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नवयुग की वैदेही : हर बार नारी की ही अग्नि परीक्षा क्यों?

थोड़ा तुम भी तो बदलो, मेरे अधिकारों की मौलिकता को पहचानो, हर बार नारी की ही अग्नि परीक्षा क्यों? हर बार नारी की ही अग्नि परीक्षा क्यों?

थोड़ा तुम भी तो बदलो, मेरे अधिकारों की मौलिकता को पहचानो, हर बार नारी की ही अग्नि परीक्षा क्यों? हर बार नारी की ही अग्नि परीक्षा क्यों?

वैदेही नहीं मैं…
जो बात – बात पर अग्नि परीक्षा दूँ,
तुम्हारा घर छोड़कर चली जाऊँ,
या फिर धरती में समां जाऊँ!

पर क्या तुम भी राम हो ?

तुम्हारे कर्तव्यों का निर्वहन,
आजीवन करती रही मैं।
विमुख नहीं रही कभी,
अपनी जिम्मेदारियों से।

एक चुटकी सिंदूर की ख़ातिर,
सर्वस्व अपना छोड़ आई।
थोड़ा तुम भी तो बदलो,
मेरे अधिकारों की,
मौलिकता को पहचानो।

हर बार नारी की ही अग्नि परीक्षा क्यों ?
हर बार नारी की ही अग्नि परीक्षा क्यों ?

मूल चित्र : Pexels

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