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जिस दिन तुमने उसके कपड़ों को ही नहीं, उसके जिस्म को भी, दो हिस्सों में, फाड़ कर रख दिया था, उस दिन, अपनी माँ की परवरिश पर भी, सवाल उठाया था!
इतिहास ने है दिया गवाह कि तुमने है सताया, कमज़ोर समझ कर है हाथ उठाया, मुझे से तो बोलने तक का हक़ भी छिन लिया...क्योंकि औरत हूँ मैं?
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