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दुनिया की पहली कवि एनहेदुअन्ना कौन हैं और क्या है इनकी कहानी?

दुनिया की पहली कवि एनहेदुअन्ना की कहानी क्या है? निन-मे-सारा, देवी इनन्ना की यह 153 पंक्तियों की स्तुति उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है।

दुनिया की पहली कवि एनहेदुअन्ना की कहानी क्या है? निन-मे-सारा, देवी इनन्ना की यह 153 पंक्तियों की स्तुति उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है।

तारों सी झिलमिला रही है प्राचीन उर नगरी की रात ‘जिगुरात’ की आंगन में अकेली बैठीं है वो। मुख्य पुजारिन एनहेदुअन्ना..

दीर्घ व्याकुल प्रतीक्षा के बाद उनके पास आ बैठीं है युद्ध, प्रेम और उर्वरता की महादेवी इनन्ना।पुजारिन की हृदय से देवी के लिए जन्म ले रही हैं एक के बाद एक स्तुति।

कल सुबह की पूजा के बाद मिट्टी के पट्टिकाओं पर इन्हें लिखेंगे एनहेदुअन्ना के सहयोगी ‘एबाडू’ मुंशी। बड़े प्रसिद्ध होते हैं यह गीत, जो दक्षिण के सुमेरिया की सीमाओं को पार करके छा जाते हैं उत्तर के अक्काद और फिर सम्राट सार्गन के पूरे विशाल साम्राज्य में। भोर होने को है, एनहेदुअन्ना अभी भी रच रहीं है महादेवी के गीत…

एनहेदुअन्ना कौन थीं?

सन १९२२ से ले कर सन १९३४ तक प्रख्यात ब्रिटिश पुरातत्वविद सर लियोनार्ड वूली और उनके सहयोगी दक्षिणी इराक़ के उर शहर में महान सुमेर सभ्यता के अवशेष खोंजने के लिए उत्खनन कर रहे थे। उनकी एकाग्र कोशिशों से बीसवीं सदी की रौशनी में वापस आ रहे थे विश्व के प्राचीनतम मेसोपोटामिया सभ्यता के अनगिनत महत्वपूर्ण उपादान।

१९२७ में उन्होंने उर की प्राचीन ‘जिगुरात’ यानी मंदिर के भीतर खुदाई शुरू की। वहाँ स्थित ‘जिपारु (जिगुरात के अंदर पुजारियों की रहने की जगह) के ‘जिरु’ (पुजारियों की ख़ास समाधिस्थल) अंश में उनको मिले सफेद कैल्साइट पत्थर के कुछ अजीब से टुकड़े। उन्हें लगा इनका विशेष कोई महत्व हो सकता है, तो उन्होंने पत्थर की उस पहेली को सुलझाना शुरू किया।

सर वूली का अंदाज़ा सही था क्योंकि टुकड़ों को सजाने के बाद उन्हें मिला एक गोलाकार शिलालेख, जहाँ एक ओर थीं तीन पुरुष मूर्तियों के बीच खड़ीं राजसिक पोशाक और मुकुट पहनी हुई एक महिला की प्रतिकृति और दूसरी पीठ पर क्युनीफॉर्म लिपि में उत्कीर्ण थी उनकी परिचय – “उर की देवी इनन्ना की मंदिर की मुख्य पुजारिन एनहेदुअन्ना, चन्द्रदेव नन्ना की पत्नी और विश्वसम्राट सार्गन की कन्या”

वूली ने उनका प्रख्यात शोधग्रंथ ‘The Excavations at Ur and The Hebrew Records’ में पहली बार इस खोंज का उल्लेख किया। इस आविष्कार के बाद की दो दशकों में एक के बाद एक मेसोपोटेमिया के सारे महत्वपूर्ण शहर जैसे उरुक, नीपुर, लागाश के जिगूरातों से और असीरिया के साहित्यप्रेमी सम्राट अशुरबानिपाल के लाइब्रेरी से भी मिले एनहेदुअन्ना की नाम लिखे हुए प्रार्थनागीत और पौराणिक कहानियों की सौ से ज्यादा अभिलेख।

१९५० – ६०के दशकों से जर्मन पुरातत्वविद एडम फकेनस्टाइन, विलियम हैलो, वैन डिक, और बेटी मीडोर जैसी अमरीकी इतिहासकार और भाषाविदों द्वारा गहरे अनुसंधान तथा से एनहेदुअन्ना की साहित्य को पश्चिमी भाषाओं अनुवाद किये जाने से उनके बारे में पाठक और शोधकर्ताओं की आग्रह बढ़ने लगी और ऐसी तमाम पहल की बदौलत पुराकाल की इस अनोखी व्यक्तित्व का अनोखा जीवन सदियों के विस्मृति के बाद स्पष्ट रूप से वर्तमान दुनिया के सामने उभर कर आ सका।

राजकुमारी – पुजारिन या कवि? कौन थीं एनहेदुअन्ना

प्राप्त अभिलेखों से स्पष्ट हो रहा था की एनहेदुअन्ना ( ईसा पूर्व २२८५-२२५०) अक्काद साम्राज्य और शायद विश्व इतिहास के पहले सम्राट ‘महान सार्गन’ ( ईसा पूर्व २३३४-२२९०) और रानी ताशलुलतुम की बड़ी बेटी थीं।

अक्काद यानी उत्तर मेसोपोटामिया के महत्वकांक्षी राजा सार्गन ने दक्षिण के सुमेरिया और कईं पड़ोसी इलाकों को युद्ध में हराया और मेसोपोटामिया के सारे प्रांतों को एकजुट कर एक विशाल साम्राज का नाम रखा।

राजकुमारी पुजारिनों की एक महान परंपरा में एनहेदुअन्ना थीं पहली

दक्षिण के नए से अधिकृत विद्रोही इलाकों में शांति, कानून और शासन व्यवस्थाओं की स्थापना सहित उत्तर-दक्षिण के बीच मैत्री बनाने का दुष्कर दायित्व उन्होंने अपनी “साहसी और ज्ञानी” बेटी एनहेदुअन्ना के मजबूत कांधों पर डाला। उन्हें दिया गया सुमेरिया के सबसे बड़े शहर उर में चंद्रदेव नन्ना के नाम पर बनी विशाल जिगुरात की सबसे पहली महिला मुख्य पुजारिन का पद।

सार्गन का यह निर्णय राजनैतिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अपने आप में एक क्रांतिकारी क़दम था, जिससे शुरू हुई अगले ५०० साल तक चलनेवाली राजकुमारी पुजारिनों की एक महान परंपरा जो मेसोपोटामिया सभ्यता के एक अनोखी विशेषता रही।

प्राचीन मेसोपोटामिया के हर बड़े शहर के केंद्र में एक जिगुरात यानी मंदिर बनाया जाता था, उस शहर के संरक्षक देवता के नाम पर। बस पूजार्चना ही नहीं, मंदिर के एक हिस्से से चलाया जाता था उस शहर का प्रशासन भी। शहर का राजनैतिक, आर्थिक, समाजिक, सांस्कृतिक – हर व्यवस्था  आवर्तित्र होता था उसी के ही इर्द-गिर्द। इसी लिए जिगुरात के मुख्य पुजारी का समाज में एक विशेष महत्व होता था।

विचक्षण एनहेदुअन्ना को खूब पता था कि धर्म एकमात्र ऐसा नशा है जो आम आदमी को सबसे आसानी से अपने आग़ोश में ले सकती है। इस लिए अपनी पुजारिन की भूमिका को कुशलता पूर्वक इस्तेमाल करके उन्होंने उत्तर और दक्षिण की अलग भाषा और संस्कृति को धर्म के तार से बांध कर विशाल सुमेर की जनता का निष्ठा अपने और अपने सम्राट पिता के लिए जितने का फैसला किया।

धर्म और उसका इस्तेमाल

उत्तर से उर में आते ही उन्होंने अपनी पुरानी अक्कादी नाम को बदल डाला और खुद को ‘एन’ यानी मुख्य पुजारिन घोषित किया। नए इस नाम के साथ ही उन्होंने ‘हेदुअन्ना’ उपाधी को भी अपनाया; सुमेरिया की भाषा में जिसकी मतलब थी ‘स्वर्ग का गहना’। इसके बाद अपनी सहजात कवित्व प्रतिभा का उपयोग करके इनहेदुअन्ना ने दक्षिणी देवी देवताओं के लिए एक के बाद एक स्तुति रचना शुरू कर दी।

उत्तर की पौराणिक देवी देवता अपना नाम बदल कर उनकी गाथाओं में ना सिर्फ आने लगे, पर सुमेर के देवताओं से ‘युद्ध’ में हारने भी लगे। जैसे एनहेदुअन्ना की कविता में अक्काद की देवी ‘इष्टार’ की कहानी ढल गयी सुमेर की प्राचीन देवी ‘इनन्ना’ की कहानी में, जहां इनन्ना अक्काद के मुख्य देवता ‘आन’ को युद्ध में हरा देती हैं।

एक तरफ, अपनी देवगाथाओं में एनहेदुअन्ना ने पराजित सुमेरिया वासियों की वीरता, देशप्रेम और लोककथाओं गौरवान्वित तरीके से पिरो कर वो तमाम दक्षिण में जल्द ही लोकप्रिय बनीं, उधर धर्म के साथ नई कहानी, युद्ध के साथ देशभक्ति और समाज के साथ व्यक्तिगत अनुभूतियों से सजायी अपनी मनमोहक धार्मिक गीतों के ज़रिए साम्राज्य के बाकी हिस्सों के भी सबसे प्रसिद्ध पुजारी हो गयीं।

अपनी लोकप्रियता के दम पर फिर एनहेदुअन्ना ने अपनी सत्ता को निष्कण्टक किया। वह पिता सार्गन की मृत्यु के बाद भी अपने भाई राजा ‘रिमुश’ और फिर भतीजे ‘नरमसिन’ के समय तक उर शहर की मुख्य पुजारिन के पद में ना सिर्फ बनी रहीं, पर पूरे सुमेर में अपनी राजनीतिक और मज़हबी दबदबा कायम रखने में भी सफल हुयीं।

एनहेदुअन्ना की कविता

नन्ना यानी चंद्रमा देव के मंदिर की पुजारिन होते हुए भी कवि एनहेदुअन्ना ने अपनी सबसे सुंदर कविताओं को लिखा था देवी इनन्ना के लिए। जैसे…

इन-सिन-मे-हास-आ : देवी इनन्ना और एबीह पर्वत की कहानी, जिसमें देवी घमंडी पर्वत को हरा कर ‘धरती पर स्वर्गीय न्याय का स्थापना’ करतीं है।

इन-निन-सा-गुर-रा : २७४ पंक्तियों की यह विशाल प्रार्थना उन्होंने रचीं देवी इनन्ना के लिए, जहाँ वो पहली बार कवि की तौर पर अपनी संक्षिप्त परिचय भक्तों के सामने लायीं।

निन-मे-सारा : देवी इनन्ना की यह १५३ पंक्तियों की स्तुति एनहेदुअन्ना की सबसे प्रसिद्ध रचना है। इस दीर्घ कविता में उन्होंने सुमेर नेता ‘लुगाल-आन’ का उनके ख़िलाफ़ की गई विद्रोह, उर से कुछ सालों की  उनकी निर्वासन, निर्वासित समय की हताशा और देवी इनन्ना की कृपा से अपनी ‘एन’ की पद में पुनरुत्थान की कहानी को एक अनोखी ढंग से रचा।

नन्ना की गाथा : उर के संरक्षक देवता और अपने ‘आध्यात्मिक पति’ के लिए उनकी लिखी हुई एकमात्र स्तुति।

४२ प्रार्थनाएँ :  एनहेदुअन्ना ने सुमेर और अक्काद के तमाम बड़े ज़िगुरात के संरक्षक देवी देवताओं के लिए भी ४२ प्रार्थना गीत लिखी थीं, जो बाद में निपुर, लागाश जैसे शहरों के उत्खनन से मिलीं। उनकी यह स्तुतियाँ एरिडु, असनुन्ना जैसे पास के उपनिवेशों में भी समान लोकप्रिय थी।

इन में ४२वा स्तुति समाप्त होने के बाद अपनी परिचय को कहते हुए इस महान पुजारिन कवि ने लिखी थीं एक बेमिसाल स्वभिमानी पंक्ति, “मेरे सम्राट, यहाँ मैंने, एनहेदुअन्ना ने, जो रचा है, वह मेरे पहले किसी ने कभी नहीं रचा…”

सबसे पहली, सबसे अलग – दुनिया की पहली कवि एनहेदुअन्ना

मेसोपोटामिया के प्रत्न क्षेत्रों से एनहेदुअन्ना की कविताओं से भी प्राचीन साहित्य के कई निदर्शन मिले हैं। पर उन किसी में लेखकों का कोई नाम नहीं मिला। इस दृष्टिकोण से वो दुनिया की सबसे पहली कवियत्री थीं जिन्होंने लेखन की सनातन नियमों को तोड़ कर साहित्यकार्य के साथ रचयिता के परिचय जोड़ने का एक नया युग को आरंभ किया।

शायद एनहेदुअन्ना के राजकीय पारिवारिक संबंध , ‘एन’ अर्थात मुख्य पुजारिन की अगाध धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक प्रतिष्ठा और सब से बढ़ कर उनकी असामान्य काव्यशक्ति ने उनमें पैदा किया होगा एक प्रगाढ़ आत्मविश्वास जिसके दम पर उन्होंने ना सिर्फ मेसोपोटामिया के, बल्की पूरे मानवसाहित्य के इतिहास में पहली बार रचयिता की हैसियत से अपनी आत्मपरिचय को दोटूक तरीके से समकाल के सामने गर्व के साथ प्रकाशित करने में सक्षम रहीं।

उनके शब्द चयन और लिखनशैली भी थी समकालीन समय के हर लेखक से बिल्कुल अलग। अपनी स्तुतियों में कभी देवी इनन्ना से तो कभी खुदसे बातचीत करती हुई वो कह जाती हैं, देवी और देवस्थान से उनका गहरा आत्मिक संबंध, अपनी परिवारवालों की बात, उर से उनका लगाव, आम सुमेरवासियों की रोजनामचा या फिर अपने समय का हर उत्थान-पतन को। उनकी हर स्तुति को यथार्थ तरीके से विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि वे बेशक़ बाहरी रूप से आध्यात्मिक थी, पर उनके अंदर बसी हुई थी समसामयिक राजनीति के कुशल दावपेंच।

एक नया दौर

एनहेदुअन्ना ने अपनी रचनाओं से हमेशा के लिए बदल दिया था मेसोपोटामियन धर्म के आदिम निष्ठुर रूप को। अख्यात देवी इनन्ना, तमाम पुरुष देवताओं को एक के बाद एक युद्ध में हरा कर, उनकी गाथाओं से बन गयीं सर्व शक्तिमयी त्रिलोकेश्वरी।

उधर पुराने देवता आन और नन्ना को कवि ने अनेकों मानवीय दोष-गुण और कमज़ोरियों के साथ आंका। उन्होंने अपनी आध्यात्मिकता और सृजनात्मकता को वास्तविकता से इस्तेमाल करके ना सिर्फ विराट मेसोपोटामिया के दोनों प्रांत को संयुक्त किया, ना सिर्फ उस वक़्त के जटिल धर्मचर्या को आम आदमी के लिए सरल बनाया, बल्कि पहली मुख्य पुजारिन का दायित्व सालों तक सफलता से निभा कर उन्होंने पुरुषतांत्रिक मेसोपोटामियन धर्म और राजनीति में राजपरिवार की औरतों के लिए स्थायी स्थान का भी रोपण किया ।

स्वयं एनहेदुअन्ना की अपनी दस्तखत की हुई कोई पट्टिका उत्खननों से आविष्कृत ना होने और उनकी गीतों की प्राप्त अनुकृतियाँ सारि उत्तरकाल की होने की वजह से उनके वास्तविक अस्तित्व को ले कर अतीत में निस्संदेह कुछ मतभेद रहे हैं। पर मेसोपोटामिया सभ्यता के आधुनिकतम शोधकर्ताओं का मानना है, कि एक विशाल इलाके से अगली कईं पीढ़ी तक उनकी देवगाथाओं के प्रतिलिपियों का मिलना उनकी प्रभाव और लोकप्रियता के ही अचूक प्रमाण हैं।

इसके इलावा उर की समाधिस्थल से मिली उनकी दो सहयोगी ‘एबाडू’यों का एनहेदुअन्ना सम्बंधी क्यूनीफॉर्म पट्टिका और उनकी प्रतिकृतिवाली केल्साइट अभिलेख के वैज्ञानिक विश्लेषण से भी दुनिया की सबसे पहली पुजारिन कवियत्री एनहेदुअन्ना की सच्चाई प्रमाणित हो चुकी है- दुनिया की पहली कवि हैं एनहेदुअन्ना।

महत्तम हृदय की नारी दुनिया की पहली कवि एनहेदुअन्ना

पूरे साम्राज्य की प्रधान मंदिर और उरुक शहर के संरक्षक देवता ई-अन्ना के विशाल जिगुरात का दर्शन करके हाल ही में एनहेदुअन्ना लौटी हैं उर स्थित अपनी जिपारु में। सफर काल में उन्होंने प्रत्यक्ष किया कि कैसे जनता के बीच पहुंची उनकी रची हुई हर देवस्तुति। उन्होंने देखी, कैसे सम्राट नरम-सिन के कठोर शासन के भीतर भी विकसित हो रही हैं समग्र मेसोपोटामिया की शक्ति और समृद्धि।

अब पुराने उन उत्ताल दिनों से काफ़ी शांत और मुक्त है समाज। ज़्यादातर रानियाँ अब अपने आराध्य देवी-देवताओं के लिए लिखतीं है प्रार्थनगीत। कुछ एक बनती हैं जिगुरात के मुख्य पुजारिन भी। जिनकी रचनाओं को एबाडू मुंशी मिट्टी के पट्टिकाओं पर उत्कीर्ण करके संजो कर रख रहें हैं भविष्यकाल के लिए।

एनहेदुअन्ना समझतीं है, उनका समय अब समाप्त हो रहा है… रात गहरी होती है… उनकी पास आज भी रोज़ आ कर बैठतीं है देवी इनन्ना… देवी और मानुषी, प्रवीण दो सखियाँ एकाकार हो जातीं हैं फिर से आज भी… और पुजारिन कवि की कंठ से जन्म लेने लगती हैं तमस से ज्योति की ओर उत्तरण के महागीत…

संदर्भ : The Exaltation of Inanna – J. J. A. Van Dijk and William W. Hallo/ Inanna, Lady of Largest Heart: Poems of the Sumerian High Priestess Enheduanna – Betty De Shong Meador/ Hidden Women Of History: Enheduanna, Princess, Priestess And The World’s First Known Author – Louise Pryke

मूल चित्र : Wikipedia 

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Suchetana Mukhopadhyay

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