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थेरी गाथा-हमारे लिए कोई धर्म नहीं बना

भिक्षुओं से चौरासी नियम अधिक हमारे लिए रच कर, हे मर्द महाबोधि, आप ने भी साबित कर दिया, औरतों के लिए कभी कोई धर्म नहीं बना। 

भिक्षुओं से चौरासी नियम अधिक हमारे लिए रच कर, हे मर्द महाबोधि, आप ने भी साबित कर दिया, औरतों के लिए कभी कोई धर्म नहीं बना। 

आप को
बड़ा मानते थे हम।
शांति,
अहिंसा,
प्रेम,
क्षमा।
क्या-क्या न सिखाया आपने
इस धरती को
पिछले ढाई हज़ार सालों में।

पर,
जब बात हम पर आई,
तब?
दो सौ सत्ताईस उनके,
और तीन सौ ग्यारह
हमारे लिए?

संघ के नियम।
धर्म के नियम।
बुद्ध के नियम।

किसने सोचा?
किसने रचा?

विनय के उपाली
या स्वयं आप?

हर विषमता को
छोड़ कर,
हम समान ही तो बनने
आये थे आप के
पास।

पर भिक्षुओं से
चौरासी नियम
अधिक
हमारे लिए
रच कर-

हे मर्द महाबोधि,
आप ने भी
साबित कर दिया,

औरतों के लिए
तब से ले कर
अब तक,

कभी कोई धर्म
नहीं बना।

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Suchetana Mukhopadhyay

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