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तुम्हारी कविता

किताबों की लिखी हुई पंक्तिओं के ज़रिये कविताएं बोलती हैं, और उन बिन बोले शब्दों की सुनने वाला कविता के सर को समझ लेता है। 

किताबों की लिखी हुई पंक्तिओं के ज़रिये कविताएं बोलती हैं, और उन बिन बोले शब्दों की सुनने वाला कविता के सर को समझ लेता है। 

तुम्हें पढ़ती हूं,
तुम्हारी कलम में,
एक लम्हे को जी लेती हूं,
तुम्हारे लिखे लम्हें में,
सोचती हूं।

कौन हो तुम?
जो पढ़ लेती हो,
मेरी ज़िन्दगी को,
जान लेती हो मेरी कहानी?

बिना मेरे कहे,
ढाल देती हो,
मेरी कहानी को
अपनी कविता में?

और छू लेते हैं।
तुम्हारे शब्द, मेरे अन्तर्मन को,
तुम्हारे शब्दों का वह शीतल स्पर्श,
मरहम सा लगा देता है,
मेरी चोट पर…

एक मुस्कुराहट आ जाती है,
मेरे होठों पर,
तुम्हारी कविता,
हौले से छू लेती है,
मेरा अन्तर्मन।

मूल चित्र : Unsplash

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Anchal Aashish

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