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जिस दिन तुमने उसके कपड़ों को ही नहीं, उसके जिस्म को भी, दो हिस्सों में, फाड़ कर रख दिया था, उस दिन, अपनी माँ की परवरिश पर भी, सवाल उठाया था!
सुना है, सजा ए’ मौत के वक्त, गिड़गिड़ा रहे थे तुम? जीने के कुछ पल भीख में, मांग रहे थे तुम?
अगर उस दिन, उस की चीजों पर, तरस खाया होता, तो तू आज, कटघरे में ना खड़ा होता! चैन की नींद, सो रहा होता, अपनी माँ के हाथों की रोटी, खा रहा होता!
उस दिन इंसानियत को, शर्मसार कर दिया था, जिस दिन तुमने उसके कपड़ों को ही नहीं, उसके जिस्म को भी, दो हिस्सों में, फाड़ कर रख दिया था!
सामान की तरह उसको जला दिया था, अपने दुष्कर्म के निशान को, तुमने ऐसे मिटा दिया था! तू उस रात, सो गया था, और उसके परिवार की नींद को, तूने हमेशा के लिए छीन लिया था!
उस दिन इस समाज ने लड़की के छोटे कपड़ों पर, सवाल उठाया था! पर रेप वालों ने तो, बुरखे और साड़ी को भी, नहीं छोड़ा था! मासूम छोटी बच्चियों को, अपनी हवस का शिकार बनाया था!
तूने! ना सिर्फ इंसानियत पर! अपनी माँ की परवरिश पर भी, सवाल उठाया था!
मूल चित्र : Canva
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