें। कुछ अपने मन पसंद का करें, अपनी पसंदीदा किताब पढ़ें, मूवी / वेब सीरीज़ देखें, दोस्तों से बात करें, कुछ नया सीखने के लिए उसकी बकेट लिस्ट में अभी बहुत कुछ होगा जो शायद वो इन दिनों कर पाए, लेकिन नहीं, उसे तो हम सबकी फ़रमाईशे जो पूरी करनी पड़ती हैं। आखिर करे भी क्यों नहीं, माँ है, अब एक माँ अपने बच्चे के लिए नहीं करेगी तो कौन करेगा, एक बहु परिवार की ज़िम्मेदारी नहीं निभाएगी तो कौन निभाएगा। यही सोचते हो ना आप लोग भी?
लेकिन इन सबके बावजूद भी उसकी इज़्ज़त कोई नहीं करता। अक्सर कहकर टाल दिया जाता है कि घर का काम ही तो है कोई भी कर सकता है, वक़्त ही क्या लगता है, और अगर वो वर्किंग वीमेन नहीं हो तो फिर शायद जो इज़्ज़त रह गयी हो वो भी नहीं मिलती।
जाने अनजाने इस लॉकडाउन को सफ़ल बनाने में बहुत बड़ा योगदान हाथ औरतों का ही है। वो किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं होने दे रहीं। न जाने कैसे वो पूरे घर का गुज़ारा चला रहीं है। सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने तक, सब कुछ तो आपको मिल रहा है। बच्चों से लेकर बड़ों तक हर किसी का ख्याल रख रही हैं।
और इन सबके के अलावा वे सोसाइटी के लिए भी अपने कर्तव्य निभाती हैं, मन हो या बेमन, आजकल घर में ही औरतें मास्क बना रही हैं। और सबसे बड़ी बात तो ये है कि इसका क्रेडिट भी पुरुष ले जाते है। लेकिन फिर भी किसी से शिकायत नहीं करतीं या ये बोलें कि उनकी कोई सुनने वाला नहीं है। और इतना ही नहीं, जो महिलायें बतौर नर्स अपनी ड्यूटी निभा रही है वे अपने परिवार के साथ साथ दुसरो के परिवार का भी ख्याल रख रही है। लेकिन उनके काम को कोई नहीं समझ रहा। आप माने या माने लेकिन अगर महिलायें नहीं होती तो ये लॉकडाउन का सफर इतना आसान नहीं होता ।
अगर आप एक दिन उनके ‘कुछ नहीं करती’ वाले घर के काम करके देखेंगे, तो शायद आपको समझ आएगा कि कैसे वो सुबह की अज़ान से पहले उठकर काम पर लग जाती है और रात में सबको सुलाकर अगले दिन की तैयारी करके सोती है। और फिर भी यही तो सुनने को मिलता है कि ‘कौन से बड़े काम करती है’। तो क्या हम इतने निर्लज हैं? एक बार भी पूरे दिन में उनका ख्याल आता है कि कैसे वो भी इन दिनों थोड़ा आराम करना चाह रही होंगी, उन्हें भी कुछ अपनी पसंद का करना होगा।
अगर आप लोगों को अभी भी लगता है कि वो कुछ नहीं करती तो आपसे एक छोटी सी गुज़ारिश है कि बस एक दिन आप उनके कुछ भी तो नहीं वाले काम करके तो देखें और उनको भी एक दिन, बस दिन आराम करने दें।
खै़र अभी भी बहुत देर नहीं हुई है। क्यों ना एक बार उनके बारे में सोच कर देखें और उन्हें शुक्रिया कहें?
मूल चित्र : Canva
क्या वर्क-फ्रॉम-होम करते हुए आपको भी ये बातें सुननी पड़ती हैं?
हम तो थे जैसे, हम वैसे रह गए…
रिलेशनशिप मैनेजर – 76वें दिन बाहर सन्नाटा था लेकिन एक घर में बस शोर ही शोर था…
और मैंने तय कर लिया कि क्या करना है….!
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