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इतिहास ने है दिया गवाह कि तुमने है सताया, कमज़ोर समझ कर है हाथ उठाया, मुझे से तो बोलने तक का हक़ भी छिन लिया...क्योंकि औरत हूँ मैं?
इतिहास ने है दिया गवाह कि तुमने है सताया, कमज़ोर समझ कर है हाथ उठाया, मुझे से तो बोलने तक का हक़ भी छिन लिया…क्योंकि औरत हूँ मैं?
अपने मन के कपड़े पहन लू; तो बेशरम हूँ मैं, क्योंकि औरत हू मैं?
लड़को से बात कर लूँ तो बेहया हूँ मैं, क्योंकि औरत हूँ मैं?
इतिहास ने है दिया गवाह कि तुमने है सताया, कमज़ोर समझ कर है हाथ उठाया… आंसुओं को मेरी झोली में दे दिया, मुझे से तो बोलने तक का हक़ भी छिन लिया… क्योंकि औरत हूँ मैं?
चूल्हा चौका संभालना मेरा कर्म बताया, महीने के दर्द को सहना भी तो है समाज ने सिखाया.. पढ़ने लिखने का अधिकार छिन लिया, गृह्स्थी मेरे हाथ मे थमा दिया.. क्योंकि औरत हू मैं?
नौ महीने का दर्द बर्दाश्त करो तो जानूँ मैं एक दिन घर का खाना बना लो तो मानूँ मैं, महीने में पाँच दिन अपने अंदर से खून बहाओ तो समझूँ मैं…
ये सब चीज़ चुप चाप सह जाती हूँ मैं, क्योंकि हाँ… औरत हूँ मैं…!
मानो तो गंगा सी; ना मानो तो पानी समान, तुम समझो या ना समझो औरत से ही है पूरा संसार…!
मूल चित्र : Canva
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