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मैं एक शिक्षिका हूँ साथ ही कुछ कवितायें लिखती आरही हूँ। मेरी पहली कविता एक घरेलू हिंसा के खिलाफ थी और यहीं से मैं उन स्त्रियों के बारे में लिखने का प्रयास करती हूँ जो किसी न किसी रूप में समाज के अनकही नियमों और रीति रिवाजों के नाम पर पिसती आरही हैं। इसीलिए ये जरिया पसंद आता है।
थोड़ा तुम भी तो बदलो, मेरे अधिकारों की मौलिकता को पहचानो, हर बार नारी की ही अग्नि परीक्षा क्यों? हर बार नारी की ही अग्नि परीक्षा क्यों?
पिता का अभिमान हूँ, माँ के दिल का अरमान हूँ, जो नहीं हूँ, वह है इस अप्रत्याशित समाज का हिस्सा।
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