कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

संपत्ति का संचय और नारी की दुर्दशा पृथ्वी पर कब और कैसे शुरू हुई?

अब दिवस मनाते फिरते हो, लेकिन, नारी-पिछड़ी जाति-सर्वहारा-अल्पसंख्य-गरीब, इन तबकों में, हीन भावना से भरे हुए मानव ही ने सबको बांटा था। 

अब दिवस मनाते फिरते हो, लेकिन, नारी-पिछड़ी जाति-सर्वहारा-अल्पसंख्य-गरीब, इन तबकों में, हीन भावना से भरे हुए मानव ही ने सबको बांटा था। 

एक रोज़ सलोनी पृथ्वी पर
आदम-हव्वा आबाद हुए
न रंग था तब
न पंथ हुआ
न लिंग भेद ही पनपा था।

थे अन्तर बहुत से दोनों में
पर विविधता तो संसार में थी
कोई जड़ था
था कोई चेतन
न प्रभुत्व-स्पर्धा में कोई पड़ता था।

किसी रोज़ अचानक हव्वा ने
छोटे मानव को जन्म दिया
आश्चर्य हुआ
मानव जाति को
नारी सृजन से वह भौचक्का था।

प्रकृति के नियमों के वश में
कुछ और समय भी बीत चला
कुछ और बढ़ा
बढ़ फला फूला
अब पूरे का पूरा जत्था था।

आदम अब इतनी संख्या में
घुमन्तू होकर कैसे रहे?
संचय करना
सम्पत्ति रचना
ऐसा होना अब पक्का था।

खुद सृजन का कच्चा माल जो था
और हीन भावना से भरा हुआ
बहुत सोचा
सृजन में व्यस्त
हव्वा पर स्वामित्व का अच्छा मौका था।

अपनी सँजोई थाती को
पर-पुरुष से इर्ष्या वश
स्व-वीर्य से
उत्पन्न सन्तान ही को
धरोहर में देना चाहता था।

ऐसे में नैतिकता के बन्धन में
हव्वा भी बँधना शुरु हुई।
अच्छी नारी
गंदी नारी
का खेल यहीं से चलता था।

स्वामित्व दंभ में उन्मत्त हुआ
कमजोर प्रजाति के साथी को
कभी रंग के
कभी ढंग के
नित नये ढकोसलों में बुनता था।

प्रकृति के अनबूझे पहलू को
नित नवीन पंथ से समझाया
मृत्यु का भय
भय का दोहन
भगवान यहीं पर जन्मा था।

फिर अनेकानेक पंथ बने
सबने खुद को ही श्रेष्ठ दर्शाया
मनु-शतरूपा,
ऐडम-ईव बने
मानवता ऐसे ही घटता था।

हे मानव! साफ है आज यहाँ
तुम्हारे जाल अशान्ति और विषमता के
इर्ष्या के
हीन भावना के
अब सुलझाए नहीं सुलझता था।

अब दिवस मनाते फिरते हो
नारी, पिछड़ी जाति, सर्वहारा
अल्पसंख्य, गरीब
इन तबकों में मानव ही ने मानव को बांटा था।

#फ्रेड्रिक_एन्गेल्स_समझाने_का_एक_प्रयास

मूल चित्र : Canva

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Sarita Tripathi

Sarita is a teacher, a voracious reader and an inquisitive student at heart. She lives her life on her own terms. She believes that questioning the established norm is the way to change. "Start questioning, read more...

3 Posts | 8,904 Views
All Categories