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मैं सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक घर और ऑफिस के काम में लगी रहती हूँ, कभी थकती भी हूँ, फिर भी यही सुनने को मिलता है कि करती क्या हो?
“क्या बात है? तुम्हारा मूड क्यों खराब है?”
“कुछ नहीं…ऑफिस में काम बहुत ज़्यादा है और रोज़ कोई ना कोई मीटिंग होती रहती है, ऊपर से घर की टेंशन। बच्चों पर भी ध्यान नहीं दे पा रही हूं। सुबह 4 बजे से लग जाती हूं काम पर और रात के 11 बजे तक काम ही काम कभी तो थक जाती हूं। फिर भी यही सुनने को मिलता है कि करती क्या हो?
अब तुम ही बताओ रोहित, तुम्हारी नौकरी छुटने के बाद से अब तक मैंने तुमसे कभी नहीं कहा कि घर का सामान, बच्चों की पढ़ाई का खर्च, घर का खर्च सब मैंने उठा लिया है। फिर भी मुझे रोज़ ताने सुनने को मिलते है कि तुम करती क्या हो?
‘कमाती हो इसका मतलब यह तो नहीं है कि अब घर में तुम्हारा हुकुम चलेगा!’ रोहित, तुम्हारी मां और बहन ने तो मुझे नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
अब कल की बात ही लो, पड़ोस की आंटी आई थी मां से मिलने तो बोली क्या बताऊं तुम्हें बहन जब से बहू कमाने लगी है तब से यही सोचती है कि मेरा घर उसकी कमाई से चलता है और हम सब तो अब बहू के नौकर बन गए हैं…
उस समय तो मैं चुप रह गई लेकिन तुम ही बताओ कि पापाजी के मरने के बाद से ही मैंने और तुमने मिलकर इस घर के लिए क्या कुछ नहीं किया और रही बात नौकर की तो अपने घर में सब मिलकर काम करें। ऐसा नहीं होना चाहिए कि एक तो काम करता रहे बाकी सब बैठकर उसका तमाशा देखते रहें।
माना मेरी कमाई से तुम्हारा घर नहीं चलता लेकिन इस घर की आवश्यकताओं की पूर्ति तो मेरी भी कमाई से होती है। इस घर को अपना घर मान कर ही मैंने नौकरी करने का सोचा था जो हम दोनों का फैसला था।”
“अरे तुम परेशान मत हो। मेरा नई कंपनी में सिलेक्शन हो गया है और अब अगर तुम्हें ठीक लगे तो, तुम्हें नौकरी करने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम जो चाहो कर सकती हो और तुम्हारी इच्छा हो तो तुम जॉब भी कर सकती हो। मेरी मां और बहन को मैं समझा दूंगा”, रोहित ने कहा।
यह बिल्कुल सही बात है। जब बहू कमाने जाती है तो वह भी अपने घरवालों के लिए ही कमाती है ना कि अपने निजी सुख के लिए। अपना घर मानकर ही अपनी कमाई को अपने पति और ससुराल में खर्च करती है। अगर चाहे तो वो भी अपनी कुछ कमाई अपने पास भी रख सकती है, यह निर्णय सिर्फ और सिर्फ उस लड़की या बहू का होना चाहिए।
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मूल चित्र : Canva
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