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सच कहूँ तो तुम्हारी पूरी जमात डरती है स्त्री से, जो अपने निर्णय स्वयं लेती है और अपनी ग़लतियों को सहेज कर, उनका श्रृंगार करती हैं।
मेरे हक़ तुम्हारे हक़ से टकराते क्यों हैं? मैंने अपना कॉलेज चुना लगभग मुफ़्त में प्रवेश परीक्षा पास करके दूसरे शहर जाकर पढ़ना था इसमें तुम्हारा कौन सा हक़ मार लिया?
मैंने अपना जीवन साथी चुना शादी हुई बिन दहेज अपनी पसंद के लहंगे तक की ज़िद न कर पाई इसमें तुम्हारा कौन सा हक़ मार लिया?
मैंने देर से सही अपनी ग़लती नहीं, ग़लत निर्णय को स्वीकारा तोड़ लिए उससे संबंध इसमें तुम्हारा कौन सा हक़ मार लिया?
जब तुम्हारे लिए रिश्ते बहुत अहम थे पर उनमें कहीं बहनें नहीं आती थीं तो मैंने अपना आसरा ख़ुद गढ़ा इसमें तुम्हारा कौन सा हक़ मार लिया?
जब तुमने अपने उसी सीमित दायरे से माँ को बिसारा वो मेरी भी माँ थी संग ले आयी उसे इसमें तुम्हारा कौन सा हक़ मार लिया?
सच कहूँ तो तुम्हारी पूरी जमाअत डरती है स्त्री से जो अपने निर्णय स्वयं लेती है अपनी ग़लतियों को सहेज कर, (जो अक़्सर तुम भी करते हो और मिट्टी डाल देते हो) उनका श्रृंगार करती हैं।
बिना हिस्से के लालच के रिश्तों को निभाती हैं। और जहाँ प्रेम न हो वहाँ हिस्से ठुकराती हैं।
फिर तुम डरते हो उसी प्रेम से जो हिस्से नहीं दर्द बाँटता है कि कहीं तुम्हारे दिए दर्द समेटते हुए कोई बहन, भाई का हक़ न मार ले!
मूल चित्र : Canva
Sarita is a teacher, a voracious reader and an inquisitive student at heart. She lives her life on her own terms. She believes that questioning the established norm is the way to change. "Start questioning, read more...
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